महाशिवरात्री
सुचिता (सकुनिया) खंडेलवाल बैतूल/कलकत्ता
अहंकारी दशानन जब गरजा कैलाश पर,
धर दिया दशग्रीब को कैलाशपति ने माथे पर।
जब भूतनाथ ने बस छुआ भूमि को बृद्धांगुष्ठ से
दब गया महावीर तब भूमि के गोद में।
अपनी भूल का एहसास था नागराज को,
चीर के पेट अंतरियों से बना रुद्र वीना और रच डाला तांडव स्तोत्र को।
डोल उठी थी जब प्रलय के प्रकोप से ये सृष्टि
तब अपने कंठ कोष में धर लिया था महादेव ने।
अहंकारीयों और अज्ञानियों की जीवन लीला का अंत हो गया था,
जैसे देवो के देव शिव शंकर के तीसरे नेत्र खुलने पे भस्म हुआ कामदेव था।
भोले बाबा को प्रसन्न करना है बहुत आसान,
बाबा तो खुश हो जाते भक्ति और केवल भक्ति से।
तिथियों में तिथि है आज, शिवशंकर बस तुष्ट हो।
काल और बुरा हाल उसका क्या बिगाड़े जो उनका भक्त हो!
बिल्वपत्र, गंगाजल और पंचगव्यादि से;
काल के काल को पूजो बस श्रद्धा और भक्ति से।
महामृत्युंजय से जीवन प्राप्त हो जो मृत्युमुख में है पड़ा।
यमराज भी थरथराएं देख के महाकाल है खड़ा।
बस नमन करो शिवलिंग को और कामना जगतकल्याण की।
हर हर महादेव! शंभू शंकर।