यात्रा संस्मरण “एक यादगार यात्रा अमरनाथ–बर्फानी बाबा”

        मैं जगदलपुर. छतीसगढ़ (बस्तर जिले) का रहवासी हमेशा देश विदेश के अनेक पर्यटन स्थलो की यात्रा का इच्छुक रहा और हर वर्ष अनेक यात्राओं को हमारे सभी मित्रों व परिवार के साथ अंजाम दे चुका हूँ। हमारे क्षेत्र के मेरे शहर के करीब प्रसिध्द चित्रकूट जलप्रपात जिसे पर्यटक छतीसगढ़ का नाइग्रा फॉल के नाम से जानते है इसके अलावा इस शहर के आसपास बहुत कुछ दर्शनीय व प्रकृतिक सौंदर्य पर्यटको को आकर्शित करता है। यहाँ का दशहरा भी बहुत प्रसिध्द है। इस शहर में पर्यटको के लिए आवास का एक प्रमुख होटल पर्थ इन का मैं संस्थापक हूँ, यहाँ आने जाने वाले कई पर्यटको के ठहरने की व्यवस्था से व उनकी परेशानियों के कारण बहुत सी जानकारी मिलती रहती है और पर्यटन से आंतरिक आनंद की अनुभूति भी होती है। इसी क्रम में मुझे मेरे परिवार व कुछ मित्रों के साथ इस वर्ष “अमरनाथ-भोले बाबा” के दर्शन का सौभाग्य मिला आज मैं अपनी इस यात्रा को आप सभी के साथ इस अखबार के यात्रा संस्मरण के माध्यम से साझा करना चाहता हूँ। एक कठिन यात्रा के संक्षिप्त अनुभव आप सभी के लिए एक लेख के रूप में आशा है अच्छा लगे इसी अपेक्षा के साथ जो कुछ इस प्रकार है। हर दिन की तरह एक दिन मैं और मेरी पत्नी हमेशा की तरह मॉर्निंग वॉक के लिए निकल रहे थे। तभी हुआ यूं कि अचानक मेरी पत्नी पंकज शराफ ने कहा चलो, आज काफी देर हो चुकी है, इसलिए आज यही पास वाले गार्डन में वॉकिंग करते हैं। और हमने गाड़ी वहीं पर पार्क कर दी और गार्डन में प्रवेश कर, वॉकिंग चालू कर दी, वॉकिंग करते-करते अचानक ही हमारी नजर हमारे पारिवारिक मित्र की पत्नी पर पड़ी वह भी निरंतर इस पार्क में वॉकिंग और एक्सरसाइज करने आती है। उनके पास पहुंच अभिवादन के साथ हमारी चलते चलते बातें होने लगी मैंने कहा क्या बात है आज वकील साहब वॉकिंग पर नहीं आए हैं उनके पति महोदय, उन्होंने कहा नहीं देर रात तक किसी केस की तैयारी में लगे हुए थे, तथा आज सुबह वह तैयार नहीं हो पाए हैं।हमारे मित्र और उनके परिवार के सभी लोग घूमने के अत्यंत ही शौकीन है। अतः इस विषय पर ही चर्चा होने लगी मेरी पत्नी ने कहा अब इस बार क्या प्रोग्राम है, कहीं बाहर जाने का कोई प्लान बन रहा है क्या ?  उन्होंने कहा कि मैं इस वर्ष अमरनाथ जाने पर विचार कर रही हूं यदि सब कुछ ठीक रहा तो जरूर ही अमरनाथ की यात्रा, बाबा बर्फानी जी की दया से हो जावेगी मैंने कहा यदि कुछ ऐसा प्रोग्राम बनता है तो हमें भी बताइएगा शायद दया हम पर भी हो जावे ।

                     

