नई दिल्ली । अक्‍टूबर 1990 में सगाई तय थी। परिवार का पूरा दबाव था। उसी दरमियानं विश्‍व हिंदू परिषद ने अयोध्‍या जी में कारसेवा के लिए समय निर्धारित कर दिया। फिर भला एक रामभक्‍त के लिए जीवन एक नई शुरुआत से पहले ईश्‍वर के चरणों में सच्‍ची सेवा की आहूति जरूरी थी। दोनों परिवारों में चिंतन हुआ और मेरी रामभक्ति के आगे तय हुआ कि पहले कारसेवा बाद में गृहस्‍थ सेवा। 24 अक्टूबर 1990 को टोली के साथ कारसेवा के लिए अवध असम एक्सप्रेस से अयोध्या के लिए कूच कर गए। यह कहानी है भाजपा के यमुना विहार मंडल के पूर्व महामंत्री भजनपुरा निवासी रोहताश कश्यप की। बकौल कश्‍यप उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। सख्‍ती ऐसी की परिंदा भी पर नहीं मार सके। हम भी बराती का वेश बनाकर पूरी टोली के साथ ट्रेन में बैठ गए। कई स्टेशनों पर मजिस्ट्रेट ने पुलिस के साथ मिलकर हमें उतारा और जांच की, लेकिन, मजिस्ट्रेट को यह आश्वस्त करके आगे बढ़ते रहे कि सभी लोग अलग-अलग कारणों से यात्रा कर रहे हैं। तय योजना अनुसार हरदोई स्‍टेशन पर ट्रेन बदलनी थी। यहां भी चेकिंग हुई, हमने आश्‍वस्‍त करा दिया कि कारसेवक नहीं हैं। लेकिन ट्रेन का इंतजार लंबा रहा, तभी टोली के एक कार्यकर्ता ने जय श्रीराम का जयकारा लगा दिया, फिर क्‍या था सरकारी अमला चौकन्‍ना हो गया। पूरी टोली की गिरफ्तारी हो गई। हरदोई से 25 अक्टूबर को सीतापुर जेल भेज दिया गया। दो दिन बाद ही प्रताड़ना के विरोध में कार्यकर्ताओं ने जेल में हल्ला मचा दिया। जेल के मुख्य दरवाजे के ताले तोड़ कर कारसेवक खेतों में करीब पांच किलोमीटर तक भाग निकले। पुलिस ने भी घेरेबंदी की और बंदूकें तान दीं। पीएसी आई तो उसने पुलिसकर्मियों की बंदूकें नीचे कराईं और हमें वापस जेल की ओर लाया गया। वर्ष 1992 में बजरंग दल के आह्वान पर तीन दिसंबर को साथियों के साथ अयोध्या की तरफ बढ़े। कश्यप बताते हैं कि छह दिसंबर का वो दिन मुझे आज भी गौरावान्वित करता है, जब साथियों के साथ ढांचे के किनारे वाले गुंबद पर चढ़ गया था। उस समय करावल नगर क्षेत्र की एक कार्यकर्ता मंजू त्यागी (ये बाद में पार्षद में बनीं) बीच वाले गुंबद पर चढ़ी हुई थीं। मैंने उनसे कहा कि मुझे हाथ दो ताकि मैं भी बीच वाले गुंबद पर आ जाऊं। उन्होंने मुझे हाथ दिया और मैं पहले वाले गुंबद को छोड़ दूसरे पर चढ़ गया। थोड़ी देर में देखा कि जिस गुंबद पर पहले चढ़ा हुआ था, वह भरभराकर ढह गया। मैंने प्रभु श्रीराम और मंजू त्यागी का धन्यवाद किया। यदि प्रभु की कृपा न होती और मंजू मुझे न खींचतीं तो शायद मैं भी बलिदान हो गया होता। इसके बाद अपना स्‍वेटर उतारा और वहां से दो ईंटें उसमें रख लीं। दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया कि वह भी यहां से मलबा उठाकर ले जाना शुरू करें, तभी यहां ढांचे का नामोंनिशान खत्म होगा। उसके बाद वहां पर ईंटें उठाकर ले जाने की होड़ लग गई। बकौल कश्‍यप उनमें एक ईंट आज भी मेरे पास है। 22 जनवरी को रामलला अयोध्या में बने श्रीराम मंदिर में विराजमान हो जाएंगे, उस दिन जीवन सफल हो जाएगा। जीवन में जो प्रण लेकर तपस्या की, उसका प्रतिफल मिलते देख सुखद अनुभूति हो रही है। जय श्रीराम।