अरविंद केजरीवाल अभियोजक, वकील, जज, और जनता! सब एक साथ?
राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार)
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन को आय से अधिक संपत्ति के मामले में प्रर्वतन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार कर लिया। अन्ना आंदोलन से निकली गले तक पानी पी-पी कर भ्रष्ट्राचार के विरूद्ध ईमानदारी की डंके की चोट पर स्थापित नई वैकल्पिक स्वच्छ राजनीति का दावा करने वाली "परोपकाराय सतांम विभूतय: और "अनुलंघनीय सदाचार" की उक्ति को ध्येय वाक्य के रूप में धारण करने वाली आप पार्टी व उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल; भ्रष्ट्राचार के मामले में गिरफ्तार उनके ही मंत्री सत्येन्द्र जैन को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के समान तुरंत मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की बजाए उसे क्लीन चिट दे रहे हैं। यह न केवल उनके दोहरे चरित्र का घोतक है, बल्कि उन्होंने एक ही झटके में भ्रष्ट्राचार के विरूद्ध ईमानदारी से कड़ी मुहिम चलाने वाली अपनी छवि को समाप्त कर दिया। क्यों? शायद उक्त मामले की आगे जांच की आंच उन पर भी आ सकती हो? जैसे कि जादूगर की जान तोते में। भविष्यवक्ता होने की दृष्टि से शायद उन्होंने अपनी सुरक्षा को ढाल बनाने हेतु उक्त नीति अपनायी हो? इस प्रकार वे इस प्रकरण में उसी चोर उचक्का चौधरी, कुटना भयो प्रधान" वाली राजनीति का हिस्सा हो गए हैं, जिसको बदलने को लेकर ही राजनीति में आने का दावा उन्होंने किया था।
एक तरफ पंजाब के मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल में अपने ही मंत्री के विरूद्ध खुद साक्ष्य जुटाकर उन्हे गिरफ्तार करवाती है। वही दूसरी ओर भगवंत मान चेले के गुरू केजरीवाल कार्यवाही करना तो दूर, उन्हे ‘‘हरीशचंद्र’’ बनाने में बेशर्मी से आधारहीन तथ्यों व तर्कों के साथ तुले हुये है। इसे ही कहते हैं "अरहर की टटिया पर अलीगढ़ी ताला लगाना"। जिस भारतीय संविधान का सहारा लेकर वे अपने विरोधियों पर गंभीर आरोप लगाने में कभी भी चुकते नहीं हैं, उसी संविधान में यह भी व्यवस्था है कि हरिश्चंद्र बने रहने के लिए आरोप लगाने के बाद जांच से उत्पन्न आरोपों की गर्मी की भाप से गुजर कर निर्दोष बाहर आने पर ही, अर्थात जांच की परीक्षा में सफलतापूर्वक परिणाम निकलने पर ही सत्यवादी हरिश्चंद्र कहलायेेगें? केजरीवाल के निर्दोष घोषित कर देने के प्रमाण पत्र से नहीं और ना ही नो की लकड़ी नब्बे खर्च वाले उनके विज्ञापनों से। केजरीवाल के ध्यान में यह बात अवश्य ज्ञात होगी। यही सिंद्धान्त अन्ना आंदोलन का मूल आधार जिसके लिए ‘‘अन्ना’’ के साथ केजरीवाल लड़े थे। जिस आंदोलन की अंतिम परिणिति की उत्पत्ति नौकरशाह केजरीवाल से राजनेता केजरीवाल के रूप में हुई।
