राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार)

"माननीय न्यायाधीश का आदेश !" कितना "न्यायिक" l
(वित्त मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी  दर्ज करने का आदेश l)


 "न्यायिक आदेश से राजनैतिक भूचाल" ! 

शिक्षा के अधिकार व कानून से जुड़े मुद्दों के लिए लड़ने वाला संगठन "जन अधिकार संघर्ष परिषद" द्वारा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 175 (पुराने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के अंतर्गत दायर की गई निजी शिकायत (पीसीआर) में कहा गया है, ''आरोपी संख्या एक (निर्मला सीतारमण) ने आरोपी संख्या दो (ईडी) की गुप्त सहायता और समर्थन के ज़रिए राष्ट्रीय स्तर पर आरोपी संख्या तीन (भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा) और कर्नाटक राज्य में आरोपी संख्या चार (कर्नाटक भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष नलिन कुमार  कटील) के लाभ के लिए हज़ारों करोड़ रुपये की उगाही करने में मदद की l बेंगलुरु महानगर की जन प्रतिनिधियों की विशेष अदालत (एमपी एमएलए कोर्ट) के 42वीं एसीएमएम कोर्ट के मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट ने प्रथम दृष्टिया मामला बनने के कारण आरोपों को सही पाते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एवं अन्यों के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 308 जबरन वसूली (एक्सटॉर्शन), 61 आपराधिक षड्यंत्र 3(5) सामान्य आशय, पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 384, 120B एवं 34 के अंतर्गत बेंगलुरु के तिलक नगर थाने को प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश करते ही देश के राजनैतिक हाल में भूचाल आ गया l मुकदमे के द्वारा मुद्दे उठाने वाले व्यक्ति की पृष्ठभूमि, स्थिति (स्टेटस) को देखते हुए यह न्यायिक प्रकरण, एक नई न्यायिक निर्णय की दिशा स्थापित करता हुआ दिख रहा है l प्रकरण के मुख्य विषय को एक बार आपको याद करना आवश्यक है, तभी आप समझ पाएंगे  " न्याय कितना न्यायिक है"? उक्त प्राथमिक आदेश की न्यायिक समीक्षा आगे हम कर रहे हैं l

"चुनावी बांड" को लेकर पूर्व में उच्चतम न्यायालय ने क्या कहा था ? 

उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बांड स्कीम (ईबीएस) को अवैद्य "असंवैधानिक" घोषित किया था। फलत: निर्णय के तुरंत बाद से चुनावी बांड की बिक्री को भारतीय स्टेट बैंक ने रोक दिया था l उक्त निर्णय कि महत्वपूर्ण बात यह रही की सर्वोच्च न्यायालय ने उसे असंवैधानिक घोषित करने के बावजूद खरीदे गए बांड्स की राशि को व्यावहारिक रूप से "अवैध" घोषित नहीं किया l शायद इसीलिए न तो वह राशि जब्त की या वसूली गई l मतलब निर्णय के पूर्व तक जिन व्यक्तियों कंपनियां ने बांड के माध्यम से पैसे दिए और जिन राजनैतिक पार्टियों ने लिए वह राशि एक तरीके से वैध माना l उच्चतम न्यायालय का  इस मामले में आदेश ठीक उसी प्रकार का है, जिस प्रकार महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार के मामले में राज्यपाल के आदेश को गैर संवैधानिक ठहराने के बावजूद उक्त असंवैधानिक सरकार को उच्चतम न्यायालय ने इसलिए चलने दिया क्योंकि उद्धव ठाकरे ने अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया बिना मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया l इसी प्रकार जब याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से आगे जांच के लिए एक एसआईटी गठन की मांग  की, तब माननीय न्यायालय ने यह कहकर उक्त मांग को अस्वीकार कर दिया था कि आगे जांच की कोई आवश्यकता नहीं है l उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय के उक्त दोनों प्रभावों को बेंगलुरु के माननीय विशेष मजिस्ट्रेट ने प्राथमिकि दर्ज करने के आदेश देकर व्यवहारिक रूप से निष्प्रभावी बना दिया जो कानूनी रूप से पूर्णत: गलत प्रतीत दिखता है l

 "जेएसपी" के सह अध्यक्ष आदर्श अय्यर के प्रमुख आरोप l 

शिकायतकर्ता जेसीपी कै सह अध्यक्ष आदर्श अय्यर के अनुसार पुलिस के समक्ष 15 विभिन्न शिकायतें की गई, परन्तु कोई कार्रवाई न होने के कारण यह एक पीसीआर की गई है l  आदर्श अय्यर ने विशेष मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर शिकायत में यह प्रमुख आरोप लगाया कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण व कुछ उन व्यक्तियों के द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों की सहायता से चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों को दिए गए दान के नाम पर जबरन उगाही (वसूली) की गई l अनिल अग्रवाल की फार्म से 230 करो और अरविंदो फार्मेसी से 49 करोड रुपए वर्ष 2019 से 2022 के बीच वसूली का आरोप लगाया गया l माननीय मजिस्ट्रेट ने लगभग 4 महीने में 10 से ज्यादा सुनवाई (हियरिंग) करके जबरन वसूली के अपराध को दर्ज करने के आदेश दिए गए l सत्ता का दुरुपयोग कर भाजपा के लाभान्वित पक्ष होने से उनके राष्ट्रीय पदाधिकारीयों व कर्नाटक प्रदेश भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष नलिन कुमार कटील तथा पार्टी के नेता अनिल खत्री को भी आरोपी बनाया गया है l विद्यमान परिस्थितियों के चलते और देखते हुए यह आदेश असामान्य व अविश्वसनीय लगता है l

 "क्विड प्रो क्वो" "quid pro quo" (प्रतिकर)

बड़ा प्रश्न यहां पर यह है कि इस मामले में क्या वित्त मंत्री के विरुद्ध "क्विड प्रो क्वो" अर्थात "प्रतिदान"   मतलब "कुछ के बदले कुछ" स्थापित होता है क्या ? क्योंकि बॉन्ड के पैसे तो वित्त मंत्री के निजी खाते में जमा हुए नहीं ? न ही ऐसी कोई साक्ष्य है कि वित्त मंत्री के कहने से अनिल अग्रवाल ने बांड के द्वारा पैसे भारतीय जनता पार्टी को दिए l एक जरूरी बात यह भी है कि 2 जनवरी 2018 को जब यह स्कीम लॉन्च की गई थी, तब वित्त मंत्री अरुण जेटली थे, जिन्होंने 2017 के बजट में उक्त स्कीम को पेश किया था, निर्मला सीतारमण नहीं थी l एक बात और यहां महत्वपूर्ण है कि जिस प्रकार कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए राज्यपाल की अनुमति ली गई थी वैसी ही अनुमति लिए बिगर क्या वित्त मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है ? क्योंकि वे भी सिद्धारमैया के समान एक लोक सेवक (पब्लिक सर्वेंट) हैं। तथापि 48 घंटे बाद माननीय कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निचले मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है l