भारतरत्न भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जयंती 05-09-2024 

शिक्षक–दिवस-एक प्रभावपूर्ण दिवस 

शिक्षको का सम्मान हमारे राष्ट्र का सम्मान

भारत देश जो शिक्षा व अन्य कई विषयों के लिए विश्वगुरू के रूप में आज स्थापित होने की सीढियाँ पार करने में लगा है,विश्व के अन्य देशो की तुलना में हजारों वर्षो का इतिहास गवाह है, यहाँ के ऋषियो-मुनियों के समय से गुरूकुल,आश्रम,तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्व प्रसिध्द प्रावधान के साथ सुसज्जित शैक्षणिक संस्थाओं का घर रहा है ।आज स्थिति में जो परिवर्तन हम सभी देख रहे और महसूस कर रहे है यह कुछ विपरीत ही लगने लगा है।

हर कोई जानता है शिक्षा के बगैर मानव जीवन किसी काम का नहीं माना जाता अर्थात शिक्षा हमारे लिए बहुत जरूरी है जिसके सहारे हम सभी विश्व की रफ्तार के साथ आगे बढते हुए अपने राष्ट्र की उन्नति के लिए उपयोगी ही नहीं वरम समाज के हर क्षेत्र के प्रति सजग माने व जाने जाऐंगे ।   

हमारे शिक्षक,आचार्य,गुरू और सदगुरू दिव्यप्रकाश –स्त्रोत होते है.ज्ञान ,चेतना व अवस्था विशेष के दिव्य प्रतीक-प्रतिनिधि है ।कला सीखाने वाला शिक्षक,जिंदगी सीखाने वाला आचार्य,चेतना के गहन मर्म से परिचय कराने वाला गुरू और शिष्य को अपने में मिला लेने वाला सदगुरू कहलाता है ।इन परिभाषाओं को परिभाषित करते हमारे उस समय के शिक्षकों का स्तर और उनके ज्ञान की गहराई व शिष्यों के साथ सदभाव पूर्ण व्यवहार के अनेक गुणों से सुसज्जित रहे प्रमाण हमारे ग्रंथों मे मिलते है ।और यही उस समय के शिक्षको के सम्मान के कारण भी रहे ।भारत देश हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस हमारे भारत रत्न ,पूर्व राष्ट्रपति डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्म दिन को मनाता है, उन्होंने  ही अपने कुछ शिष्यों के आग्रह पर शिक्षक दिवस मनाने का प्रावधान किया था । यह 05-09-1962 से आरंभ हुआ, इनके जीवन काल में चार दशको तक ये एक आर्दश शिक्षक रहे ।इन्हें 27 बार नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था ।हमारे देश के अलावा विश्व के अनेक देश इस दिवस को मनाते है,जिसमें 100 से अधिक देश यूनेस्को व्दारा घोषित वर्ष 1994 में निर्धारित तिथि हर वर्ष 5 अक्टूबर को मनाते है । इसके अलावा अन्य कुछ देश कुछ अलग-अलग दिवसो पर इसे मनाते है।

चीन-कन्फ्यूशियस के जन्मदिन 27अगस्त को जो 1939 से आरंभ हुआ जो 1951 तक चला ,फिर एक घोषणा के तहत इसे वापस ले लिया गया और 10 सितंबर को ,फिर 5 अक्टूबर 1994-1995 से ।परंतु 1965 से 1994 तक यहाँ इसे अक्टूबर माह के पहले रविवार को मनाया जाता था।  ईरान-इस देश में 2 मई 1980 को प्रोफेसर अयातुल्लाह मोर्तेजा मोतिहारी की हत्या के बाद से इसी दिन मनाया जाता रहा है।तुर्की-मे 24 नवम्बर ,अमेरिका में -6 मई को मनाया जाता है ।मलेशिया- शिक्षक दिवस को हरिगुरू के नाम से जाना व मनाया जाता है ,यहाँ 16 मई को मनाया जाता है.।थाईलैणड-16 जनवरी को 1957 से मनाया जा रहा है ।

हमारे देश के इतिहास में दर्ज ये पाँच शिक्षक-गुरूओं की महानता को हम याद करते है –(1) द्रोणाचार्य (2)गुरू वशिष्ठ(3)महर्षी वेदव्यास(4)परशुराम और (5) चाण्क्य बहुत प्रभावशाली रहे ।