बात आई गई हो गई फिर कुछ दिनों बाद मेरी पत्नी पंकज ने फोन में चर्चा की क्या हुआ अमरनाथ जाने की कुछ बात बढ़ी। उन्होंने कहा की एक एजेंट से बात चल रही है वह हेलीकॉप्टर के द्वारा हमें पहुंचा कर हमारे दर्शन की व्यवस्था करेगा,  हमें लगा कि लगता है समय आ गया है।  एक दिन बैठकर तारीख निश्चित की गई और एजेंट से बात फाइनल करके एडवांस राशि  भेज दी गई ।
ट्रैवलिंग एजेंट के अनुसार रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था उसे ही करनी थी हमें सिर्फ मेडिकल चेकअप करवाना था,  हमने तारीखों के हिसाब से फ्लाइट की बुकिंग करवा ली और इंतजार में थे कि कब व समय आए और हम निकल पड़े अपने बर्फानी बाबा के दर्शन को,  किंतु शायद होनी को कुछ और मंजूर था कुछ दिनों बाद अचानक अहमदाबाद में एक अत्यंत ही दुखद घटना हुई और एक फ्लाइट क्रैश हो गई इस घटना में काफी यात्री असामयिक काल में समा गए और इसके पश्चात केदारनाथ में भी कुछ हेलीकॉप्टर की दुर्घटनाएं हुई इन सब परिस्थितियों को देखते हुए सरकार ने केदारनाथ और अमरनाथ जी की यात्रा पर नो फ्लाई जोन घोषित कर दिया और हेलीकॉप्टर के द्वारा की जाने वाली यात्रा पर रोक लगा दी हमने हमारे ट्रैवलिंग एजेंट से चर्चा कि उसने कहा कि यह रोक सभी के लिए लगाई गई है और तुरंत ही उसका कोई समाधन अवश्य निकलना वर्तमान मे मुश्किल है। अतः हेलीकॉप्टर के लिए जो राशि जमा की गई है वह वापस भेजी जा रही है। और राशि तो वापस आ गई।

अब हमारे सामने बड़ी समस्या यह थी कि यह यात्रा अमरनाथ की जो की अत्यंत ही कठिन यात्रा मानी जाती है कैसे की जावेगी क्योंकि इतनी कठिन चढ़ाई का किसी को भी अनुभव नहीं था और ना ही 12 घंटे घोड़े पर बैठकर आना जाना संभव लग रहा था फिर एक विकल्प के रूप में पालकी से आना और जाना ही उचित लगा यह विचार किया गया कि कुछ दूर पालकी से कुछ दूर पैदल चलकर यह यात्रा जरूर ही हम पूरी कर सकते हैं। हमने यह विचार कर हमारी यात्रा को जारी रखने का निश्चय किया और फिर हमने पूरा मेडिकल चेकअप करवाया और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन चेक किया तो वह तो पूरा जुलाई बुक ही दिख रहा था। हमारी फ्लाइट की बुकिंग तो 10 तारीख के दर्शन के हिसाब से हो चुकी थी हमने फिर से हमारे ट्रैवलिंग एजेंट से जानकारी ली उन्होंने कहा कि आप बैंक से चर्चा कीजिए बैंक के पास से भी रजिस्ट्रेशन भरे जा सकते हैं। हमने जानकारी लिए बैंक पंजाब बैंक आफ इंडिया इसके लिए अधिकृत बैंक थी वहां के ब्रांच मैनेजर और सभी कर्मचारियों ने अच्छा सहयोग किया किंतु उनके पास उसे तारीख का कोटा मात्र चार व्यक्तियों का ही था और हमारा ग्रुप आठ लोगों का हो रहा था अब क्या करें फिर समस्या सामने थी हमने आसपास के ब्रांचेस में भी पता किया किंतु वहां इसकी कोई सुविधा नहीं थी और हमारे शहर में 10 तारीख के लिए मात्र चार लोगों का कोटा था हमने 10 तारीख और 11 तारीख के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया और विचार