परमेश्वर राव, प्रधान संपादक 

नरसिंहपुर ।   लगभग 40 वर्षों के राजनैतिक कैरियर में वर्तमान केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल फर्श से अर्श पर पहुंच गए। इस बीच वे हमेशा से ही अपने फैसलों से सबको चौंकाते रहे हैं। अपनों से बगावत करना हो या पार्टी की खिलाफत करना, श्री पटेल ने जो भी किया खुलकर किया। हर कार्यकाल के विवादों से वे हाईलाइट रहकर लाभ उठाते रहे।

●बार-बार संसदीय क्षेत्र बदलकर भी चौंकाते रहे, 2019 में नहीं बदलकर भी चौकाया

1989 में सिवनी लोकसभा से उनकी भाजपा ने टिकट घोषित की। तभी जनता दल से समझौता के कारण सिवनी सीट जनता दल को दी गई। पटेल ने समझौता न मानकर मैदान में डटे रहे नतीजन सबसे कम उम्र के सांसद बने और फिर भाजपा के ही साथ हो लिए।

1999 में उन्होंने लोकसभा क्षेत्र बदलकर सबको चौका दिया और बालाघाट संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े। वहां के कद्दावर नेता गौरीशंकर बिसेन से जमकर विवाद करके भी वे चुनाव जीते।

2004 उन्होंने फिर क्षेत्र बदला और छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे जहां कमलनाथ से पराजित हुए। यहां भी भाजपा के ही मंत्री चौधरी चंद्रभान सिंह से उनकी अनबन सामने आई।

2014 में वे अपने कार्यक्षेत्र से इतर दमोह लोकसभा क्षेत्र से टिकिट ले आए और मोदी लहर में स्थानीय नेताओं की नाराजगी के बावजूद भी भारी मतों से जीते। 

हर बार संसदीय क्षेत्र बदलने की परिपाटी से हटकर एक बार फिर सबको चौंका दिया जब वे दमोह लोकसभा क्षेत्र से ही 2019 में दोबारा टिकट ले आए। यहां भी भाजपा के ही कद्दावर नेता जयंत मलैया से अनबन व कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव के विधानसभा क्षेत्र में ही उनके खिलाफ शक्ति प्रदर्शन कर दिया। 

●राजनीति की बिसात पर ये फैसले भी रहे बहुचर्चित 

पिताजी मुलायम सिंह पटेल गोटेगांव में कांग्रेस पार्टी से पार्षद व नगर पंचायत उपाध्यक्ष रहे। पिता की पार्टी के विपरीत भाजपा में सदस्य बन गए और युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष बने।

गोटेगांव के मंडी अध्यक्ष अपने भाई जालम सिंह को 2003 में नरसिंहपुर विधानसभा की टिकिट दिला दी। 

आरंभिक दौर से ही जातीय गणित जमाकर कद्दावर नेत्री सुश्री उमा भारती के  साथ हो लिए उन्होंने केन्द्र में मंत्री बनवा दिया। सुश्री भारती के मुख्यमंत्री बनने पर सरकार में श्री पटेल ने सर्वाधिक प्रभावशाली भूमिका निभाई। 
सुश्री भारती की हाईकमान के साथ पटरी न बैठ पाने के हालात में दिए इस्तीफे के बाद 2005 में बनी भारतीय जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बने। कुछ महीनों बाद उमा भारती को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाकर स्वयं अध्यक्ष बनकर समर्थकों को चौंकाया। 

चुनावों में जनशक्ति पार्टी की लगातार असफलताओं के दौर में जब उनके भाजपा में जाने की बात मीडिया वालें पूछते तब "संकल्प में विकल्प नहीं होता" वाली बात सबको प्रभावित करती रही। इसके ठीक विपरीत 2009 में भाजपा में जाकर सबको चौंका दिया। 

Cm शिवराज सिंह चौहान के पत्नी के खिलाफ सबूत इकट्ठे कर डंपर कांड जमकर उछाला। 2016 में उन्हीं की सरकार में भाई जालम सिंह को राज्यमंत्री बनवाकर अपनी ताकत का लोहा मनवाया। 

कांग्रेस पार्टी से भाजपा में आने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरोध में बयानबाजी कर सुर्खिया बटोरी। कुछ दिनों बाद उनके घर जाकर गुलदस्ता देते हुए फोटो-वीडियो आने पर फिर राजनीति का यू-टर्न दिखा।

7 जून को परमहंसी गंगा आश्रम झोतेश्वर पहुंच कर स्वीकारोक्ती, कि वे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के दीक्षित शिष्य रहे है। फिर 30 साल बाद आश्रम वापस लौटे। सबको पता है इस बीच वह श्री बाबा श्री के अन्यन्य भक्त रहकर निर्वकार पथिक भी रहे।