प्रयागराज: आजाद था, आजाद हूं, आजाद रहूंगा। देश के लिए बलिदान देने वाले चंद्रशेखर आजाद ने जो कहा, उसे चरितार्थ भी किया। भारत माता के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद की ताकत उनके हौसले और हनक के किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे।

अंग्रेजों में भी एक डर ही था कि उन्हें खत्म कर देना चाहते थे, लेकिन आजाद की असल ताकत उनकी चिता की राख ने दिखाई थी। वह तब, जब चौक स्थित अभ्युदय प्रेस कार्यालय से अस्थिकलश कंधों पर रखकर पीडी टंडन पार्क ले जाया गया। वहां सभा हो रही थी जिसमें पहुंचीं प्रतिभा सान्याल के चंद शब्दों का ऐसा असर हुआ कि आजाद की चिता की राख चुटकी भर पाने को लूट मच गई थी।

1906 में हुआ था आजाद का जन्मदिन

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 1906 में हुआ था। उन्हें जब कंपनी बाग (अब आजाद पार्क) में 27 फरवरी 1931 को मुखबिरी होने पर कर्नलगंज पुलिस ने घेर लिया था और तत्कालीन एसपी जान नाट बाबर भी आ गया था तब आजाद की वीरता पहाड़ की तरह दिखी थी।

मासिक पत्रिका नर्मदा के 1964 में प्रकाशित आजाद अंक में पद्मकांत मालवीय और शिव विनायक मिश्र ने लिखा कि आजाद की अंत्येष्टि के बाद विद्यार्थी संघ के पदाधिकारियों ने चौक स्थित अभ्युदय प्रेस पहुंचकर हड़ताल की रणनीति बनाई थी।

सहमति बनी की अस्थि कलश का जुलूस शाम पांच बजे उठाया जाए। एक चौकी (तख्त) पर अस्थि कलश रखा गया। शाम पांच बजे जब उसे कार्यकर्ता कंधों पर रखकर नंगे पांव आगे बढ़े तो सभी के चेहरों पर गम और गुस्सा था।

राख लेने के लिए मच गई थी होड़

सुधीर विद्यार्थी की पुस्तक अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद में उल्लेख मिलता है कि पीडी टंडन पार्क में अस्थि कलश रखा गया। वहां सभा शुरू हुई तो क्रांतिकारी शचींद्र नाथ सान्याल की पत्नी प्रतिभा सान्याल पहुंच गईं। वह उस समय दुर्गा रूप में नजर आईं। इतना ही बोलीं कि खुदीराम बोस की भस्मी को लोगों ने ताबीज में भरकर अपने बच्चों को पहनाया था ताकि उनके बच्चे भी खुदीराम की तरह बहादुर देशभक्त बनें।

मैं उसी भावना से आजाद की एक चुटकी राख लेने आई हूं। प्रतिभा सान्याल ने यह चंद शब्द बोले ही थे कि अस्थि कलश से चुटकी भर राख लेने की होड़ मच गई। लोग ऐसे टूट पड़े मानो आजाद की ताकत उस समय राख के हर एक कण में आ गई थी। प्रतिभा सान्याल के लिए तक राख नहीं बची।

स्टेट संग्रहालय में है अस्थि कलश

आजाद पर बेहद बारीकी से रिसर्च कर रहे पीएसी चतुर्थ बटालियन के कमांडेंट प्रताप गोपेंद्र (आइपीएस) कहते हैं कि अस्थि कलश स्टेट संग्रहालय लखनऊ में रखा है। आजाद का बलिदान प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) में हुआ, अंत्येष्टि रसूलाबाद में हुई। उनकी पिस्तौल इलाहाबाद संग्रहालय में रखी है तो अस्थि कलश लखनऊ में होने का औचित्य नहीं है। इसे प्रयागराज लाया जाना चाहिए।