लखनऊ । उत्तर प्रदेश विधान मण्डल के उच्च सदन विधान परिषद में जातिगत जनगणना के मुद्दे को प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने पुरजोर तरीके से उठाया। बाद में इसी विषय पर सरकार के जवाब से असंतुष्ट होकर सपा के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया। दरअसल, सपा सदस्यों ने प्रदेश में जातिवार जनगणना कराने के मुद्दे पर शून्य काल के दौरान कार्य स्थगन का नोटिस दिया था। नोटिस में कहा गया है कि भारतीय जनता पार्टी समय-समय पर जातिवार जनगणना करने की बात कहती आ रही है लेकिन 2021 में नियमित जनगणना होने जा रही थी तो भाजपा ने जातिवार जनगणना कराए जाने से किनारा कर लिया। उसमें कहा गया है, “खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन के वक्त जातिवार जनगणना की बात कही थी। मगर ऐसा नहीं हुआ। समाजवादियों की मांग पर वर्ष 2011 में जातिवार जनगणना कराई गई थी मगर सरकार ने उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए थे।” 
नोटिस में कहा गया है, “सभी वर्गों को अपनी आबादी के अनुपात में अधिकार और सम्मान मिले इसके लिए जातिवार जनगणना ही एकमात्र रास्ता है, लिहाजा इस पर सदन का बाकी काम रोक कर चर्चा कराई जाए।” सपा सदस्य नरेश उत्तम पटेल ने नोटिस को स्वीकार करने पर बल देते हुए कहाकि, “न जाने किन कारणों से भाजपा सरकार जनगणना करने से भाग रही है। वर्ष 2021 से जातिवार जनगणना तो छोड़िए सामान्य जनगणना भी नहीं हो रही है। जाति के नाम पर भेदभाव हो रहा है।” उन्होंने दावा किया कि, “लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में 30 प्रोफेसर और 132 सहायक प्रोफेसर के पदों पर भर्ती होनी थी। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत का आरक्षण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए भी 10 फीसदी के आरक्षण की व्यवस्था होने के बावजूद वहां आरक्षण को बिल्कुल निष्प्रयोज्य कर दिया गया।” 
सपा सदस्य पटेल ने आरोप लगाया कि, “प्रदेश में जाति के नाम पर अन्याय हो रहा है। प्रदेश में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को नेस्तनाबूद किया जा रहा है।” वहीं सपा सदस्य स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी नोटिस को स्वीकार करने पर बल देते हुए कहा कि वर्ष 2010 में भाजपा के ही एक वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे ने कहा था कि अगर 2011 में जातिवार जनगणना करके पिछड़ों के हित का ख्याल नहीं किया गया तो इस वर्ग के लोग 10 साल पीछे हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि, “2019 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन गृह मंत्री और वर्तमान में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी सार्वजनिक मंचों से इस बात को कहा था कि जब हम आगे सरकार में आएंगे तो जातिवार जनगणना कराएंगे।” उन्होंने कहा कि, “लगभग 100 ऐसी जातियां हैं जिन्हें बाद में पिछड़ी जातियों में शामिल किया गया है। बाद में पिछड़े वर्ग में शामिल की गई जातियों को आनुपातिक रूप से आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है।” 
वहीं, नेता सदन एवं उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सरकार की ओर से जवाब देते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी जब शासन में रहती है तब उसे पिछड़ों और गरीबों की याद नहीं आती है। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में भर्तियों में आरक्षण के मुद्दे पर उन्होंने कहा, ‘‘किसी भी भर्ती को लेकर आरक्षण का मामला हो, उस पर सरकार पारदर्शी है। मैं सदन के माध्यम से घोषणा करता हूं कि आरक्षण के मामले में एक भी बच्चों के साथ हमने अन्याय नहीं होने देंगे। अगर अदालत में कोई मामला है तो हम न्यायालय की अवमानना करके उसपर कोई निर्णय नहीं ले सकते। जहां भी अन्याय हुआ है उसे रोकना और पीड़ितों को न्याय दिलाना हमारा काम है।’’ उन्होंने कहा कि ‘‘सपा सदस्यों ने जातिवार जनगणना का विषय रखा है। वे सभी वरिष्ठ लोग हैं और जानते हैं कि यह जनगणना केंद्र सरकार के माध्यम से कराई जाएगी और हमारे वरिष्ठतम नेताओं ने कहा है कि वे जातिवार जनगणना के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सपा जातिवार जनगणना करने की बात तो करती है लेकिन वह ऐसा करने के पक्ष में नहीं है लिहाजा सपा सदस्यों का नोटिस खारिज करने योग्य है।’’ इसके बाद सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने कार्य स्थगन नोटिस को अस्वीकार कर उसे सरकार के पास आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजने के निर्देश दिए। 
बाद में सपा के नरेश उत्तम पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्य, लाल बिहारी यादव समेत सपा सदस्यों ने नेता सदन के उत्तर पर असंतोष जाहिर किया। साथ ही नेता सदन से किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में हुई भर्ती में आरक्षण के मुद्दे पर स्पष्टीकरण मांगा और सभापति द्वारा रोके जाने के बाद सपा के सभी सदस्य सरकार विरोधी नारेबाजी करते हुए सदन से बहिर्गमन किया। इसके पूर्व, नेता सदन केशव प्रसाद मौर्य ने सदन के पटल पर वित्तीय वर्ष 2023-24 की अनुपूरक अनुदान मांगों को पेश किया।