जोशीमठ से तपोवन होते हुए 21 किलो मीटर की दूरी पर भविष्य बद्री मंदिर स्थित है, कहा जाता है कि अगस्त्य ऋषि ने यहां तपस्या की थी. सनत कुमार संहिता के अनुसार भविष्य में बद्रीनाथ जी के दर्शन इसी मंदिर में होंगे. इस मंदिर की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी. यहां पर शेर के मुख वाले नृसिंह भगवान की मूर्ति स्थापित है. ऐसी मान्यता है कि भविष्य में विष्णु प्रयाग के समीप पटमिला में स्थित जय और विजय पर्वत ढह जाएंगे और बद्रीनाथ जी का रास्ता अगम्य (न जाने योग्य) हो जाएगा. तब भगवान बद्री नारायण यहां पर विराजमान होंगे.
उत्तराखण्ड के चमोली जिले के जिला मुख्यालय गोपेश्वर में गोपीनाथ मंदिर स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है. यह उत्तराखंड का सबसे ऊंचा और विशाल मंदिर है. इस मंदिर को आठवीं सदी का निर्मित बताया जाता है, लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार यह मंदिर आदि काल से ही भगवान शिव को समर्पित है. यह मंदिर अपनी अलग वास्तुकला के लिए जाना जाता है. गोपीनाथ मंदिर में 30 फीट का गर्भ गृह है. स्थापत्य शैली के आधार पर मुख्य मंदिर का निर्माण 9 वीं और 11वीं सदी के मध्य या संभवतः कत्यूरी शासकों द्वारा किया गया था.
चमोली के कर्ण प्रयाग में अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम के नजदीक मां उमा देवी का मंदिर है. जिसे स्थानीय लोग 'उमा शंकरी' के नाम से भी जानते हैं. उमा देवी मंदिर में मां उमा की पूजा कात्यायनी देवी के स्वरूप में की जाती है जो राष्ट्रीय राजमार्ग-7 के पास स्थित है. कहा जाता है कि यह एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां मां उमा ने शिव को पति रूप में पाने के लिए निर्जला व्रत रखकर उपासना की थी. मान्यता है कि देवी हर 12 साल बाद अपने मायके जाती हैं, इसलिए आप इस मंदिर के दर्शनों से बद्रीनाथ यात्रा की शुरुआत कर सकते हैं.
उत्तराखण्ड के सीमांत जिले चमोली का जोशीमठ ब्लॉक सामरिक महत्व के साथ साथ धार्मिक महत्व भी रखता है. जोशीमठ में नृसिंह मंदिर परिसर के नजदीक ही नवदुर्गा मंदिर स्थित है. मंदिर में मां दुगा के 9 रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री रूप में प्रतिमा एक ही शिला पर स्थापित है. नवरात्रि ही नहीं बल्कि अन्य मौके पर भी यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.
उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में गंध मादन पर्वत पर भगवान नृसिंह का मंदिर है. यह दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां भगवान नृसिंह को शांत रूप में पूजा जाता है. मंदिर में उनकी प्रतिमा 10 इंच की है, जिसमें भगवान कमल पर विराजमान हैं. मान्यता है कि इनके दर्शनों से दुख, दर्द, शत्रु बाधा का नाश होता है. मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की बाईं भुजा बीतते वक्त के साथ घिस रही है. मान्यताओं के अनुसार, भुजा के घिसने की गति को संसार में निहित पाप से भी जोड़ा जाता है.
चमोली जिले के जोशीमठ नगर में पौराणिक ज्योतेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. जो NH 7 के नजदीक है. मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो हिंदुओं की आस्था का केंद्र बिंदु है. इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना 8वीं सदी की है, जो भारत के चार मठों में से पहले मठ ज्योतिर्मठ में मौजूद है. ज्योतेश्वर मंदिर परिसर में ही करीब 2500 वर्ष पुराना कल्पवृक्ष मौजूद है. इसी कल्पवृक्ष के नीचे आदि गुरु शंकराचार्य को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, जिसके कारण मंदिर का महत्व बढ़ जाता है.