किया कि वहां पहुंचकर ही पूरा प्रयास करेंगे की सभी के दर्शन एक ही दिन हो जावे ऐसा हो जाता तो काफी अच्छा था नहीं तो हम काफी परेशानी में पड़ने वाले थे। हमने ट्रैवलिंग एजेंट से बात की श्राइन बोर्ड श्रीनगर से बातें की उनको मेल भेजें वहां से तो कोई रिप्लाई हमें नहीं मिला ट्रैवलिंग एजेंट ने जरूर कहा कि आप रिक्वेस्ट कीजिएगा तो जरूर ही व्यवस्था हो जाएगी लेकिन सब कुछ अनिश्चित ही था। इस अनिश्चित परिश्थियों में एक प्रभु ही हमारे सहारे बने, हम भोले बाबा पर पूरा विश्वास करके निकल पड़े हैदराबाद के रास्ते से दिल्ली व श्रीनगर और श्रीनगर से बालटाल दूसरे दिन पहुंचे गए मन कई आशंकाओं से घिरा था पर विश्वास हम सभी के लिए बहुत सुकून दे रहा था और दर ही अंदर हलचल भी प्रदा कर रहा था। 
    बालटाल पहुंचने पर हम सीधे रजिस्ट्रेशन के लिए गए वहां पर काफी अच्छा सहयोग मिला और तुरंत ही हमारे आर.एफ.आई.डी कार्ड तैयार हो गये और हम निश्चित हो गए कि अब एक ही दिन सभी के दर्शन होंगे हमने बाबा बर्फानी को इस कृपा व उनके बुलावे के लिए कृतज्ञता के  बार बार शब्द हृदय में हम सभी के लिए इतने गहरे पहुंच गए की हम आध्यात्मिक चेतना के बहुत करीब होने लगे जिसने हमारी शक्ति को और अधिक बड़ा दी। मन मे विश्वास के साथ आगे की अभी बहुत सी परीक्षाएं बाकी थी। हमने पहले वहां रहने के लिए टेंट हाउस बुक किया दो टेंट हाउस किया जिसमें एक में महिलाएं तथा एक में हम पुरुष रुक गए इसके पश्चात हम लोग बालटाल घूमने के लिए निकले बालटाल में मानो पूरा बाजार ही लगा हुआ था और जगह पर भंडारों की व्यवस्था थी एक जगह बहुत ही सुंदर भजन चल रहा था। हम लोगों ने उसमें शामिल होकर भोले बाबा के भजन का भरपूर आनंद लिया इसके पश्चात लंगर में प्रसाद और भजन लेकर हम लोग लौटते हुए अपने लिए पालकी की व्यवस्था पर भी भीत कर ली और रात्रि विश्राम के लिए अपने-अपने टेंट में आ गए ,धीरे-धीरे बारिश चालू हो चुकी थी और बारिश ने अपना रौद्र रूप दिखाना प्रारंभ कर दिया था।  रात भर बारिश हुई और आसपास के टेंट वालों की बातचीत और अन्य शोर के कारण रात भर कोई भी बिल्कुल ही नहीं सो पाया । पालकी वाले ने हमें कहा कि यहां पर 4:00 बजे से यात्रा प्रारंभ हो जाती है अतः आप लोग 3:00 बजे तैयार हो जाइए ,ठीक है हम लोग 3:00 बजे रात्रि से ही तैयार हो गए किंतु बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे अब यात्रा हो तो कैसे धीरे-धीरे बारिश कम हुई और हम लोग उस स्थल पर पहुंचे जहां पर आर.एफ.आई.डी कार्ड को चेक कर यात्रियों को प्रवेश दिया जा रहा था, वहां पर भी भारी भीड़ का आलम था लोग उत्साहपूर्वक रेनकोट और छतरी पकड़कर अपनी अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमेशा इस यात्रा के पूर्ण होते तक हर पड़ाव पर क्यों एसी आशंका बनी रहती है। जिससे यह लग रहा था कि आज यात्रा हो पाएगी कि नहीं सभी कुछ ठीक होता गया चुंकि हमारा बुलावा बाबा बर्फानी के दर्शन का तय था सो उनकी दया से बारिश धीरे-धीरे कम हो गई और यात्रा प्रारंभ हुई।  