हमारे बीच बहुत से ऐसे ऐसे विव्दानों की उपस्थिति इस देश भारत में रही है जिनके लिए हम आज मात्र उन किताबों मे पढकर जानने लगे है ।शायद यह भी हमारी शिक्षा का एक अंग है ।शिक्षक दिवस के महत्व को समझने के लिए हर कोई हर बार यह कहता है की हमारे राष्ट्र बार बहुत सी बातों के माध्य़म से हमारी उन्नति के नये नये आयाम तलास करती रहती है ,आज शिक्षा के माध्यम से हमारे देश ने भी बहुत अधिक उन्नति की है ।हर उन्नति के पीछे हमारे समाज के लोगों और उनकी तत्परता ने ही बहुत कुछ बदलना पडने लगा है और इसके परिणाम भी बहुत ही सराहनीय रहे है।। 

हमारे शैक्षणिक जीवन में कुछ एसे भी गुरू रहे जिन्होंने कभी हमे कक्षा में आकर नहीं पढाया पर हमारे साथ हमेशा जुडे रहे-जी हाँ मैं उन पाँच महत्वपूर्ण किताबों के बारे में ,किताबें इंसान के जीवन के सबसे बडे शिक्षक होते है इनका योगदान एक शिक्षक की तरह ही होता है इनमें मेरे अनुसार हर किसी के जीवन में उनके स्कूल,कालेज के जीवन में इनका साथ मिलता है(1)श्रीमान डी.डी.बासु -70 वर्षों से भारतीय संविधान की सबसे आसन किताब(2)श्रीमान दत्तसुंदरम-इंडियन इकानोमी के करीब 100 संस्करण छप चुके है (3)श्रीमान दव्य रेन एण्ड मार्टिन-1935 से भारत पाक में पढाई जा रही –ग्रामर की किताब(4)श्रीमान आर डी शर्मा –छठी कक्षा से इंजिनियरिंग तक छात्र इनके गणित पढते है और (5)श्रीमान एच सी वर्मा- इनके तैयार किए 300 फिजिक्स के प्रयोग पर किताब बच्चो के लिए बहुत उपयोगी है ।इनके अलावा भी और कई किताबें है, जो हमारे शिक्षक बन हमारे साथ रहते है ।लगातार शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तनों के कारण और वर्तमान आवश्यकताओं के चलते शिक्षा नीति निर्धारकों के अनेक पहल हमारी शिक्षा नीति को ज जिस स्तर पर ला खडा किया है,इसके कारण आज शिक्षा बहुत मंहगी हो गई है।आम नागरिक इसके चलते अपने जीवन में कई उतार-चढाव देख रहा है ।   जिसके परिणाम भी हमें देखने को मिल रहे है ।शिक्षा का व्यवसायीकरण लगातार प्राईवेट स्कूल कालेजों का हर जगह बहुतायत मे हो जाना शिक्षको को आर्थिक समपन्नता के अलावा कोई दूसरा मार्ग या इस कार्य के प्रति पतिबध्ता की कमी ने शिक्षको अपने मार्ग से भटका दिया है। शिक्षको को राष्ट्र निर्माता कहा जाता है ।परंतु आज की व्यवस्था में शिक्षक इस दायित्व का निर्वाह पूरा नहीं कर पा रहे है ।कारणों का आकलंन बहुत विशाल है सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं के अनेक मापदण्डों से गुजरते हुए शिक्षक की कमर लगभग टूट गई है।इस तरह यह  पाया गया की सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है ।एक प्रमुख कारण जो दृश्टिगत है, कि शिक्षकों पर गैर शैक्षणिक कार्यों का थोपा जाना भी है और कुछ लापरवाही भी जिसके कारण उनको अपने कार्य के प्रति वे भी मात्र वेतन भोगी बनाकर रह गये है।जिसके परिणाम स्वरूप छात्रों को इससे बहुत नुकसान होता जा रहा है।इसके चलते शिक्षक अन्यत्र व्यस्त रहते है ।जिसके फलस्वरूप शिक्षको को अपना वार्षिक पाठ्यक्रम पूरा कराने की औपचारिकता पूरा करने में भी कठिनाई का सामना करना पडता है ।इसी के साथ अधिकतर सरकारी स्कूलों मे रिक्त पदों की संख्या अधिक है,जिसका प्रभाव उपलब्ध शिक्षको पर भी पडता है । उन्हें दो से तीन विषयो को बच्चों को पढाना पडता है ।इसके परिणाम स्वरूप अगली भावी पीढी के निर्माण के दायित्व में शिक्षक बच्चों के मानसिक व भावनात्मक विकास के लिए कम और सरकारी मशीनरी के लिए ज्यादा उपयोगी हो गये है ।इसमें कुछ प्रांतों मे सुधार हो रहे है ।बच्चों के रचनात्मक विकास का ये अदृश्यगत नकारात्मक पहलू है । हमें इस विषय मे सोचा जाना जरूरी है

