भोपाल । मप्र में विधानसभा चुनाव होने में एक साल से भी कम समय रह गया है। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस में रहने के दौरान ग्वालियर-चंबल अंचल में उनका विरोध कर जनाधार बनाने वाले भाजपा नेताओं में निराशा दिखाई देने लगी है। अब सिंधिया भाजपा में हैं तो पुराने नेताओं की पार्टी में पूछपरख कम हो गई है। स्थिति यह है कि टिकट वितरण के निर्णायक मोड़ पर ऐसे नेताओं के पाला बदलने की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। हाल ही में गुना-शिवपुरी क्षेत्र से भाजपा सांसद केपी यादव के भाई अजय पाल सिंह के कांग्रेस में जाने के बाद दिए बयान ने सिंधिया के पार्टी में आने के बाद अंतद्र्वंद्व से गुजर रहे नेताओं की स्थिति को चर्चा में ला दिया है।
पिछले लोकसभा चुनाव में सिंधिया परिवार की परंपरागत सीट गुना-शिवपुरी से भाजपा के केपी यादव ने कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराकर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। यह जीत इसलिए भी अहम थी क्योंकि केपी यादव कांग्रेस में रहते हुए सिंधिया के करीब थे। विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने पर नाराज होकर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। सिंधिया को हराने के बाद भाजपा में केपी यादव का कद बढ़ गया। अब जब सिंधिया भाजपा में आकर केंद्रीय मंत्री हैं और अपने समर्थकों को राज्य में मंत्री बनवाकर पार्टी में अपनी स्थिति मजबूत करते जा रहे हैं। ऐसे में ग्वालियर-चंबल अंचल में ऐसे कई नेताओं के लिए स्थिति असहज होती जा रही है जो सिंधिया या उनके समर्थकों के खिलाफ राजनीति करते रहे हैं।
केपी यादव असमंजश में
कांग्रेस में हाल ही में शामिल हुए केपी के भाई अजय पाल के बयान से भी ऐसे नेताओं की असहजता समझी जा सकती है। उन्होंने कहा था कि उनके भाई ने किस कारण पार्टी बदली थी सभी को पता है। आज वे (ज्योतिरादित्य सिंधिया) क्या कर रहे हैं और कितनी परेशानियां पैदा कर रहे हैं हो सकता है उन्हें (केपी यादव) यह निर्णय फिर लेना पड़े। उन्होंने संकेत दिए कि यदि भाजपा ने सिंधिया को शिवपुरी-गुना सीट से टिकट दिया तो केपी यादव कांग्रेस से उनके खिलाफ उतर सकते हैं। खुद केपी यादव भी पूर्व में आलाकमान को पत्र लिखकर सिंधिया समर्थक विधायकों और मंत्रियों द्वारा उनकी उपेक्षा करने और पार्टी का माहौल बिगाडऩे का आरोप लगा चुके है। हालांकि अजय पाल के बयान पर केपी यादव की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
भिंड-मुरैना में भी भीतर से चुनौती
ग्वालियर के अलावा भिंड और मुरैना में आधा दर्जन विधानसभा सीटों पर इस तरह की स्थिति बन सकती है। मुरैना केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की संसदीय सीट है। यहां विधानसभावार अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उन्हें अपने समर्थकों को प्राथमिकता दिलाना जरूरी होगा। ऐसे में पार्टी के सामने चुनौती खड़ी होना तय है। दिमनी सीट से सिंधिया समर्थक गिर्राज डंडोतिया उपचुनाव में हार गए थे यहां नरेन्द्र सिंह के कट्टर समर्थक शिवमंगल तोमर सक्रिय हैं। मुरैना विधानसभा सीट से सिंधिया समर्थक रघुराज सिंह कंसाना हार गए थे यहां से भाजपा से दो बार जीत हासिल कर चुके रुस्तम सिंह के अलावा उनके बेटे ने भी सक्रियता बढ़ा रखी है। भिंड में गोहद सीट से सिंधिया समर्थक रणवीर जाटव उपचुनाव हारे हैं वहां मूल भाजपाई लालसिंह आर्य दोबारा टिकट मिलने की राह में उनके लिए बाधा बन सकते हैं।