लिंगम चिरंजीव राव

रायगढ़      किरोड़ीमल शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय रायगढ़, छत्तीसगढ़ (भारत) के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग द्वारा विगत 24 एवं 25 फ़रवरी को "छायावादोत्तर हिंदी कविता : रचनात्मक प्रतिबद्धता और सार्थकता" विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन सम्पन्न किया गया । जिसमें देश-विदेश के प्रतिष्ठित विद्वानों सहित पूरे अंचल से साहित्यनुरागियों की उत्साहपूर्ण सहभागिता रही। 24फरवरी 2023 को संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में प्रतिष्ठित कवि पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, देहरादून (उत्तराखंड), पद्मश्री हलधर नाग, बरगड़ (ओडिशा), अमेरिका से प्रवासी साहित्यकार डॉ.अनिता कपूर, शहीद नंद कुमार पटेल विश्वविद्यालय, रायगढ़ के कुलपति डॉ.ललित प्रकाश पटेरिया, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के सहायक निदेशक द्वय डॉ. दीपक पांडेय, डॉ. नूतन पांडेय, लिंगम चिरंजीव राव (आँध्र प्रदेश) की गरिमामयी उपस्थिति रही।  डॉ. स्नेह ठाकुर कनाडा का ऑनलाइन व्याख्यान हुआ।इसी तरह  चीन के शोधार्थी भी ऑनलाईन जुड़े । डॉ.मीनकेतन प्रधान के संयोजन और सौरभ सराफ के संचालन में उद्घाटन एवं अकादमिक सत्र की अध्यक्षता डॉ.विनय कुमार पाठक, पूर्व अध्यक्ष छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर ने की।सत्र समीक्षक के रूप में डॉ. रामायण प्रसाद टंडन, अध्यक्ष अध्ययन मंडल हिन्दी बस्तर विश्वविद्यालय, डॉ.अंजलि शर्मा, प्रो. शिव कुमार शर्मा की सक्रिय सहभागिता रही। आरंभ में कलाविद वेदमणि सिंह ठाकुर, जगदीश मेहर, मनहरण सिंह ठाकुर, ईशा यादव एवं अंगद द्वारा  सरस्वति वंदना सहित नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह ,मुकुटधर पाण्डेय इत्यादि कवियों की रचनाओं का सस्वर संगीतमय गान किया गया । कुलपति डॉ.ललित प्रकाश पटोरिया ने अपने उद्बोधन में इस आयोजन को साहित्य के क्षेत्र में अत्यंत महत्त्वपूर्ण कहा।स्वागत  वक्तव्य प्राचार्य डा.ए.के.तिवारी ने दिया।
       

 इस अवसर पर डॉ. मीनकेतन प्रधान और सौरभ सराफ द्वारा संपादित वृहत् ग्रंथ जो विगत तीन वर्षो से प्रतिक्षित थी "छायावाद के सौ वर्ष और मुकुटधर पांडेय" का विमोचन हुआ। सुरेंद्र कुमार मलिक, प्रकाशक नेशनल पब्लिशिंग कम्पनी नयी दिल्ली के प्रतिनिधि पंकज झा ने विमोचन में विद्वानों को ग्रंथ की प्रति भेंट कर प्रकाशन उपक्रम को रेखांकित किया इस ग्रंथ मे बहुत ही सार्थक व मूल्यवान जानकारियाँ छतीसगढ के प्रथम पद्मश्री प्राप्त छायावाद के प्रणेता मुकटधर पाण्डेय जी विषय मे उपलब्ध है। इस क्रम में डॉ.दीपक पांडेय द्वारा लिखित पुस्तक 'नार्वे के प्रवासी हिन्दी साहित्यकार सुरेश चंद्र शुक्ल की रचनाधर्मिता  के साथ ही महाविद्यालय की मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. शारदा घोघरे की साइकोलॉजी से संबंधित पुस्तक  का भी विमोचन किया गया। साहित्यकार सम्मान में हिन्दी सहित अन्य भाषा के प्रतिष्ठित रचनाकारों का सम्मान तथा नयी प्रतिभाओं को पुरस्कृत करना भारत के पूर्वांचल का सार्थक उपक्रम सिद्ध हुआ ।
         