अर्थात शिक्षक जबतक अपने कार्यक्षेत्र में गहराई व गंभीरता के साथ जुडेगें नहीं तो भावी पीढी को तराशने में कठिनाई का सामना होगा ।इसके अलावा नियमित शिक्षको की कमी हर पाठशाला मे है ।और इसके पर्याय के रूप  में संविदा शिक्षक, शिक्षाकर्मी, गुरूजी और औपचारिकेतर शिक्षक वगैरह के पद और पध्दतियाँ बनायी गई और अमल में भी लाया गया । जिसके परिणाम बहुत अच्छे नहीं रहे ये सभी जानते है स्वाध्यायी स्कूलों की संख्या का लगातार विस्तार हो रहा है ।जो उच्च तबको के लिए सुरक्षित है जहाँ मध्यवर्ग और निम्न वर्ग की पहुंच की कल्पना कर पाना एक ढेडी खीर लगती है ।  

आज हमारे पास एक नयी त्रिभाषी शिक्षा नीति 2020 जो आजादी के 34 वर्षों बाद हमारे लिए आयी है ,आज हम इसके मुहाँने पर खडे है ।पर उसमें भी पूर्णता नहीं लगती क्यों कि लागू करने के प्रावधान राज्य सरकार पर निर्भर है ,जहां हर प्रकार के दबाव भी है ,साथ ही इस नीति में यह भी प्रावधान है जहाँ तक संभव हो सके ,जो संशय की स्थिति बनाती है ।इस नीति के लागू होने पर हमारे शिक्षा के क्षेत्र मे अमूलचूल परिवर्तन तो दृश्टिगोचर होंगे ही जिसके लिए कम से कम 25 से 40 वर्ष तक का समय लग सकता है ।हमारी आबादी के प्रश्न में हमें इसे भी रखते हुए आगे सोचना होगा । शैक्षणिक संस्थानों को हर तरह से शिक्षको को नयी पध्दति से शिक्षा के प्रति जागरूकता लानी होगी इनके नये नये प्रयोगों को उपयोग मे लाने के लिए उचित संसाधनों को भी उपलब्ध कराते हुए हर संस्थान यह सुनिश्चित करते रहे की उनके संस्थान मे चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी हर तरह की सुविधा के मापदण्ड जो निर्धारित है उनका कडाई से पालन करते हुए शिक्षा के स्तर को पूरे भारत में समरूप रखने के प्रयास के साथ रोजगारोन्मुख शिक्षा के प्रति भी अपनी सजगता का परिचय भी हमे ही देना जरूरी होगा ताकि हमारी आने वाली पीढी जो आज बेरोजगारी के कारण जूझ रही है नके सामने अनेक विकल्प रहे मात्र सरकारी नौकरी के सहारे ही न रहकर अपना स्वयं का रोजगार की शुरूआत करने की क्षमता को भी उनके अंदर दाखिल करते रहना होगा। तभी हमारा यह शिक्षक दिवस उसके स्वरूप को पाने में सफल हो सकेगा।

शिक्षक दिवस, हमेशा ही समाजहित के लिए एक प्रभावशाली दिन है ।हमें आने वाले समय में इसके महत्व को बरकरार रखना है तो हमें आगे आकर इस महत्वपूर्ण शिक्षा-नीति को लागू करवाने के हर प्रयास करते हुए हमें हमेशा हमारी शिक्षानीति,स्थिति और नियत का आकंलन करना निहायत ही जरूरी है ।आज शिक्षक दिवस के दिन हमारे सम्मानित शिक्षको की मर्यादा का घ्यान रखते हुए अपने नकारात्मक सोच से अलग होकर उनके लिए एक सकारात्मक माहौल के निर्माण का दायित्व लेना होगा ,तभी हमारी आने वाली पीढी को एक परिशोधित वातावरण में शिक्षा प्राप्त करने के अवसर मिलेगें जो उनके भविष्य के निर्माण में अत्याधिक कारगर व सहयोगी होगे ।    

सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाई ।

लिंगम चिरंजीव राव (LINGAM CHIRANJIV RAO)

म.न.11-1-21/1 , कार्जी मार्ग

इच्छापुरम ,श्रीकाकुलम (आन्ध्रप्रदेश) 532 312