सुचिता (सकुनिया) खंडेलवाल बैतूल/कलकत्ता  

देखो कैसी नगरी सज गई,
राम नाम की धुन हर एक के मन में बस गई।
बरसों से कर रहे थे जिस पल का इंतजार,
राम की कृपा से वह दिन भी आ गया।

हमने देखी सुनी मस्जिद से मंदिर के सफर की कहानी,
उस दर्द को शब्दों में बयां करना शायद गुस्ताखी हमारी।
पर आम से राम बनाने का सफर भी तो आसान न था,
काटों से भरा सफर तो उस युग में राम ने भी सहा था।

उस युग में भी राम गुजरे थे नियति के खेलों से,
अग्नि परीक्षा भले ही सीता की थी, पर जले तो राम ही थे,
कभी पिता के वचनों से तो कभी रघुकुल की मर्यादा से,
कभी लोक कल्याण के कर्तव्य से, तो कभी पत्नी की विरह में,
जले तो राम ही थे, तभी तो आम से श्री राम वो बने थे।

संयोग देखो कैसा फिर कलयुग में हुआ,
जो सर्वंस्व रहें, उनको तंबू मिला।
परिचय को उनके केवल आभास मिला।
पाँच सदीओं के षड्यंत्रों के चक्रों से,
दशरथ नंदन को फिर से वनवास मिला।

 बरसो के इंतजार के बाद आज 
आस्था ने परिणाम पाया है।
राम आगमन के सुख से अब छलक उठें,
वर्षों से जो भाव हृदय में संचित है।

करता स्वागत आज भारत का हर एक वासी,
अवध में प्रकट हुए श्री राम,
निभाने रघुवर-रघुकुल रीत,पधारे जन्मभूमि भगवान,
स्वागत है, स्वागत है, विराजेंगे सिंहासन में प्रभु राम।।