वृध्द समाज और समाज का दायित्व
लिंगम चिरंजीव राव
वृध्दों का समाज समाज का दायित्व
जीवन भर उम्मीद के गलियारों से आगे बढते और उम्र के हर पडाव को पार करता मानव बीसवीं सदी को जिस अपेक्षा के साथ गुजारा उसकी वास्तविक कहानियों में जीवन तो बस आनंद का दूसरा नाम था ।बढती उम्र के साथ सम्मान के हर दौर के अनुभव की सीमा के साथ नयी पीढी को प्रेरणा देता बहुत ही सुंदर व्यतीत होता रहा ।हम कुछ इतना ज्यादा खुश थे की हमारी बनायी दुनिया का हमें जीवन भर बहुत ही आनंद मिलता रहेगा अर्थात हमारी औलाद हमारी दुनिया के साथ अपनी दुनिया को भी बसाते चलेगें ।सिमित साधनों मे गुजारा होने के आसार का जब विस्फोट आरंभ होने लगा तो हमें भी लगा की वक्त अब हमारे हाथ से फिसलने लगा है,और हम आने वाले समय की कल्पना में कुछ इस तरह डूबते चले गये जिसके कारण हमने अपना वर्तमान भी न संभाल सके साथ ही अनिश्चित भविष्य की चिंता ने हमारे जीवन को कुछ और कठिन बना दिया ।कहते है ना, कि खुद के लिए जीने को खुद ही कुछ करना जरूरी होता है । शिथिल हो रहे शरीर को संभाल कर रखना प्रकृति के साथ सामंजस्य इस उम्र के लिए बहुत जरूरी है । परंतु इसके अंतिम वर्षो में जब हमारे लिए विज्ञान के वो सभी साधन हमारी जरूरतो को पूरा करने के लिए हमारे जीवन को सरल बनाने आने लगे तो लगने लगा हमारा जीवन अब बहुत आराम से कट जाएगा .।धीरे धीरे समाज में संयुक्त परिवारो में विघटन, रोजगार के लिए परिवार के युवाओं का पलायन,गाँव और शहर के जीवन में शैने शैने बहुत सारे परिवर्तन का दौर देखने का समय हमारे जीवन में इक्कीसवीं सदी के आगमन के साथ जीवनशैली मे अमूलचूल परिवर्तन के साथ लगातार जीवन को हम वृध्दों के लिए कुछ अधिक ही दूभर करता जा रहा है
।हमारी समस्याओं ने जिसमें
(1)शारीरिक दुर्बलता—शरीर शिथिल,इन्द्रियाँ कमजोर,आँखों की रोशनी ,कानों से सुनाई देना, दाँत कमजोर,पाचन संस्थान,रक्त परिभ्रमण संस्थान,श्वसन संस्थान आदि का क्रमवार हास होने लगता है ।और शरीर अनेक बिमारियों का शिकार हो जाता है जैसे रक्तचाप,डायबीटिज,जीर्णरोग,हड्डियों की जोडो का दर्द.आदि.जिसके परिणामस्वरूप इस अवस्था मे कार्यशक्ति घट जाती है ।
(2)मानसिक रोगः- अस्वस्थता ,शारीरिक क्षीणता व मानसिक रोग बहुत हद तक दोंनों ही साथ-साथ चलते है ,असहाय स्थिति के परिणाम मानसिक चिंताओं का शिकार जो नींद न आने व मानसिक थकान से ग्रसित हो जाते है ।
(3)अकेलेपन की समस्याः- औधोगिकरण के परिणाम से उपजी नगरीकरण संयुक्त परिवार बिखर कर एकल परिवार की ओर अग्रसर होने लगा जिससे वृध्दा माता-पिता का साथ अनावश्यक होने लगा इस समय यदि वृध्द माता-पिता मे एक की भी मृत्यु हो जाती है तो इस अकेले परन की समस्या का कहीं हल नहीं मिलता।
(4)आर्थिक असुरक्षा की स्थिति –आर्थिक सुरक्षा संबंधी तनाव का भी सामना करना पडता है ,जब परिवार की आय कम हो जाती है तो बुजुर्ग भार लगने लगते है । युवा इस समय वृध्दो को अपने साथ रखना नहीं चाहते ।
(5)संयुक्त परिवार के आभाव की समस्या व उचित देखभाल की समस्या
– इसके आभाव में बुजुर्ग अपनी असहाय स्थिति में अर्थात बिमार आदि पढने पर संयुक्त परिवार में देखभाल हो जाता है पर वर्तमान परिस्थितियों मे इसका अभाव गंभीर समस्या है ।
(6)मनोंरंजन की समस्या – इस समस्या का आजकल जिस परंपरागत उत्सवों में और परिवारों के समारोहों मे इनकी पस्थिति का महत्व हुआ करता था आजकल ये सब धीरे धीरे छूटता जा रहा है ।आस पडोस में मित्रों के साथ मिलने से दिनचर्या सरलता से बीत जाती है ।
वृध्दो की समस्या का समाधान या वृध्दावस्था की समस्यों को सुलझाने के उपाय या सुझाव।
