राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार) 

देश के ‘‘तंत्र’’ पर ‘‘चोट’’ कब तक पहुंचाते रहेंगे?

केजरीवाल की ‘धमाल’ घोषणा।

दो महीने बाद फरवरी 2025 में दिल्ली के चुनाव होने वाले हैं। चूंकि चुनाव की तारीख की घोषणा अभी तक हुई नहीं हुई है, इसलिए अभी तक ‘‘आचार संहिता’’ भी लागू नहीं हुई है। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल तीसरी बार सत्ता के घोड़े पर सवार होने के लिए जोश भरे उतावले ही नहीं, बल्कि पूर्वतः आश्वस्त भी है। यह नहीं वे इस लक्ष्य को मजबूती प्रदान देने के लिए ‘‘साम-दाम-दंड-भेद’’ नीति के साथ समस्त चुनावी लटके-झटके जो कुछ हो सकते है, पूरी ताकत से इस चुनाव में झोंक दे रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने पूर्व की योजना आधी बिजली फ्री, फ्री जल योजना, महिलाओं के लिए फ्री बस का आगाज करके जिस प्रकार मतदाताओं को भ्रष्ट करने का सफलतापूर्वक प्रयास किया, उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए बुजुर्गो के असीमित मुफ्त स्वास्थ्य के लिए ‘‘संजीवनी योजना’’ व 18 वर्ष से उपर की समस्त महिलाओं के लिए ‘‘महिला सम्मान योजना’’ के नाम से तुरंत 1000/- व नगद 2100/- रू.‘‘सत्ता पर आने पर’’ देने का वादा किया और घोषणा के साथ ही रजिस्ट्रेशन भी चालू कर दिया। परंतु राजनीति के ‘हाल’ इतने ‘बेहाल’ है और राजनेताओं का दिमाग खराब होकर ‘‘दिवालिया’’ कंगाल हो चुका है कि स्वयं ही इसी तरह की मुफ्त योजनाएं देने वाले, चुनाव पूर्व घोषणा करने वाली भाजपा व कांग्रेस, केजरीवाल की इन घोषणाओं को जनता को गुमराह करने की योजना बताते हुए ‘‘युवा कांग्रेस’’ तो प्राथमिकी दर्ज करने की सीमा तक चली गई। देश की बदहवास राजनीति में ‘‘मेरी’’ मुफ्त की योजना गरीब जनता की आवश्यकता की पूर्ति है और ‘‘आपकी’’ मुफ्त योजना ‘‘रेवड़ी’’ है, बेशर्मी से कहने से राजनीतिक पाटियां बिल्कुल हिचकती नहीं हैं।

सातवां आश्चर्य! सरकारी विज्ञापन से सरकार की ही घोषणा का खंडन।

अत्यंत आश्चर्य की बात है तो यह है कि स्वयं दिल्ली सरकार जिसके नाम पर उक्त मुफ्त योजनाएं की घोषणा की गई, के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय एवं स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक व विशेष सचिव ने बाकायदा सरकारी पैसे से समाचार पत्रों को लाखों रुपए का विज्ञापन जारी कर यह कहा कि इस तरह की दिल्ली सरकार में ऐसी कोई योजना न तो अस्तित्व में है और न ही अधिसूचित की गई है। नागरिकों को आगाह किया किया जाता है किस तरह के झूठे वादों को न माने व कार्ड बनाने के नाम पर निजी जानकारी न दे। क्योंकि ये स्कीम पूरी तरह से फर्जी भ्रामक और अनाधिकृत है। युवक कांग्रेस ने तो इसी स्कीम की घोषणा को लेकर भा.द.सं. की धारा 316 के तहत आपराधिक साठ-गाठ का मुकदमा दर्ज करने की मांग की है। देश के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि जिसे सरकार की योजना को इस सरकार के संबंधित विभाग के कर्मचारियों ने बाकायदा सिर्फ पत्र द्वारा नहीं बल्कि लाखों रू. का विज्ञापन देकर जनता को यह चेताया है कि इस तरह की योजना विभाग के पास नहीं है। इस प्रकार सरकार की किसी घोषणा के विरुद्ध जनता के बीच स्वयं सरकार का डिपार्टमेंट (विभाग) गया जो उनके अधिकार क्षेत्र में बिल्कुल नहीं है वे योजनाओं के प्रति सिर्फ अपनी असहमति फाइल पर लिखित में दर्ज कर सकते थे। यह एक ऐतिहासिक आश्चर्यजनक दुर्भाग्यपूर्ण घटना होकर पहली बार घटी है जबकि केजरीवाल की घोषणा में कहीं यह नहीं कहा गया कि रू. 2100/- देने की स्कीम को तुरंत लागू कर दिया है, बल्कि यह योजना चुनाव बाद लागू की जाएगी, यह स्पष्ट रूप से कहा गया। मतलब साफ है, चुनाव जीतने पर ही लागू किया जायेगा। 