एक आईआरएस (भारतीय राजस्व सेवा) अधिकारी आयकर कमिश्नर के रूप में कार्य कर चुके अरविंद केजरीवाल का यह कथन कि मैंने सत्येन्द्र जैन के सारे कागजात देखे है, केस बिल्कुल फर्जी है और उसे झूठा फसाया जा रहा है। हम कट्टर ईमानदार व देशभक्त लोग है। सर कटा सकते हैं, लेकिन भ्रष्ट्राचार नहीं करेगें। वाह "मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त"। वे यही तक नहीं रूके, बल्कि यह भी कह गये कि वह पदविभूषण या इस जैसा अन्य कोई भूषण पाने तक के अधिकारी हैं। अरविंद केजरीवाल ने किस हैसियत (एथोरिटी, प्राधिकार) से उन्होंने उक्त निर्णय दे दिया जो सिर्फ उन पर ही बंधनकारी हो सकता है, किसी अन्य पर नहीं। पढ़ा लिखा आदमी भी कभी-कभी अक्ल के अजीरण के कारण पगला सा होकर पागल जैसी हरकतें करने लग जाता है। वर्तमान जैन मामले में केजरीवाल का कार्य-रूप लगभग वैसा ही दिखता है। "बेवजह भी नहीं है यह बावला पन "। इस कड़ी में वे उपरोक्त अभियोजक, वकील, जज व जनता के साथ भविष्यवक्ता भी बन गये, जब वे टीवी पर आकर यह घोषणा कर देते है कि निकट भविष्य में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी गिरफ्तार होने वाले हैं।
यह बात भी सही है कि वर्ष 2015 में इन्ही अरविंद केजरीवाल ने अपने द्वितीय कार्यकाल (क्योंकि पहला कार्यक्रम तो मात्र 50 दिन का ही रहा।) में अन्य राजनीतिक पार्टियों व नेताओं को आईना दिखाते हुए अपने खाद्य मंत्री असीम अहमद खान को एक बिल्ड़र से 6 लाख रू. रिश्वत मागने के आरोप में बर्खास्त कर प्रकरण सीबीआई को सौंप दिया था। परंतु इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि किसी भी फिल्म के रिलीज होने के पहले ट्रेलर जारी किया जाता है, जो बड़ा प्रभावी होता है। परंतु हमेशा यह जरूरी नहीं होता कि फिल्म भी उतनी ही प्रभावी हो। यही सिद्धांत अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लेकर की गई कार्रवाई व अब बचाव पर भी लागू होती है। इसी प्रकार पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी अपने कार्यकाल के प्रारंभिक दिनों (लगभग 70 दिन के भीतर) में ही स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला को भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर दिया। अरविंद केजरीवाल की पूरी फिल्म सत्येंद्र जैन प्रकरण ने 2015 के ट्रेलर को गलत ही सिद्ध कर करते हुए "विशकुम्भम पयोमुखम" की युक्ति को सही साबित कर दिया। अभी भगवंत मान की पूरी फिल्म देखनी बाकी है?
क्या अरविंद केजरीवाल की याददाशत बहुत कमजोर हो गई है? या उन्हे याद दिलाना होगा? अंन्ना आंदोलन में भाग लेते समय भ्रष्ट्राचार को लेकर जिस बात को प्रमुखता से उछाला व मुद्दा बनाया गया था वह यही था, कि संसद में 150 से अधिक अपराधी व दागी सांसद चुनकर आये है, जिन पर सामान्य से लेकर जघन्य अपराधों के मुकदमें चल रहे है। यह असली संसद नहीं है असली संसद वह है जो लोग सामने खड़े हुए हैं। अतः दागी सांसद सब इस्तीफा देकर बाहर आयें। मुकदमा लडे़। और मुकदमें से बरी होने पर फिर से चुनाव लड़कर अंदर आए। क्या सरे आम दिन-दहाडे अरविंद केजरीवाल स्वयं को न्यायाधीश मानकर सत्येन्द्र जैन को क्लीन चिट देकर अन्ना आंदोलन के उक्त मूल सिंद्धान्त की हत्या नहीं कर रहे है? एक आरोपित भ्रष्ट्राचारी को सरंक्षण देना भी अपराध में शामिल होने समान ही है। इस बात को समझाइश देने की आवश्यकता अरविंद केजरीवाल को नहीं है। क्योंकि वे खुद कहते है कि मैं पढ़ा लिखा आदमी हूं, कानून की बहुत समझ है। कहावत है कि "जो जो भीगे कामरी त्यों त्यों भारी होय"। इसलिए मैं कहता हूं कि वे पढ़े-लिखे नहीं बल्कि ज्यादा पढ़े लिखे हैं।