हम सभी पालकी वालों के साथ यात्रा पर निकल पड़े पूरे रास्ते में बारिश के कारण काफी फिसलन और कीचड़ हो चुका था किंतु पालकी वालों का अनुभव इस समय काम आया वे बड़ी तेजी के साथ बाबा बर्फानी की गुफा की ओर चल पड़े धीरे-धीरे सुबह हो गए और उजाला फैलने लगा अत्यंत ही सुंदर दृश्य था चारों ओर पहाड़ ही पहाड़ और दूर-दूर पर अत्यंत ही मनमोहक बर्फ से ढ़की बर्फीली चोटिया दिखाई दे रही थी चारों ओर भक्ति का माहौल था। हर कोई जय बर्फानी बाबा के नारे लगाता हुआ आगे बढ़ता ही जा रहा था रास्ते में सी.आर.पी.एफ की ओर से सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की गई थी और जगह-जगह पर भंडारे चल रहे थे जहां निःशुल्क चाय और नाश्ते की व्यवस्था सुबह के समय थी। घोड़े से जाने वालों की व्यवस्था अलग से थी उनकी लाइन पूरी तरह अलग चल रही थी और पालकी वाले तथा पैदल यात्री सब एक साथ आगे बढ़ जा रहे थे। शासन ने एक साइड पूरी रेलिंग लगवा दी थी और कहीं कहीं सड़कों का भी चौड़ीकरण हुआ था अत्यंत ही कठिन चढ़ाई वाला रास्ता जो की मानव इंसान को चुनौती देता  प्रतीत होता था किंतु मानव भला कब रुका है। हमारी सनातन संस्कृति के ऐसे अनेक पल हमारे सामने उदाहरण के रूप में उपस्थित है जिसके कारण अपने ईश्वर से मिलने के लिए कठिनाईयां ही कठिनाईयों और कठिन रास्ते से गुजरने का होता है इस तरह का सफर जैसा कि हमने सुना था की यह यात्रा अत्यंत ही कठिन यात्रा के लिए मशहूर है यह अनुभव हुआ, वास्तव में अत्यंत ही कठिन था। किंतु धीरे-धीरे हम बड़े जा रहे थे, रास्ते में काली मां का मंदिर आया, यहां भी काली मां की अत्यंत सुंदर प्रतिमा चट्टानों पर उकेरी हुई थी, ऐसा प्रतीत हो रहा मानो वे अपने भक्तों को आशीर्वाद दे रही है कुछ इसी तरह की आस्था के साथ अदृश्य शक्ति का समावेश हमारे शरीर को उर्जावान करता रहा।

रास्ते में अत्यंत ही सुंदर अमरावती नदी का जल कलकल कर बह रहा था यह अत्यंत ही सुंदर दृश्य था तभी अचानक दूर से बाबा बर्फानी की गुफा के दर्शन हुए सभी ने जोरदार नारा लगाया जय बाबा बर्फानी और लगा कि अब हमारी यह कठिन यात्रा सफल हो चुकी है। और शीघ्र ही हमें बाबा के दर्शन होने वाले हैं।  