उपाय सम्यप् होना चाहिए। उपाय का बड़ा महत्व होता है। जहां समस्या आती है, आदमी उपाय खोजता है। समाधान तब तक नहीं होता, जब तक उपाय नहीं मिल जाए। उपाय स्वयं भी खोजा जा सकता है और उपाय खोजने के लिए गुरू की शरण या उस विषय को जानने वाले व्यक्ति की शरण भी ली जा सकती है।  
कोई संन्यासी था। भीड़ बहुत होती। सभी संन्यासी अपरिग्रही नहीं होते। कुछ संन्यासी बहुत परिग्रह भी रखते हैं। यह अपनी-अपनी परम्परा है। बड़ा आश्रम था। बहुत धन और बहुत लोगों की भीड़। वह परेशान हो गया। गुरू के पास जाकर बोला, गुरूदेव! और तो सब ठीक है, पर एक बड़ी समस्या है। भीड़ बहुत हो जाती है, इतने लोग आते हैं कि मैं अपनी साधना पूरी तरह नहीं कर पाता, समय नहीं मिलता। रात-दिन चप्र-सा चलता है। गुरू ने कहा, तुम एक काम करो, गरीब लोग आएं तो उनको कर्ज देना शुरू कर दो और जो धनवान लोग आएं।  
तो उनसे मांगना शुरू कर दो। उपाय हाथ में लग गया। उसने प्रयोग करना शुरू कर दिया-जो निर्धन आते, उन्हें कर्ज देना शुरू किया और धनी आते उनसे धन मांगना शुरू किया। पांच-दस दिन में भीड़ बिल्कुल छंट गई। क्योंकि जिन्होंने कर्ज लिया वे वापस किसलिए आते? सामने आना नहीं चाहते थे, क्योंकि वापस तो देना नहीं था- धनियों से मांगना शुरू किया तो उन लोगों ने सोचा कि अब तो जाना ठीक नहीं है। जाते ही पहले यह होगा कि लाओ-लाओ। भीड़ कम हो गई। उपाय ठीक मिलता है तो दोनों बातें हो जाती हैं। हमारे हाथ उपाय लगना चाहिए।