उदयपुर। राजस्थान के उदयपुर संभाग के आदिवासी क्षेत्रों में जहां लोगों को दो जून की रोटी और पीने का पानी जुटाने के लिए जूझना पड़ता है। परिवहन के ये हालत हैं कि गावों से मजदूरी के लिए शहरों को जाना भी जान का जोखिम है। रोडवेज या प्राइवेट बसों के बिना सवारियों से लदी खटारा जीपों में सफर करना ही उन लोगों की नियती है।
उदयपुर जिले के खेरवाड़ा कस्बे से पहाड़ा थाना होकर गुजरात का विजयनगर मार्ग या फिर खेरवाड़ा से फलासिया व झाड़ोल मार्ग पर प्राइवेट बसें नहीं चलती हैं। इन मार्गों पर दिन में दो बस रोडवेज की चलती थी। रोडवेज प्रबंधन ने 10 महीने पूर्व बसों का संचालन बेवजह बंद कर दिया। अब आदिवासी ग्रामीणों को मजदूरी करने जाना हो या शादी ब्याह या मौत मरण के कार्यक्रम में शरीक होना हो या फिर बच्चों को स्कूल जाना हो बिना परमिट और बगैर फिटनेस टेस्ट के चल रही खटारा जीपें ही आवागमन का जरिया हैं। इन फाइव सीटर जीपों में 25 सवारियों को बैठाकर किस्मत के भरोसे सफर पर ले जाया जा रहा है। गौरतलब है कि वर्तमान समय में हो रहे लोकसभा चुनाव और 5 महीने पूर्व हुए विधानसभा चुनावों में ग्रामीणों को गारंटी की रेवड़ियां बांटी गई। मगर सुरक्षित परिवहन साधनों को उम्मीदवारों और उनकी पार्टियों ने ही नजरअंदाज कर दिया है।