क्या कांग्रेस का चिंतन और ‘‘राजनीतिक विवेक’’ ‘शून्य’ हो गया है?
राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार
क्या कांग्रेस का चिंतन और ‘‘राजनीतिक विवेक’’ ‘शून्य’ हो गया है?
यूपीए सरकार के समय एक अनाम लेखक भारतीय राजनीति में परोसे जा रहे (क्योंकि इसे राजनीति का रिवाज बना दिया गया है) अपशब्द, राजनीतिक गालियों जहरीले बोल पर किताब लिखना चाहते थे। परन्तु उसमें वे असफल हो गये, क्योंकि तत्समय राजनैतिक सदाचार का वातावरण तुलनात्मक रूप से ठीक था, और विपक्षी दल अटल जी और आडवाणी की भाजपा का चरित्र निश्चित रूप से आज की तुलना में और कांग्रेस की तुलना में बहुत बेहतर था। अतः तत्समय विपक्ष अर्थात् भाजपा द्वारा सत्तापक्ष अर्थात् कांग्रेस के नेताओं को बहुत कम गालियां मिलने के कारण, वह किताब अधूरी ही रह गई। एनडीए सरकार आने के बाद जब गालियों का दौर चला तब उस अनाम व्यक्ति को पुनः ख्याल आया क्योंकि अब शब्दों से लेकर गालियों जहरीले बोलों की निडर बाढ़ सी आ गई।
राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा अधिकांश मामलों में ऐसे बयानों को रोकने के लिए नेताओं के खिलाफ प्रायः कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की जीती है, बल्कि अनदेखा कर दिया जाता है। इस प्रकार पिछले कुछ समय से इस रिवाज में तेजी से वृद्धि होकर कांग्रेस नेताओं द्वारा दी जा रही धडा धडा गालियों से उनकी इच्छा की पूर्ति होकर निकट भविष्य में किताब लिखी जा जाकर उसका प्रकाशन भी हो जाएगा, ऐसा मुझे लगता है। मेरे एक दोस्त जो यह लेख लिखते समय सामने बैठे थे, उन्होंने तपाक से कहा, भाई साहब इस विषय पर एक नहीं कई किताबें लिखी जा सकती है, क्योंकि इस समय दिल्ली में जैसे कचरे का पहाड़ (जो एक राजनैतिक मुद्दा) बन गया है वैसे ही गालियों का पहाड़ बन गया है। आप उनका अर्थ समझ ही गए होंगे। उन अभद्र गालियों का उदाहरण करना यहां शोभायमान नहीं होगा। कांग्रेस की वर्तमान में हालत ऐसी ही है।
हाल ही में मध्य प्रदेश कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री दमोह (हटा) के राजा पटेरिया का बयान बड़ा गर्म चर्चा का विषय बना हुआ है, जिस पर मध्य-प्रदेश सरकार के गृहमंत्री मिश्रा ने तुरन्त संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज कराकर पुलिस ने राजा पटेरिया को गिरफ्तार भी कर लिया। इन घटनाओं से एक बड़ा गंभीर प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि क्या कांग्रेस का शीर्षस्थ नेतृत्व इतना विवेक शून्य हो गया है? क्या कांग्रेसी नेतृत्व को इतनी सी भी समझ नहीं हैं कि इस तरह के बयानवीरों के बयानों से कांग्रेस को कौन सा फायदा मिलेगा? यदि कांग्रेस के बयान वीरों की यह बात मान भी जाए कि उन्होंने जो बयान दिया है, इसका अर्थ का अनर्थ निकाला जाकर उन्हें बदनाम किया जा रहा है, तब भी उनके अर्थपूर्ण बयान से कांग्रेस या बयान पर नेताओं को कोई फायदा होता दिखता नहीं है। क्योंकि ऐसे बयानों की कोई भी उचित संदर्भ या औचित्य दिखाई देता नहीं है। फिर भी यदि उनके बयान के बताये गये अर्थ को ही सही मान लिया जाए तो तब भी क्या उससे कांग्रेस को चुनावी फायदा हो सकता है? जनता की नजर में तो कांग्रेस के नेताओं के प्रति सहानुभूति ऐसे बेतुके निर्लज्ज बयानों से नहीं हो सकती है। स्पष्ट है कांग्रेस नेतृत्व में सही राजनैतिक सोच का परिपक्व अनुभवी नेतृत्व ही नहीं रह गया है, तभी तो यह स्थिति हो गई है।
विवेकहीन राजनैतिक शून्यता व दिमागी खोखलेपन का बड़ा उदाहरण राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा है, जो यात्रा के प्रारंभ होने के तुरंत बाद गुजरात में होने वाले चुनाव से नहीं (लगभग नहीं के बराबर) गुजरती है। परन्तु 2023 के दिसम्बर में मध्य-प्रदेश व राजस्थान से 12 व 18 दिनों के लिए गुजर रही है। यदि हार की ड़र से राहुल गांधी के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह लगने की आशंका के कारण गुजरात यात्रा नहीं ले गई तो भी 56 इंच के सीने वाले साहसी विपक्षी से मुकाबले में असफल ही ठहराया जायेगा। यह कोई धार्मिक यात्रा नहीं