  सत्रारंभ में संयोजक मीनकेतन प्रधान में संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए संक्षेप में विषय प्रवर्तन किया।आयोजन व्यवस्था में सौरभ सराफ ,डॉ. रवीन्द्र चौबे, लक्षेश्वरी कुर्रे, उत्तरा कुमार सिदार की अहम भूमिका रही । इस आयोजन मे मुख्य अतिथि के रूप में पजमश्री हलधर नाग और पदमश्री लीलाधर जगूडी उपस्थिति के सात सपपन्न हुई षइन व्दि दिवसीय संगोष्ठी के अन्य गणमान्य साहित्कार अमेरिका की प्रवासी साहित्यकार डा अनिता कपूर विषय विशेषज्ञ व डा.विनय कुमार पाठक विशिष्ठ अतिथि के रूप में छतीसगढ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष ,इसी विश्वविधयालय के कुलपति डा ललित प्रकाश पटेरिया ,केन्द्रीय हिंदी निर्देशालय के सह निर्देशक व्दय डा दीपक पाण्डेय और डा नूतन पाण्डेय ,दिल्ली विश्वविधालय के प्राध्यापक डा रामनारायण पटेल ,सहित्य वाचास्परि पुरस्कार से सम्मानित डा करूणा पाण्डेय व इस आयोजन के 2000 से 2500 देश-विदेश से मिली प्रतिभागिताओं में अमेरिका,नार्वे,ब्रिटेन,कनाडा और चीन के साथ भात के पच्चीस राज्यों से वक्ता,साहित्यकार,शोधार्थियों एवं छात्रो की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम की सफलता को ऊँचाई प्रदान किया । इस संगोष्ठी को चार प्रमुख सत्रों मे पूरा किया गया ।

प्रथम दिन के दो सत्र - सर्वप्रथम आयोजन की शुरूआत इसी शहर के प्रसिध्द कलागुरू वेदमणि सिंह ठाकुर ,जगदीश मेहर,मनहर सिंह ठाकुर ,ईशा यादव और आनंद के सामूहिक सरस्वती वंदना व स्वागत गीत के साथ हुई।पश्चात हिंदी विभागाध्यक्ष डा मीनकेतन प्रधान जी व्दारा इस संगोष्ठी के उदेश्य और सम्मानित अथितियों का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय और इसकी सार्थकता इस स्थान व इस महाविधयालयों के छात्रओं के लिए जो इससे अत्याधिक लाभांवित होंगे कहा और इसी लक्ष्य को सामने रक इस आयोजन के उदेश्य पर अपनी बात रखी । पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने इस अवसर पर संगोष्ठी के मूल विषय “छायावादोत्तर हिंदी कविता में रचनात्मक प्रतिबद्धता और सार्थकता “ पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस आयोजन से हिंदी भाषा का गौरव बढ़ेगा ।उन्होंने अपने व्याख्यान के ही कुछ महत्त्वपूर्ण कविताओं का पाठ कर  विद्यार्थियों एवं नयी पीढ़ी के रचनाकारों की व्यापक संलग्नता को रेखांकित किया ।आयोजन में उपस्थित पद्मश्री हलधर नाग ने समकालीन कविता पर बात करते हुए उड़िया भाषा और संस्कृति पर भी प्रकाश डाला तथा उड़िया की कविताओं का पाठ किया। पदमश्री हलधर नाग जी ने इस आयोजन के सूत्रधार डा मीनकेतन प्रधान जी को बधाई देते हुए अपनी कुछ कौशली(ओडिया) में रचि गयी कविताओं का पाठ किया इनके सभी महाकाव्य इनको कठंस्थ है हिंदी कविता और संस्कृति पर अपनी कुछ बाते रखी बहुत ही सरल सहज व्यक्तित्व के धनी।अमेरिका की प्रवासी साहित्यकार डॉ. अनिता कपूर ने छायावादोत्तर काव्यादोलनों  के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला एवं विभिन्न साहित्यकारों की रचनाओं का सार्थक विश्लेषण किया अपने विचार व्यक्त करते हुए छायावादोत्तर कविता के विभिन्न स्वरूपों मे विदेश मे लिखी जा रही हाईकू आदि कविताओं के साथ विदेशों मे हो रहे प्रयोगो का संक्षिप्त वर्णन किया । डॉ. दीपक पांडे ने प्रगतिवादी काव्य पर प्रकाश डालते हुए नागार्जुन, शमशेर, त्रिलोचन और केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं की महत्ता पर प्रकाश डाला।उन्होंने प्रगतिवाद ,प्रयोगवाद,नई कविता ,समकालीन कविता और परवर्ती कविता  के विकास क्रम सहित हिन्दी साहित्य की भावी संभावनाओं को रेखांकित किया।डॉ.रामायण प्रसाद टंडन ने सारगर्भित सत्र समीक्षा की।
             

