कुश्ती का अखाड़ा। यौन शोषण का आरोप! एक टूल (हथियार) के रूप में (दुरु)/उपयोग?
राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार
कुश्ती का अखाड़ा। यौन शोषण का आरोप! एक टूल (हथियार) के रूप में (दुरु)/उपयोग?
देश में आज कल अखाड़ों में कूदने का ही मौसम ही आ गया है। एक मीडिया चैनल के डिबेट का नाम तो अखाड़ा ही है। हो भी क्यों न? अखाड़ा वह मैदान है, जहां दो पक्ष (पहलवान) अपने दांव-पेंच लगाकर अपनी कला का प्रदर्शन कर सामने वाले विपक्षी को चित करने का प्रयास करते हैं, जिसे कुश्ती कहा जाता है। राजनीति कुश्ती के अखाड़े में राजनैतिक दल और नेताओं के बीच परस्पर कुश्ती आम बात है (कभी-कभी नूरा कुश्ती के आरोप भी लगाये जाते हंै।) राजनीति की हो गई वर्तमान स्थिति के कारण ‘‘कुश्ती का दंगल’’ निश्चित समय 5 साल में न होकर लगभग लगातार चलने वाली कुश्ती हो गई है। परन्तु जिस कुश्ती खेल से प्रेरणा पाकर अखाड़े के मैदान में अन्य लोग कूदते हैं, उनको देखकर मूल अखाड़ा अर्थात कुश्ती के अखाड़े के खिलाड़ी लोग कैसे अपने को अलग कर पाते? ‘‘भला खलक का हलक किसने बंद किया है’’। कुश्ती के अखाड़े में अभी तक तो जो खिलाड़ी टीम उतरती थी, उन्हें प्रोत्साहित (बकअप) करने के लिए उनके संघ के पदाधिकारी मैदान पर हमेशा तैयार खड़े रहते थे। परंतु अभी इस समय देश में कुश्ती के अखाड़े में बकअप करने वाला संघ ही एक पक्ष बन गया है। एक तरफ खिलाड़ियों की टीम है, तो दूसरी तरफ उनके मैदान में उतारने वाली भारतीय कुश्ती महासंघ स्वयं की है। मैच की रेफरी सरकार है, तथा साथ में ‘‘खूंटे के बल पर कूदने वाला बछड़ा’’ वह मीडिया भी है, जो आपको मालूम ही है, निष्पक्ष रहने की स्थिति में रह ही नहीं गया है। क्योंकि प्रायः उन सबके मालिक किसी न किसी राजनीतिक विचार धारा से जुड़कर अपने एजेंडा (उद्देश्यों) की पूर्ति के लिए मीडिया को लगभग कब्जा में रखे हुए हैं।
इस अखाड़े में पहली बार संघ के मातहत खिलाड़ी अपने मालिक संघ (जिनके हाथों में समस्त खिलाड़ियों की नकेल है), के ऊपर ‘‘सौ सुनार की और एक लोहार की’’ तर्ज पर हावी होते हुए दिख रहे हैं। खिलाड़ियों ने संघ से निपटने के लिए ‘‘ईंट से ईंट बजा देने’’ वाले भाव से जो आरोपों की बौछार की है, उसमें संघ की विभिन्न अनियमितताओं के आरोप के साथ सबसे महत्वपूर्ण आरोप कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह जो कि एक सांसद (छःबार के) भी हैं, पर यौन शोषण का लगाया गया है।
वैसे किसी भी मामले में जब यौन शोषण का आरोप होता है, तब मामला बहुत गंभीर हो जाता है और उस पर तुरंत एफ आई आर दर्ज होकर जांच हो कर कार्रवाई प्रारंभ हो जाती है। यहां पर जिस तरह से आरोप और उनका निपटारा खिलाड़ियों और सरकार के खेल मंत्री ने किया है, उससे स्पष्ट है की यौन शोषण का आरोप एक टूल के रूप में उपयोग किया जा रहा है। क्योंकि खिलाड़ियों ने धरने पर बैठने के बाद यह मांग की थी कि यदि भारतीय कुश्ती महासंघ को भंग नहीं किया जाएगा तो धरने से जुड़ने वाले सभी युवाओं का करियर खत्म हो जाएगा? (एफआईआर की मांग नहीं की?) कार्रवाई न होने पर 4-5 महिला पहलवान एफआईआर दर्ज करायेगें। (इस सशर्त कथन का अर्थ आप बेहतर निकाल सकते है)‘‘ओछे की प्रीत और बालू की भीत’’ का इससे बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है?
