भोपाल। तुलसी मानस प्रतिष्ठान एवं महर्षि अगस्त्य वैदिक संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में मानस भवन में पं.रामकिंकर उपाध्याय सभागार में गीता सत्संग सप्ताह के अंतर्गत तृतीय दिवस की संध्या में गीता सत्संग की महत्ता पर बोलते हुए कहा कि जीवन का हरेक अनुभव उपदेष कर रहा है कि हम उस अनुभव से लाभ लेकर अपने में परिवर्तन करें।शास्त्रों के अध्ययन का तात्पर्य है कि दृष्टि में परिवर्तन लाना है। जैसे जब हम आत्मज्ञान से अनुभव करते है कि यह संसार परमात्मामय है। तब हम इस जगत को भोग की इच्छा से नहीं भोगते है बल्कि स्वयं भगवान का भोग बन जाते है। अर्थात् जगत को परमात्मा के रूप से देखने की दृष्टि से भोग भावना नहीं योग भावना प्रगट होने लगती है। आपने कहा कि भगवद् साधना का अर्थ है कि हम देहात्म भाव से हटे। कर्म से आनंद को प्रगट करें। साधना के इस स्तर पर होने से हमे अन्य से शिकायत नहीं होती है। आपने आकाश का उदाहरण देते हुए कहा कि आकाश सभी के कारण रूप होते भी किसी से प्रभावित नहीं होता है। इसी तरह आपने समुद्र का उदाहरण दिया कि समुद्र में छोटी और बड़ी लहरें उठती रहती है पर समुद्र प्रभावित नहीं होता है। अतः अपने स्वरूप का ज्ञान होने से हममें भी जब देहात्म भाव की निवृत्ति हो जाती है तो हमारी सभी भ्रान्तियों का निराकरण हो जाता है। जैसे हमारे जीवन में दुःख आने पर हम दुःख का कारण अन्य को बताते है। जबकि इससे हमको बचना चाहिये। अन्य से दृष्टि हटके स्वयं को सुधारने से अपना स्वभाव बदल जाता है। तब हम स्वयं को ही जिम्मेदार मानने लगते है। दुःख से निवृत्ति का इस संसार में यही षास्त्रोक्त उपाय है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में भागवताचार्य श्यामजी मनावत, सुधीर शर्मा, संजीव अग्रवाल,  प्रभुदयाल मिश्र, मनीष गुप्ता ने महाराजश्री का पुष्पहार से स्वागत किया।
कल सुबह साढ़े 8.30 बजे उपनिषद तत्व चिंतन तथा सायं 7.00 बजे गीता पर प्रवचन मानस भवन में होगें।