गांधीनगर | गुजरात ने पिछले तीन दशकों में मैंग्रोव वन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई है, जो पर्यावरण संरक्षण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। आज गुजरात मैंग्रोव पेड़ों के संरक्षण के मामले में देश के अग्रणी राज्यों में से एक है। देश में मैंग्रोव कवर क्षेत्र के मामले में गुजरात, पश्चिम बंगाल के बाद दूसरे स्थान पर आता है। गुजरात का मैंग्रोव कवर यानी मैंग्रोव पेड़ों का क्षेत्र 1991 में 397 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2021 में 1175 वर्ग किलोमीटर तक बढ़ गया है, जो राज्य के महत्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने और उसे पुनर्स्थापित करने के गुजरात के ठोस प्रयासों को दर्शाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में गुजरात सरकार के मैंग्रोव रोपण और संरक्षण के निरंतर प्रयास फलीभूत हुए हैं, जो पर्यावरणीय संरक्षण के लिए राज्य को एक मॉडल के तौर पर प्रदर्शित करते हैं। मैंग्रोव कवर में वृद्धि न केवल जैव विविधता को प्रोत्साहन देती है, बल्कि कटाव और तीव्र हवाओं तथा चक्रवात आदि घटनाओं के विरुद्ध तटीय लचीलेपन को भी मजबूत करती है, जो राज्य के तटीय समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करता है। गुजरात में मैंग्रोव कवर के विस्तरण के बारे में बताते हुए वन एवं पर्यावरण मंत्री मुळुभाई बेरा ने कहा कि, “गुजरात सरकार ने राज्य में मैंग्रोव पेड़ों का रोपण बढ़ाने के लिए ईमानदार प्रयास किए हैं, और इसके परिणामस्वरूप आज गुजरात में मैंग्रोव आवरण 1175 वर्ग किलोमीटर तक फैल गया है। गुजरात मैंग्रोव कवर की दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे स्थान पर है, जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमेशा पर्यावरण संरक्षण के जरिए सतत विकास पर जोर दिया है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में गुजरात पर्यावरण संरक्षण और उसके जरिए ‘विकसित गुजरात से विकसित भारत’ की संकल्पना को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध है।”
पूरे गुजरात में मैंग्रोव पेड़ों का रणनीतिक वितरण
गुजरात का मैंग्रोव कवर रणनीतिक रूप से राज्य के चार मुख्य क्षेत्रों में बंटा हुआ है। राज्य का कच्छ जिला 799 वर्ग किमी मैंग्रोव कवर के साथ सबसे आगे है, जो राज्य के मैंग्रोव कवर का एक बड़ा हिस्सा है। जबकि मरीन नेशनल पार्क और अभयारण्य सहित कच्छ की खाड़ी, जामनगर, राजकोट (मोरबी), पोरबंदर और देवभूमि द्वारका जैसे क्षेत्रों का कुल मैंग्रोव कवर 236 वर्ग किमी है। खंभात की खाड़ी के अलावा डुमस-उभराट जैसे क्षेत्रों सहित मध्य एवं दक्षिण गुजरात क्षेत्र में, जिसमें भावनगर, अहमदाबाद, आणंद, भरूच, सूरत, नवसारी और वलसाड़ जैसे जिले शामिल हैं, 134 वर्ग किमी का मैंग्रोव कवर है। इसके अलावा, अमरेली, जूनागढ़ और गिर-सोमनाथ जैसे जिलों वाले राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में भी 6 वर्ग किमी का साधारण मैंग्रोव कवर है। गुजरात सरकार ने मैंग्रोव पेड़ों के महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 2014-15 से 2022-23 के दौरान मैंग्रोव पेड़ों के रोपण का व्यापक अभियान चलाया था। गुजरात के वार्षिक रोपण के प्रयास के चलते वर्ष 2016-17 में मैंग्रोव आवरण का 9080 हेक्टर तक विस्तार हुआ था। 4920 हेक्टेयर क्षेत्र में नए रोपण के साथ कच्छ की खाड़ी में सर्वाधिक रोपण हुआ था। विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वृक्षारोपण की प्रक्रिया को निरंतर जारी रखा गया है। वर्ष 2023-24 में राज्य में 6930 हेक्टेयर क्षेत्र में मैंग्रोव का रोपण किया गया, जबकि वर्ष 2024-25 के दौरान कुल 12,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में मैंग्रोव रोपण करने की योजना है।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का महत्व
मैंग्रोव तटीय क्षेत्र के वन हैं, जिसमें खारे पानी उगने वाले पेड़ों का समावेश होता है, जो पोषक तत्वों और गाद को फिल्टर कर पानी की गुणवत्ता को सुधारने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यह पारिस्थितिकी तंत्र समुद्री जीव सृष्टि को समर्थन देने, तटीय क्षेत्र की जमीन को स्थिर करने, लवणता को बढ़ने से रोकने और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है। एक अनुमान के अनुसार मछलियों और पक्षियों सहित लगभग 1500 प्रकार के पौधों और प्राणियों की प्रजातियां मैंग्रोव पर निर्भर हैं, जो मैंग्रोव के पेड़ों के नीचे के उथले पानी का प्रजनन नर्सरी के रूप में उपयोग करते हैं। हाल में हुए शोध ये बताते हैं कि बंदर, स्लॉथ, बाघ, लकड़बग्घा और अफ्रीकी जंगली कुत्तों जैसे स्तनधारी जीवों के लिए भी मैंग्रोव महत्वपूर्ण हैं। ये निष्कर्ष मछली और पक्षियों के लिए नर्सरी के रूप में मैंग्रोव की पारंपरिक भूमिका से आगे बढ़कर उनके व्यापक पारिस्थितिक महत्व को दर्शाते हैं। मैंग्रोव संरक्षण के लिए गुजरात की प्रतिबद्धता ने भारत सहित अन्य देशों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित किया है। अरब सागर से सटी राज्य की व्यापक 1650 किमी लंबी तटरेखा, जो भारत की कुल तटरेखा का 21 फीसदी से अधिक है, वह मैंग्रोव, मूंगा चट्टान और हरी शैवाल जैसी समुद्री घास सहित विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक आदर्श वातावरण का निर्माण करती है। राज्य के समर्पित संरक्षण प्रयासों के साथ यह प्राकृतिक अनुकूलता गुजरात को पर्यावरणीय स्थिरता में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाती है।
पिछले दो दशकों में मैंग्रोव कवर के मामले में गुजरात की उल्लेखनीय वृद्धि पर्यावरण संरक्षण के प्रति राज्य की दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रमाण है। वृक्षारोपण के व्यापक प्रयास और सरकार के समर्थन के साथ राज्य के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में मैंग्रोव के रणनीतिक वितरण के कारण न केवल जैव विविधता को बढ़ावा मिला है, बल्कि इसने तटीय लचीलेपन को भी और अधिक मजबूत किया है। मैंग्रोव संरक्षण के क्षेत्र में गुजरात निरंतर अग्रसर रहने के साथ ही दुनिया भर में टिकाऊ पर्यावरणीय संरक्षण के लिए एक बड़ा उदाहरण स्थापित करता है।