योजनाओं द्वारा आम जनता को भ्रमित करने का आरोप! ‘‘आप’’ पर!

यह आरोप आम आदमी पार्टी पर लगाया जा रहा है कि मतदाताओं को लुभाने के लिए गलत व भ्रामक स्कीम का सहारा ले रहे है और आम लोगों की निजी जानकारी, स्कीम के तहत लेकर ओटीपी वेरिफिकेशन भी कराया जा रहा है। वास्तव में इस पूरे मामले में तीन योजनाओं  को समश्रित कर तथ्यों के विपरीत आरोप जड़ दिये गये हैं। प्रथम 12 दिसम्बर को महिलाओं को 1000/- रू. देने की घोषणा की गई जिसे इसके बाबत मुख्यमंत्री ने कहा है की कैबिनेट का निर्णय होकर स्कीम बाकायदा नोटिफाई कर दी है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की गई है कि चुनाव बाद सत्ता में आने के बाद यह रकम बढाकर 2100/- रू. दिए जाएंगे। अतः 2100/- रू. के लिए कोई अधिसूचना या कार्ययोजना बनाने का आज तुरंत कोई भी प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है। जैसा कि संबंधित विभाग ने विज्ञापन जारी कर ऐसी कोई कार्य योजना न होने या अधिसूचना जारी न होने से ‘‘भ्रामक’’ होने के कारण जनता को चेताया व कार्ड बनाने के नाम पर निजी जानकारी न देने की सलाह दी। 

नौकरशाही की दबंगता।

प्रश्न यह है कि इन विभागों के अधिकारियों के पास इतनी दबंगता, हिम्मत कहां से आई? इन अधिकारियों की दबंगता के दो मतलब निकलते है। 77 साल के स्वतंत्र भारत के इतिहास में नौकरशाही के एक स्वतंत्र संवैधानिक रूप से कार्य करने की उम्मीद की जाती थी, जो दुर्भाग्य वश वर्तमान में इस स्थिति में पहुंच गई है कि वे सरकार के नौकर न होकर सरकार में बैठे मुख्यमंत्री, मंत्रियों के नौकर हो गये, इस कारण उनका अपना कानून सम्मत स्वतंत्र मत व अस्तित्व समाप्त हो गया। क्या इन विज्ञापनों ने नौकरशाही ने अपना स्वतंत्र अस्तित्व व जनहित में सरकार के नियमानुसार काम न करने पर अपने अधिकार क्षेत्र में अंकुश लगाने की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार को स्थापित किया है? यह उपलब्धि अभूतपूर्व है, यदि वास्तव में इस विज्ञापन के पीछे यही उद्देश्य परिलक्षित होता है तो? परंतु वास्तव में तो तथ्यों को गलत तोड़ मरोड़ कर विज्ञापन में किया गया हैै। इसका दूसरा अर्थ जो बहुत ही महत्वपूर्ण है, वह यह निकलता है कि यह ब्यूरोक्रेसी यह मान कर चल रही है कि आगामी होने वाले आम चुनाव में आप पार्टी चुनाव जीत कर के आएगा (तभी तो रू. 2100/- मिलेंगे?) चूंकि इसका क्रियान्वयन इसलिए चुनाव के बाद होना है, जिसकी कार्ययोजना फिलहाल विभाग के पास नहीं है, यह बात जनता को बताना है। इस प्रकार जनता के सामने विभाग ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। 