लगभग 4 किलोमीटर दूर से इस गुफा के दर्शन हो जाते हैं अब सभी में और जोश आ गया और सभी तेजी से बाबा बर्फानी की और बढ़ने लगे चलते-चलते आखिर वह समय आ ही गया जब हम बाबा बर्फानी के द्वार के बिल्कुल नजदीक थे, यहां पर सभी सामान और जूते चप्पल मोबाइल आदि हमने पालकी वालों के पास जमा किए और आगे बढ़े दर्शनों के लिए रास्ते में यहां पर भी सिक्योरिटी चेकिंग हुई यहां किसी को कोई भी सामान ले जाने की इजाजत नहीं है इसके बाद ऊंची ऊंची सीढ़ियां जो कि बाबा के दरबार पर ले जाती हैं उसमें जाना होता है। हम उन सीढ़ियों की और बढ़े और धीरे-धीरे उसे पर चढ़ने लगे ऊंची ऊंची सीढ़ियां ढेर सारे भक्तों की भीड़ और ऊपर वातावरण मे ऑक्सीजन की अत्यंत ही कमी थी लोगों को सांस लेने में दिक्कत आ जाती थी। उसके लिए जगह-जगह पर  ऑक्सीजन के सिलेंडर उपलब्ध थे जब किसी को परेशानी होने पर इसका उपयोग कर दिए जाते थे। धीरे-धीरे सभी बाबा के सामने पहुंचे और दर्शन किए प्रसाद ग्रहण किया तभी बाबा बर्फानी के दर्शन करते समय अचानक ही वहां पर कबूतरों की जोड़ी भी आ बैठी ,अब लोगों का जोश और फिर बढ़ गया तथा बाबा बर्फानी के जयकारों से गुफा गूंज उठी। यह मेरी पत्नी के लिए एक अनमोल क्षण था क्योंकि 10 जुलाई जिस दिन हम बाबा जी के सामने थे उसी दिन उसका जन्म दिवस भी था । हमने बाबा बर्फानी को अत्यंत ही धन्यवाद दिया कि उनके अनुग्रह से हम आज के दिन उनके दर्शन प्राप्त कर सके हम मानसिक रूप से इस स्तर को पाने में अपने आप को सौभाग्यशाली मानने लगे मेरी पत्नी ने तो अपने जन्मदिन को आजीवन यादगार बना लिया । इस अनमोल दर्शन और वहां का ऊर्जामय वातावरण देखकर सारी थकान का एहसास  एक ही क्षण में दूर हो गया।  नीचे उतरकर हमने मंदाकिनी का जल लिया और चल पड़े वापस अपनी यात्रा पर जाते समय का उत्साह हमारे लिए दर्शन के साथ अपने चरम पर था। हम लौटते हुए यह सोच रहे थे क्या सब इतना सरल होगा। हम सभी बाबा की कृपा के पात्र रहे। मौसम अत्यंत ही सुहाना था रास्ते में जगह-जगह और भंडारे लगे हुए थे और विश्राम के स्थल थे हम लोग धीरे-धीरे वापस बालटाल पहुंच गए । यहां पर हमारी गाड़ी खड़ी थी हमने गाड़ी में सामान रखा और चल पड़े सोनमर्ग में अपने बुक किए हुए होटल की ओर। इस आलौकिक यात्रा में हमारे साथ हमारे पारिवारिक मित्र एडवोकेट आनंद विश्वकर्मा उनकी धर्मपत्नी एडवोकेट श्रीमती बिंदु विश्वकर्मा पुत्री आकांक्षा और पुत्र आकाश तथा उनकी बहन डॉक्टर सुनीता और डॉक्टर प्रदीप भी हमारे साथ थे । सभी ने इस पूरी यात्रा में भरपूर सहयोग किया और श्रीमती बिंदु विश्वकर्मा जी के विशेष सहयोग और मार्गदर्शन के कारण ही यह यात्रा सफल हो सकी । इस तरह एक कठिन पर यादगार यात्रा का सुखद समापन हुआ। आज इस यात्रा ने हमारे जीवन में जो नया संचार ऊर्जा का भरा है हम सभी कुछ और कठिन करने के लिए तैयार पाते है जब भी मौका मिलेगा हम फिर कोई यात्रा जरूर अपने एकरसता भरे जीवन से अलग कुछ नया कर अपने लिए यादगार पलों को सजा कर रखेगें ।

साभार- रमेश शराफ-पंकज शराफ जगदलपुर(छतीसगढ़)
प्रेषक- लिंगम चिरंजीव राव
स्वतंत्र लेखन , मो,न.8639945892