यौन शोषण का मामला भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आता है न की किसी जांच समिति के अधिकार क्षेत्र में। यह हस्तक्षेप योग्य संज्ञेय (कॉग्निजेबल) अपराध है, जिस पर पुलिस को ही कार्रवाई करनी होती है। मेडिकल जांच होती है और तदनुसार अनुसार कार्रवाई आगे बढ़ती है। लेकिन यहां पर तो सरकार के प्रस्ताव पर आरोप लगाने वाली महिला खिलाड़ी भी इस बात पर सहमत हो गई कि एक कमेटी इस शर्त के साथ बना दी जाए कि जांच पूरी होने तक महासंघ के अध्यक्ष, अध्यक्ष के रूप में कार्य नहीं कर सकेंगे। जांच कमेटी 4 हफ्तों में अपनी रिपोर्ट दें। जब यौन शोषण के मामले में इस तरह की जांच की प्रक्रिया और सहमति शायद ही कभी देखी हो? इसलिए फिर से मै इस बात को दोहरा रहा हूं कि इस आरोपी को एक टूल के रूप में उपयोग किया जा कर खेल संघ और उनके अध्यक्ष पर दबाव बनाया जा रहा है। मेरा कहने का मतलब कदापि यह नहीं है कि अध्यक्ष बिल्कुल दूध के धुले हैं? या आरोपों में कुछ भी सच्चाई नहीं है? परंतु जिस तरीके से मामले को सुलझाया (टैकल किया) जा रहा है, इससे निश्चित रूप से यह ध्वनि निकलती है कि पहलवान एकजुट होकर लामबंद होकर कुश्ती संघ के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने जा रहे हैं और जिसमें उनको सफलता मिलती दिख भी रही है।
भारतीय कुश्ती महासंघ ने भी खिलाड़ियों के आरोपों का खंडन किया है। यौन शोषण के आरोपों को नकारा है। कुछ नये बनाये गये नियमों का विरोध का यह तरीका अपनाया जा रहा है। साफ कहा है कि इसके पीछे निजी एजेंडा है। प्रदर्शन के पीछे की छिपी हुई मंशा फेडरेशन पर दबाव बनाकर अध्यक्ष को हटाना है। यहां भी आश्चर्य की एक यह बात है कि सीधे किसी भी महिला पहलवान ने सीधे किसी व्यक्ति के विरुद्ध यौन शोषण का विशिष्ट आरोप न तो लगाया है और न ही इस संबंध में कोई प्रथम सूचना पत्र थाने में दर्ज कराई है। (अभी तक की जानकारी के अनुसार)। उनके प्रतिनिधित्व के रूप में स्वयं महिला पहलवान विनेश फोगाट ने जनरल रूप से महिला पहलवानों के यौन शोषण की बात इस स्पष्टीकरण के साथ कही है कि उन्होंने इस तरह के शोषण का सामना नहीं किया है। भाई वाह! ‘‘गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त’’! इससे कुश्ती संघ के आरोपों को बल मिलता है।
सबूत के साथ प्रदर्शन में बैठने के बावजूद अभी तक एफआईआर न लिखाने का कोई तार्किक कारण समझ में नहीं आता है। पिछले काफी समय से यौन शोषण चल रहा था, ऐसा आरोप लगाया गया। शायद ड़र के कारण तत्समय यदि तब एफआईआर नहीं लिखाई गई तो आज ड़र खतम होकर मीडिया के सामने बात की जा रही। तब भी एफआईआर दर्ज न कराना कहीं न कहीं इस बात को ही इंगित करता है कि इस पूरे प्रकरण का एक मात्र उद्देश्य ही भारतीय कुश्ती महासंघ की कुर्सी बदलवाना मात्र है।
क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि राष्ट्रीय महिला आयोग या राज्य महिला आयोग ने अभी तक यौन शोषण के आरोप के संबंध में कोई कदम नहीं उठाया है? महिला आयोग या मीडिया ने भी अभी तक यौन अपराध के संबंध में कोई प्रथम सूचना पत्र दर्ज न होने के बाबत पुलिस या खेल मंत्रालय की खिंचाई क्यों नहीं की है? यह भी समझ से परे है। खेल मंत्री द्वारा यौन शोषण के आरोपों सहित समस्त आरोपी को पुलिस अधिकार रहित समिति के सुपुर्द कर देना भारतीय दंड संहिता/दंड प्रक्रिया संहिता को साफ-साफ नजर अंदाज करना है, उसका उल्लंघन है।