विश्व तथा भारतीय जनांकिकी व्दारा.वृध्दों की संख्या में लगातार बढोतरी जिसके लिए हमें अभी से घ्यान देना जरूरी –आने वाले कुछ ही वर्षों मे इसके आंकडे लगभग 48 से 50 प्रतिशत होने जा रही है .इस पर हमारा घ्यान जाना बहुत जरूरी है और नयी समस्याओं के निराकरण के रास्ते न केवल वर्तमान वृध्दों के लिए ही नहीं इसमें लगातार समय समय पर जुडने वाले वृध्दो के लिए भी सोचना जरूरी होने लगा है ।
संयुक्त परिवार व्यवस्था—के विघटन को रोका जाना यह एक ऐसा साघन है जो वृध्दावस्था की सारी समस्याओं को सामाजिक,आर्थिक और मानसिक रूप से सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम हो सकता है ।.सामुदायिक जीवन को मजबूत करने के प्रयास करना –इसी प्रकार अपने सभी कष्टो को भुलाने की प्रक्रिया में सामुदायिक जीवन बहुत सहयोगी साबित होगी । स्वस्थ्य मंनोरंजन की व्यवस्था –इस ओर घ्यान देना बहुत जरूरी होगा ताकि हमेशा हंसते रहे ।वृध्दावस्था को अनिवार्यता—के रूप में लेना होगा ना की बोझ के रूप में ।स्वास्थ्य संबंधी चिकित्सा सुविधा- इन्हें समय समय पर स्वास्थ्य संबधी चिकित्सा सुवाधाओं का भी ध्यान देना हमारा दायित्व है।आर्थिक सहयोग- वृध्दावस्था पेंशन की राशि को समय समय पर बढती मँहगाई आदि के साथ बढाई जानी जरूरी और जिससे उनका जीवन सुचारू रूप से चले ।प्रौढ शिक्षा के लिए इनकी सेवाओं का उपयोग करना- शिक्षित वृध्दों के अनुभव के सहारे आंशिक रोजगार के रूप में सक्षम वृध्दों को इस कार्य के माध्यम से जो इन्हें व्यस्त भी रख सके ।सबसे बढकर पारिवारिक माहौल देना – वृध्द सदनो और पालनाघरों को संयुक्त करने के सराहनीय प्रयास ने इस ओर जो कदम उठाए है , यह बहुत ही सुंदर और पारिवारिक परिवेश के लिए इतना उपयुक्त है । कुछ अपवादो छोडकर जो यदा कदा अखबारों मे आ जाते है ।
हमें जिस प्रकार से इन समस्याओं में घिरते हुए ही हमें इनमें रहते हुए उसके निदान ढूंढने के लिए मजबूर करते चले जा रहे है ।हमारे पास कुछ करने के लिए शारीरिक क्षमाता,सामाजिक परिस्थियों के साथ आर्थिक मार ने हमारे सपनों के साथ जो खिलवाड आरंभ कर दिया ।हमें जिसके कारण मजबूर हो परिवार के प्रति सकारात्मक सोच का जज्बा नकारात्मक दिशा की ओर मुडने की दिशा में हर दिन नये अध्याय जोडते हुए हमें इस दो राहे पर लाकर खडा कर दिया है । हमें सहारे की जरूरत तो हमेशा इस उम्र में रखनी ही होगी चाहे वो हमारी औलाद से या अपने परिवार के सदस्यों से हो या हमारे आसपास के समाज का कोई हिस्सा जो इसे संभाल सके ।हर जगह हमारे लिए आर्थिक स्थिति के आधार पर समस्याओं का सामना करना पडता है और यही हमारे परिवार को आजकल जोड कर रखता है ।हर बार हमारी समस्यों के निदान के लिए उचित समाधान नहीं मिल पाते जिसके कारण ये समस्याएँ विकराल रूप धारण कर हमारे जीवन को और अधिक कठिन बना देती है ।वृध्दा भिझुक के रूप मे जीवनयापन करना,वृध्दाश्रम मे शरण लेना, अन्य आसरे के सहारे जीने के लिए मजबूर होना, दूर दराज के गाँव से परिवार के सदस्यों के व्दारा कुंभ आदि मेलों मे या अन्यत्र लाकर छोडकर चले जाना, परिवार में रहते हुए परिवार वालो के अनुचित बर्ताव के कारण असहनीय पीडा के साथ न जी पाने के कारण खुद ही घर छोडकर चले जाना, शिक्षित बच्चों के व्दारा विदेशों में जाकर बस जाने के कारण व वहाँ की संस्कृति संस्कार के कारण निर्मित परिस्थितियों का असर भी इसका कारण बनता गया ।
