इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी दिन सोमवार को पड़ रही है. मकर संक्रांति को लेकर अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं. उत्तर भारत में काला तिल, गुड़, चूड़ा, दही और खिचड़ी के दान के साथ इस दिन इन सब चीजों को खाने की परंपरा चली आ रही है. इसके पीछे की मान्यता को लेकर ज्योतिष आचार्य पंडित दशरथ नंदन द्विवेदी जी से बातचीत की.

पंडित ने बताया कि काला तिल अपने आप में एक महत्वपूर्ण दान करने की वस्तु है. संक्रांति में काले तिल के दान करने का महत्व यह है कि शनि का जो द्रव्य होता है, वह काला होता है. इसलिए शनि की कृपा पाने के लिए काले तिल का दान किया जाता है. और इसमें दूसरा पहलू यह है कि जब प्रकृति अपने मौसम का परिवर्तन लेती है उस समय काले तिल का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है.
मकर संक्रांति में खिचड़ी का महत्व
कई प्रांतों में मकर संक्रांति को खिचड़ी के रूप में मनाया जाता है. ज्योतिष आचार्य पंडित दशरथ नंदन द्विवेदी ने बताया कि जाने के पीछे भी पौराणिक मान्यताएं हैं. मकर संक्रांति के इस पर्व पर खिचड़ी का काफी महत्व है. मकर संक्रांति के अवसर पर कई स्थानों पर खिचड़ी को मुख्य पकवान के तौर पर बनाया जाता है. खिचड़ी को आयुर्वेद में सुंदर और सुपाच्य भोजन की संज्ञा दी गई है. साथ ही खिचड़ी को स्वास्थ्य के लिए औषधि माना गया है. वहीं, इसका दूसरा पहलू यह है, कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी के साथ-साथ दही-चूड़ा भी खाया जाता है. धार्मिक दृष्टिकोण की बात करें तो इस दिन ये सभी चीजें खाना शुभ होता है.
इस दिन अन्न देवता की होती है पूजा
उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति के त्योहार से पहले ही सितम्बर, अक्टूबर में धान काटे जाते हैं और बाजार में नए चावल बिकने लगते हैं. यही वजह है कि अन्न देवता की पूजते हुए नए चावल की खिचड़ी बना कर इस दिन खाया जाता है. इसे पहले सूरज देव को भोग के रूप में दिया जाता है फिर खुद प्रसाद के रूप में खाया जाता है.