   सत्र के अध्यक्ष के रूप में डॉ. विनय कुमार पाठक जी ने सत्र अध्यक्ष के रूप में अपने विचार रखते हुए इस आयोजन को पूरे अंचल के लिए अत्यंत ही हर्ष का विषय है कहा और इस विषय पर अपनी बात रखते हुए रचनात्मक प्रतिबध्दता और इसकी सार्थकता पर अनेक बातें रखी जो इस संगोष्ठी की सार्थकता दर्शाती है।डॉ. विनय कुमार पाठक ने आयोजन को  अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण माना।उन्होंने छायावादोत्तर कविता के विविध सोपानों का उल्लेख करते हुए युगीन संदर्भों में कविता की युगान्तरकारी भूमिका पर प्रकाश डाला ।डा.पाठक ने अपने उद्बोधन में सद्य: प्रकाशित पुस्तक  “छायावाद के सौ वर्ष और मुकुटधर पांडेय “ को पाठक,विद्यार्थी वर्ग के लिए उपयोगी बताया। इस पूरे सत्र के मध्य में इसी संस्था व्दारा अंचल के साहित्यकारों को साहित्यकार सम्मान से पद्मश्री व्दय लीलाधर जागूडी जी और हलधर नाग जी के कर कमलो व्दारा सम्मानित भी किया गया जो इस कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रहा ।

दूसरे दिन के दो सत्रः-  आरंभ मे सामूहिक सरस्वती वंदना के बाद। दूसरे दिन के प्रथम सत्र में वक्ताओ व्दारा प्रथम दिन के सत्र के पश्चात का कार्यक्रम जारी रखते हुए संगीत आदि का कार्यक्रम भी रखे गये।आयोजन के द्वितीय दिवस उपस्थित डॉ. करुणा पांडे ने संगोष्ठी के विषय -शीर्षक “छायावादोत्तर हिंदी कविता रचनात्मक प्रतिबद्धता और सार्थकता “ को आज से संदर्भ में प्रासंगिक ठहराते हुए  प्रयोगवाद एवं नई कविता के विकास को युगानुरूप काव्यांदोलन के रूप में विश्लेषित किया ।उन्होंने अज्ञेय, मुक्तिबोध आदि कवियों  की कविताओं को उद्धृत किया और जिन्हें आज के जीवन से जोडने का काम किया इस यात्रा की दिशा दशा पर भी अपनी बात रखी  ।डॉ. नूतन पांडे ने इस अवसर पर प्रवासी साहित्यकारों द्वारा लिखे  जा रहे साहित्य की चर्चा की। उन्होंने अपने वक्तव्य में अभिमन्यु अनंत एवं अन्य प्रवासी साहित्यकारों की रचनात्मक विशिष्टता का प्रतिपादन किया साथ ही 31 देशों के 123 से भी अधिक प्रवासी साहित्यकारों के विषय मे उनकी लेखनी व रचनाओं के विषय में चर्चा करते हुए भारत के बाहर हिंदी की श्रीवृध्दी लेखनी को अपना विषय बनाते हुए बहुत ही बहुमूल्य जानकारी दी ।इस दिवस में भी जनवादी कवि पद्मश्री लीलाघर जगूड़ी ने अपनी बहुचर्चित कविताओं के पाठ से श्रोताओं को मूल्यचेतना की दिशा में प्रेरित किया। तदंतर डॉ. राम नारायण पटेल ने (इसी कालेज के भूतपूर्व छात्र) के विस्तृत व्याख्यान में छायावादोत्तर काल की हर विधा पर अपनी विव्दवता पूर्ण बातों के साथ विषय को जो अनेको कविताओं अदि के माध्यम से विस्तार देकर इस संगोष्ठी को अपनी बातों से बहुत जानकारी देते हुए इसकी रचनात्मक प्रतिबध्दता और सार्थकता पर मोहर लगाई।इस सत्र के अंतिम वक्ता के रूप मे(इसी कालेज के भूतपूर्व छात्र) आंध्रप्रदेश से आये श्री लिंगम चिरंजीव राव ने इस अवसर पर नवगीत काव्य आंदोलन पर प्रकाश डालते हुए नवगीत के विषय को संक्षिप्त मे अपने विचार रखे अपने व्याख्यान में समकालीन हिंदी कविता पर विस्तार से अपनी बात रखी । आधुनिक हिंदी कविता किस रूप में समकालीन हिंदी कविता तक प्रसरित हुई यह उन्होंने अपने उद्बोधन में बताया ।उनके कुछ शोधार्थी प्रपत्र वाचन के लिए ऑनलाइन माध्यम से चीन से भी जुड़ कर प्रपत्र प्रस्तुत किया। । डॉ. रामायण प्रसाद टण्डन ने व्याख्यान सहित सत्र समीक्षा की। वरिष्ठ आईआरएस अधिकारी  अनिल पाण्डेय ने भी सत्र समीक्षा करते हुए पाठकीय दृष्टिकोण से आयोजन को सार्थक बताया। 