‘‘अजब गजब’’ मध्य प्रदेश, देश, प्रदेश। 

मैं पहले भी लिख चुका हूं मेरा प्रदेश मध्यप्रदेश की ‘‘अजब गजब’’ की डिग्री को इसी तरह का कार्य करके (कैश कांड) ‘‘मेरा देश’’ महान स्वयं अजब गजब देश बनने की ओर चल पड़ा है। तब फिर अन्य प्रदेश भी इस दिशा की ओर क्यों नहीं चल पड़ेंगे? शायद इसी मन स्थिति कार्य दशा का यह परिणाम है कि दिल्ली प्रदेश सरकार के दो विभाग को उक्त विज्ञापन। ऐसा लग रहा है, भारत संघ के राज्यों के बीच उक्त ‘‘अजब गजब की डिग्री पाने’’ के लिए होड़ सी लग रही है। क्योंकि यह सफर कुछ कठिन है, इसलिए समय लग रहा है।

केजरीवाल की चतुराई। 

एक आरोप यह लगाया गया कि सरकारी कार्यालय के सामने कैंप लगाकर फार्म भरवाए जा रहे हैं। यह आरोप नहीं एक तथ्य है, परंतु यह कोई अपराध नहीं है। दफ्तर की बाउंड्री के बाहर यदि नागरिक गण या राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता गण कोई फार्म भरवा रहे हो, तो इससे यह सिद्ध नहीं होता है यह कार्य सरकार की ओर से हो रहा है, भले ही राजनीतिक पार्टी का कार्यकर्ता उसे पार्टी का सदस्य हो, जिसका सरकार है। हां "अकल अपनी ही आड़े आवे" की उक्ति को चरितार्थ करते हुए राजनीतिक रूप से जिस प्रकार राजनीतिक दृष्टि कलाकारी का उपयोग करते हुए केजरीवाल ने सरकारी कार्यालय के सामने टेबल लगाकर फॉर्म भरकर लगाकर एक ‘‘परसेप्शन’’ व ‘‘नरेशन’’ बनाकर जिसमें वे माहिर है, "डंके की चोट पर" जनता को यह समझाने का प्रयास किया है कि यह सब सरकारी स्तर पर हो रहा है, जिससे जनता का विश्वास ज्यादा बने। इसी प्रकार विपक्ष को अधिकार है केजरीवाल की उक्त राजनीतिक चाल की आलोचना करे, उजागर करें। साथ जनता के बीच जाकर बताये इस तरह की योजना नहीं है, यदि उनके मन में शंका हो रही है। यद्यपि अभी ‘‘लाट साहब’’ उपराज्यपाल ने इस संबंध में आयी शिकायत पर जांच करने के आदेश दिये है। 

चुनावी राज्यों में ऐसी घोषणाएं व फार्म भरे जा रहें है। 

जहां तक फार्म भरने की बात है, यदि विपक्षी पार्टी ऐसी घोषणा करती जैसा कि पूर्व में मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी की घोषणा करवा कर जनता से फार्म भरवाए थे, तो वे गलत कैसे हो गए? फॉर्म भरने के लिए यदि कोई डाटा मांगा गया, वह ‘‘स्वेच्छा’’ से नागरिक भर कर दे रहे, तो वह कानून गलत नहीं है। इन मुद्दों को लेकर नैतिकता की बात तो किसी भी पार्टी को करना ही नहीं चाहिए। ऐसे उदाहरण कई प्रदेशों जैसे महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड इत्यादि के पूर्व में मिल जाएंगे, जहां चुनाव पूर्व स्तर की घोषणा की गई और घोषणाओं के आधार पर फार्म भी भरवा गए।