यादों के झरोखों से निकली मेरी एक पुरानी कविता
सुचिता (सकुनिया) खंडेलवाल बैतूल/कलकत्ता
भारत में अधिकतर घरों की सुबह चाय की प्याली के साथ होती है। यहां के लोगों का मानना है की अगर सुबह-सुबह चाय नहीं मिले तो उनका पूरा दिन बेकार हो जाता हैं। अक्सर यहाँ चाय सबके साथ बैठकर पीते है तो इससे रिश्तों में मिठास बनी रहती है ओर रिश्ता मजबूत होता हैं। और चाय के साथ सब अपने गिले शिकवे भी व्यतीत करते हैं। कई लोगों के सरदर्द की मर्ज होती है चाय...तो किसी के अकेलेपन की साथी।
किसी किसी की तो प्रेम कहानी चाय की प्याली के साथ शुरू होती है। और हमारे देश की तो खासियत है चाय पे चर्चा। इस चर्चा ने तो हमें प्रधान मंत्री के रूप में हमें एक कर्मयोगी भी दिया है।
बारिश के मौसम में चाय पीने का अपना अलग ही मज़ा है ओर साथ में गरम-गरम पकोड़े हो तो मज़ा ओर भी बढ़ जाता हैं ओर अगर चाय अपना कोई करीबी बनाए तो बात कुछ ओर ही हो जाती है।
चाय और हम
चाय और हम तो ऐसे हैं,
जैसे दिया और बाती
चाय बिन तो चलती नहीं जिंदगी हमारी ।
सुबह पहली किरण और चाय के साथ होती शुरुआत हमारी,
फिर तो निभाना होता चाय को नाश्ते के साथ भी यारी,
चाय बिन तो जिंदगी सुनी हमारी ।
जब बैठूं में तन्हाई में कुछ पल,
तो चाय की प्याली बन जाती सहेली हमारी।
जब उठता मेरे सर में जोरों का दर्द,
तो चाय बन जाती दवा हमारी ।
जब मिलते पुराने दोस्त हमारे,
तो चाय ही जमाती महफिलें हमारी।
चाय बिन तो सुनी जिंदगी हमारी। ।
जब होती उनसे तकरार तीखी तीखी,
तब मिलाती हमको चाय मीठी मीठी।
चाय और हम तो जैसे दिया और बाती। ।