नई दिल्ली । ऐसा पहली बार होगा जब दिल्ली में नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य अपनी ही पार्टी को मत नहीं दे सकेंगे। दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी से गठबंधन के बाद कांग्रेस ने उस सीट को भी आप की झोली में डाल दिया है, जहां से उसके शीर्ष नेता मतदाता हैं। लगातार सिमट रहे दायरे के बीच कांग्रेस क्षेत्रीय दलों पर निर्भर होती जा रही है। जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा है, वहां स्थिति कुछ ठीक हैं, लेकिन क्षेत्रीय या तीसरे दल की उपस्थिति होते ही कांग्रेस कमजोर दिखने लगती है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल, त्रिपुरा, ओडिशा के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी का हाल राष्ट्रीय राजधानी में भी ठीक नहीं है। दिल्ली में लगातार 10 वर्ष से जीरो पर आउट हो रही कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में आइएनडीआइ गठबंधन के तहत आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर मैदान में उतरने का फैसला लिया है। दिल्ली में कुल सात सीटों पर आप और कांग्रेस के बीच चार के अनुपात में तीन सीटों के फार्मूले पर समझौता हुआ। आप की झोली में लोकसभा सीट नई दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली और पश्चिमी दिल्ली हैं। वहीं, कांग्रेस के पास चांदनी चौक, उत्तर पूर्वी और उत्तर पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट हैं। कांग्रेस के रणनीतिकार जब राष्ट्रीय राजधानी में गठबंधन के तहत सीटों का मोलभाव कर रहे थे, तब शायद सोचा भी नहीं गया कि नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से मतदाता पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका वाड्रा अपनी ही पार्टी को वोट नहीं दे सकेंगे।
दिल्ली में कांग्रेस का यह दूसरा मजबूत किला रहा है। किंतु 2014 के लोस चुनाव के बाद से स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है।