पुण्य सम्राट के पटधर गच्छाधीपति का पेटलावद में हुआ पदार्पण
धर्म आराधना करे,उससे ही आत्मा का उधार है पूरे जीवन कमाया धन कोई काम नहीं आना है पुण्य सम्राट का मालवा से हमेशा से ही विशेष नाता रहा है
पेटलावद - पुण्य सम्राट आचार्य श्रीमद विजय जयंत सेन सुरीश्वर जी महाराज साहब के प्रथम शिष्य एवं पट्टधर गच्छाधिपति श्रीमद विजय नित्यसेन सूरीश्वरजी महाराज साहब आदि थाना का 4 अप्रैल को सेमलपाड़ा से विहार कर पेटलावद में पदार्पण हुआ। जिसके बाद नगर के प्रमुख मार्गो पर पूज्य श्री की समाज जनों द्वारा गहुली भी की गई। पूज्य गुरुदेव पेटलावद स्थित जैन मंदिर पहुंचे जहां विधि विधान पूर्वक प्रभु दर्शन किए।जिसके बाद उदय गार्डन पेटलावद में धर्म सभा का आयोजन हुआ। जिसमें पाटन से शिक्षा ग्रह कर गच्छाधीपति के साथ चल रहे शिष्य रत्न मुनिराज श्री निपूर्ण रत्नविजय जी महाराज साहब ने सभी उपस्थित समाजजनो एवं माताओं- बहनों को प्रवचन के माध्यम से धर्म से जोड़ते हुए कहा कि संसार का सुख परमानेंट नहीं है जिस प्रकार बाजार में कई चीजें मिलावटी मिलती है। उसी प्रकार हमारा जीवन भी मिलावटी है। आप खूब धर्म आराधना करे। बिना धर्म से कुछ भी नहीं है। बिना धर्म के हमारा जीवन बेकार है। जिसके बाद समाज जनों द्वारा गच्छाधिपति को कांबली वहराई गई।
पुण्य सम्राट का मालवा से विशेष नाता
पुण्य सम्राट आचार्य देवेश श्रीमद् विजय जयंत सेन सुरीश्वर जी महाराज साहब का मालवा से विशेष नाता रहा है। उन्होंने 2016 में खजूरी मालवा प्रांत प्रवेश में भक्तों से एक विशेष बात कही थी कि मालवा तो मेरे ह्रदय में बसा हुआ है। जिसके बाद मुनिराज निपुण रत्ना विजय जी महाराज साहब ने थांदला प्रवेश उत्सव में मंच के माध्यम से पुण्य सम्राट की उपलब्धियां गिनाई की उनका मालवा से विशेष नाता इस प्रकार रहा है। पुण्य सम्राट ने सर्वाधिक चातुर्मास मालवा में किए, उर्मि सम्राट की बड़ी दीक्षा भी मालवा में ही हुई, प्रथम एवं आखरी चातुर्मास भी मालवा में ही किया। प्रथम मौन साधना भी मालवा में की।लोक संत एवं राष्ट्र संत की उपाधि भी मालवा में प्राप्त हुई। प्रथम छहरी पारित संघ भी राजगढ़ से पालीताणा निकाला। प्रथम व अंतिम से सिवनी मालवा से प्राप्त हुए। प्रथम नवकार आराधना भी मालवा से शुरू हुई जो राणापुर से की।