है? जैसा कि देश में लालाकृष्ण आडवाणी ने राम जन्मभूमि की धार्मिक यात्रा निकाली थी तथापि उससे भी उन्हंे व दल को बड़ा राजनीतिक फायदा मिला था। वस्तुतः भारत जोड़ो यात्रा एक राजनैतिक यात्रा है, जो कांग्रेस की जनता के बीच गिरते जनाधार को रोककर विस्तृत फैलाव करने की तथा राहुल गांधी के आभा मडंल पर पड़ी निराशा के धूल को हटाकर चमकीला बनाने का एक सार्थक प्रयास है। परंतु यात्रा के दौरान ही कांग्रेस के नेताओं को जोड़ना तो दूर, चली आ रही टूटन में वृद्धि ही होती गई। कांग्रेस की टूटन रुका नहीं। जनता की भीड़ आ रही है। परन्तु उसका फायदा तभी मिल पाता यदि कांग्रेस का संगठन मजबूत होता व जनता के मन में जगे उत्साह को कांग्रेस सही दिशा नेेतृत्व दे पाता। लेकिन दूर्भाग्यवश यह कहावत यहां चरिथार्त होती है ‘‘4 दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात’’। यात्रा अपनी चमक देती हुई क्षणिक चल रही है। परन्तु इसका प्रभाव कांग्रेस अपनी दिशाहीन नीति के कारण और कमजोर नेतृत्व के कारण नहीं उठा पा रही, जिसका ही यह परिणाम है कि भाजपा को चुनाव लड़ने के लिए ‘‘सबको परखा, हमको परखों’’ व ‘‘पार्टी विथ डिफ्ररेंश’’ का नारा गढ़ने वाली को अब नये नारे गढ़ने की आवश्यकता ही नहीं होती है।
वस्तुतः कांग्रेस की कार्यप्रणाली ही भाजपा को चुनाव जिताने के लिए नारा देती है। जब-जब कांग्रेस नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गाली दी, तब-तब प्रधानमंत्री की लोकप्रियता बढ़ी यह एक सच्चाई है। वर्ष 2014 में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने चायवाला कहकर भाजपा को चाय वाला का नारा दे दिया जो अंततः सफल हो गया जिस कारण ‘‘चायवाला’’ ही प्रधानमंत्री बन गया। ‘‘मौत का सौदागर’’ राहुल गांधी 2018 में ‘‘चैकीदार चोर है’’ के कथन को भी भाजपा ने मुद्दा बनाकर जनता की सहानुभूति ली। नवीनतम उदाहरण राजा पटेरिया का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर दिया गया बयान है जिससे दोहराना भी उचित नहीं है। उक्त कथन के लिए अभी तक राजा पटेरिया ने माफी नहीं मांगी है।
राजा पटेरिया का कथन आगामी मध्य-प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए भस्मासुर साबित न हो जाये? क्योंकि कांग्रेस ने उसके अर्थ या अनर्थ को अभी तक नहीं समझा है अन्यथा उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के पार्टी से अभी तक तुरन्त बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता। इसके पूर्व गुजरात चुनाव के दौरान कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के मोदी के प्रति अपशब्दों का प्रयोग कर कांग्रेस को गुजरात चुनाव में नुकसान पहंुचाया। इसलिए दिशाहीन कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने वाले कांग्रेस नेतृत्व की कमी के कारण मोदी व भाजपा का अगले पांच साल चुनावों में कोई खतरा भाजपा के लिए नहीं है यह साफ है।
परन्तु इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि भाजपा इस मामले में पूरी दूध की धुली है। भाजपा नेताओं के भी ‘‘बकलोल’’ कम नहीं है। परन्तु कमोत्तर जहरीले व थोडी बहुत मर्यादा लिये होते है। भाजपा का लगातार चिंतन शिविर व कार्यशाला लगाने के कारण यह बेहतर स्थिति हो सकती है। अतः वास्तव में कांग्रेस का दोहरी गति चिंतन शिविर लगाने की नितांत आवश्यकता है।
बावजूद इससे बडा प्रश्न यह उठता है कि कांग्रेस हिमाचल में अच्छा परिणाम दे पायी इसका मतलब साफ है। कांग्रेस अपने बलबूते अथवा नेतृत्व के कारण नहीं, बल्कि वहां भाजपा सरकार के बुरी तरह से असफल रहने के कारण जनता की नजर में अलोकप्रिय हो जाने से उसे मिली व चली आ रही परिपाटी का पालन हुआ। इसलिए तीसरा मजबूत वैकल्पिक विकल्प न होने के कारण कांग्रेस पुनः सरकार में आयी। यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर जो हिमाचल प्रदेश के ही है, सघन चुनावी दौरा नहीं करते तो शायद 25 सीटें भी नहीं मिल पाती। हिमाचल के चुनाव परिणाम भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को हिमाचल के संबंध में निर्णय लेने के लिए एक सीख जरूर देती है।