अब समय हमारी समस्याओं के निदान हमें सवयं ढूढनें के कदम तलाश ने होंगे वृध्द –वरिष्ठ नागरिक को सरकार व्दारा दी जाने वाली अनेक सुविधाओं का ज्ञान और उनका उपयोग हमें पूरी सजगता के साथ करते हुए हमारे राष्ट्र को इसे पूरी निष्ठा के साथ लागू करने के प्रयास में निस्वार्थ भाव से सहयोग देना होगा ।हमारे लिए यह भी जरूरी हो गया है की हम हमारी संतान के साथ रह कर उनके प्रति हमारे कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए उन्हें भी इस बात का एहसास दिलाना होगा की उनके जीवन में भी इस तरह की समस्याएँ आने वाले समय में उम्र के इस पडाव में जरूर आयेगी और उन्हें भी इस तरह इस संधर्ष के लिए तैयार रहना होगा ।दूर दराज रहने के कारण लगातार यात्रा करते हुए हमारी शारीरिक अवस्था के कारण हर समय एक दूसरे के पास आ जा नहीं सकते आज के समय में यात्रा के साधन तो है पर व्यस्तता की स्थिति भी दिन दूनी रात चौगुनी होती जा रही है ।वृध्द इस बात को स्वीकार ले की मात्र युवा पीढी ही नहीं वरन् वे भी इस तरह के वातावरण के लिए जिम्मेदार है ।शिक्षा के साथ उनके जीवन को संवारने के वर्तमान समय में आर्थिक रूप से सक्षम होने के लिए अगर उनके पास विपुल पैत्रिक संपति है तो उसके होने से, उसकी वृध्दि की जिम्मेदारी ताकि वह नष्ट या बर्बाद न हो जाए या फिर नौकरी आदि के लिए अन्यत्र जाना अनिवार्य हो गया । समय रहते युवाओं के साथ तालमेल रखते हुए निर्धारित सीमा के अंदर सामंजस्य का परिचय भी आपको देना होगा ।
इस समस्या को वृध्द(महिला व पुरूष) गाँव व शहर जहाँ कही भी उनके रहने का उचित प्रबंध है अर्थात जिनके अपने मकान है ,परंतु परिवार के सदस्य साथ रह नहीं सकते और बुजुर्ग आर्थिक रूप से सक्षम है और मित्र जो सक्षम नहीं है साथ लेकर ।वे अपने हमउम्र मित्रों के साथ सहयोग से आपस में एक समुदायिक स्थिति का निर्माण करें जिसमें उस स्थान के गरीब शिक्षित बेरोजगार युवाओं की मदद के सहारे जिन्हें आपके सहयोग करने में असुविधा न होती हो का चयन करें हमउम्र सभी उनकी आर्थिक मदद के सहयोग से उनकी क्षमताओं के आधार पर अपने जीवन को परिवार के सदस्यों की अनुपस्थिति में भी संभाल सकते है ।
इसी तरह मनोरंजन के साधन भी उस स्थान पर कुछ इस तरह जुटाए जाए ताकि किसी एक पर उसका भार न पडे, सप्ताह के हर दिन हमारे शरीर की क्षमता के आधार पर व्यायाम ,योग ,सुबह शाम घूमने जाना आदि करते हुए अपने आसपास के वातावरण को स्वस्थ बनाए रखने में सथा संभव प्रयास करें ।अगर घर के आसपास या घर पर ही इतनी जगह हो की हमउम्र मित्रों को लेकर एक व्यवस्था यह भी की जा सकती है जिसमें कुछ खेलों का जैसे शतरंज,कैरम,लूडों व अन्य जो छोटी सी जगह पर 8 से 10 लोग बैठ कर समय बिताते हुए मनोरंजन किया सके। आजकल मोबाईल के कारण अखबारों की स्थिति उतनी अच्छी नहीं फिर भी संभव हो तो एक दो अखबार भी उस स्थान पर आ सके ..जिससे आपसी सोहार्द बना रहोगा और व्यक्तिगत मुलाकात से बहुत सी समस्याओं के हल भी मिलते रहेंगें ।
चिकित्सा संबधी सुविधा के लिए आपकी जो भी शारीरिक समस्याएं है जिनका आपको पहले से ही मालूम है ,नियमित रूप से डाक्टर की सलाह सरकारी या गैर सरकारी जो भी उपलब्ध हो उचित सलाह से दवाओं का सेवन करते रहें।बस एक बात का घ्यान रहे आप इसे कृपया छिपाने का कष्ट ना करें खासकर अपने सहयोगी मित्रों व शुभचिंतक परिवारजनों से ,जो आगे चलकर विकराल रूप न ले ले और संभलने योग्य न रहे ।
वृध्द महिलाओं के लिए भी समाज मे बहुत सी जिम्मेदारियां है उनके साथ अपने परिवार व आस-पडोस की हमउम्र महिलाओं के साथ सहयोग से परिवार व समाज के लिए बहुत सारे उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अपने जीवन का आनंद ले सकती है ।
वृध्द समाज इन छोटी छोटी बातों के सहारे अपने जीवन को बेहतर तरीके से हमेशा अपने जीवन में अपना ले तो वृध्दास्था का आनंद भी युवाओं की तुलना में अधिक ले सकेंगे ।
लिंगम चिरंजीव राव
मं.न.11-1-21/1 ,कार्जी मार्ग
पोस्ट-इच्छापुरम ,जिला-श्रीकाकुलम
आन्ध्रप्रदेश –पिन-532 312
मे.न. 8639945892 ईमेल- lchiranjiv@gmail.com