 दूसरे दिन का अंतिम सत्र- प्रपत्र वाचन सत्र का क्रियान्वयन प्रो.शिव कुमार शर्मा,डॉ.श्रीमती .रवीन्द्र चौबे ,उत्तरा कुमार सिदार,लक्षेश्वरी कुर्रे ,शिवानी शर्मा ने किया तथा संचालन डा.रमेश कुमार टंडन ने किया।प्रो. के. के. तिवारी,जया षड़ंगी ,डा.अभिनेष सुराना,डॉ .अर्चना झा,डॉ. आदिले, डा.हेमचंद्र पांडेय  , डा.सुचित्रा त्रिपाठी, डॉ.अंजलि शर्मा,डॉ.रोशनी मिश्रा , डॉ.विद्या प्रधान ,राम भजन पटेल , बनवारी लाल  देवांगन  ,प्रो.आर.के.तम्बोली, डा.फूल दास महंत  , प्रो.आर.के .पटेल.,वाई.के.पंडा,डॉ. अर्चना पाण्डेय, डॉ. बेठियार सिंह साहू ,डी.एस .चंद्रा ,वीरसेन सिंह,राहुल सराफ,लोचन प्रसाद गुप्ता,राजीव गुप्ता,छविलाल सिदार ,राम कुमार पटेल ,निमाई  प्रधान आदि द्वारा आयोजन संबंधी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की गई। अंत में महाविधयालय के प्राचार्य डॉ. अंजनी कुमार तिवारी ने इस भव्य व गरिमामय आयोजन को अपने हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष और इसके विध्यार्थियों को बधाई व अनेक शुभकामनाएँ दी । डॉ .पी .बी.बैस ने धन्यवाद ज्ञापित कर इस गरिमामय आयोजन को  महाविद्यालय की उपलब्धि बताया ।आयोजन में विदेश के अनेक प्रतिभागियों सहित देश के विभिन्न राज्यों से लगभग दो हज़ार प्रतिभागी ऑनलाइन माध्यम से जुड़े रहे।भौतिक रूप से शताधिक  विद्वतजन उपस्थित हुए । महाविद्यालय के प्राध्यापकों ,स्नातकोत्तर हिंदी विभाग  के अध्येताओं,आयोजक मण्डल -सदस्यों एवं स्नातक - स्नातकोत्तर के  विद्यार्थियों की सक्रिय उपस्थिति रही।समूचे आयोजन के क्रियान्वयन  में सौरभ सराफ ,शिवानी शर्मा,डॉ.विद्या प्रधान एवं स्नातकोत्तर हिन्दी साहित्य परिषद के अध्येताओं की अग्रणी भूमिका रही।संयोजक मीनकेतन प्रधान ने उच्चशिक्षा विभाग रायपुर एवं अन्य सहयोगी संस्थानों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित किया है।

 सभी देश विदेश से आये सहभागी साहित्कारो व विव्दवानों को भी बधाई संप्रेषित की गई ।साथ ही इस आयोजन के सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहयोगियों को धन्यवाद दिया ।महाविद्यालय के स्नातकेत्तर हिंदी विभाग के डॉ. रवीन्द्र चौबे ,सुश्री लक्षेश्वरी,श्री उत्तरा कुमार सिदार, डा रमेश टण्डन ,सौरभ शराफ ,बी के भगत एवं समस्त छात्रगण की सक्रिय उपस्थिति रही । इस दो दिन की संगोष्ठी में हिंदी के आंचलिक भविष्य के प्रति लोगों की जागरूकता के साथ महाविद्यालय के इस अतिविशिष्ठ प्रयास के कदम की सभी साहित्यकरों ने हृदयतल से स्वागत किया ।और भविष्य में एसे आयोजनों की आवश्यकता पर भी जोर देते हुए इस आयोजन के साथ जुडे संस्था के सभी संलग्न आयोजक मंण्डल के सदस्यो और विशेष कर डॉ. मीनकेतन प्रधान जी के इस सराहनीय प्रयास की प्रशंसा भी की ।