कृष्णमोहन झा (लेखक राजनैतिक विश्लेषक है)

अमेरिका में एक अंतराल के बाद पुनः राष्ट्रपति की कुर्सी पर आसीन होने के बाद  डोनाल्ड ट्रम्प अपने कई विवादित  फैसलों, बयानों और कार्यशैली ‌के माध्यम से पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर चुके हैं और यह सिलसिला थमने के अभी कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। वे अमेरिका के अंदर और अमेरिका के बाहर की दुनिया को लगातार  यह संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि किसी भी क्षेत्र में  उनकी मर्जी के आगे सबको नतमस्तक होना चाहिए चाहे वह अमेरिका का ही विश्वविख्यात सु प्रतिष्ठित  उच्च शिक्षा संस्थान हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ही क्यों न हो।  इस बार उन्होंने अमेरिका की इस हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के उस प्रबन्धन को अपना कोप भाजन बनाया है जिसने अमेरिका सरकार से संघीय वित्त पोषण के अंतर्गत मिलने वाली आर्थिक मदद पर रोक की परवाह न करते हुए डोनाल्ड ट्रम्प की मांगें  स्वीकार करने से दृढ़ता पूर्वक इंकार कर दिया है। ट्रम्प  चाहते हैं कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अमेरिकी मूल्यों के विरुद्ध आचरण करने वाले छात्रों की सूचना सरकार को दी जाए , यूनिवर्सिटी अपने विभागों का आडिट किसी बाहरी कंपनी के माध्यम से कराये, हार्वर्ड में विरोध प्रदर्शन में नियमों का उल्लंघन करने के विरुद्ध यूनिवर्सिटी सख्त कार्रवाई करे । इसके  अलावा  ट्रम्प ने यूनिवर्सिटी से अपनी विविधता समानता और समावेशन की नीति में बदलाव लाने की मांग की । यहूदी विरोधी प्रदर्शनों को सबसे ज्यादा बढ़ावा देने वाले विभागों की सूचना सरकार को देने की मांग भी इनमें शामिल है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट एलन गार्बर ने अमेरिकी राष्ट्रपति की इन मांगों को संस्थान की स्वायत्तता और संप्रभुता में हस्तक्षेप मानते हुए जब उन्हें मानने से दृढ़ता पूर्वक इंकार कर दिया तो ट्रम्प को उनकी यह दृढ़ता यह इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने सरकार की ओर से यूनिवर्सिटी को दिए जाने वाले 2.2 बिलियन डॉलर का फंड रोकने के आदेश जारी कर दिए । इतना ही नहीं ट्रम्प ने यह यूनिवर्सिटी प्रबंधन को यह धमकी भी दी कि वह अगर अपनी नीतियों में बदलाव के लिए तैयार नहीं है तो उसे अपना कर-मुक्त दर्जा खोकर  राजनीतिक इकाई के रूप में काम करना शुरू कर देना चाहिए। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट एलन गार्बर और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच कुछ दिन पूर्व शुरू हुआ यह विवाद अब  और गहराता जा रहा है और निकट भविष्य में  दोनों के बीच सुलह की संभावनाएं धूमिल होती जा रही हैं । हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के  अधिकृत समाचार पत्र   ' द क्रिमसन 'ने कहा कि हार्वर्ड ने सबसे स्पष्ट और सबसे साहसिक संदेश भेजा है। हमारे मूल्य बिक्री के लिए नहीं हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के पद पर डोनाल्ड ट्रम्प के पहली बार निर्वाचित होने के पूर्व राष्ट्रपति पद पर लगातार दो कार्यकाल पूर्ण कर चुके  बराक ओबामा ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट एलन गार्बर के रुख का समर्थन करते हुए कहा है कि हार्वर्ड ने उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। उसने  अकादमिक स्वतंत्रता को  दबाने के गैर कानूनी और अमानवीय प्रयास को खारिज कर दिया है। ओबामा ने उम्मीद जताई कि अन्य विश्वविद्यालय भी उसका अनुसरण करेंगे

गौरतलब है कि 1636 में स्थापित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने केवल अमेरिका ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट संस्थान के रूप में अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की है।इसकी दस शैक्षणिक इकाइयां हैं जिनसे पढ़ कर निकले प्रतिभाशाली छात्रों ने शिक्षा , साहित्य, राजनीति, विज्ञान सहित अनेक क्षेत्रों में इस संस्थान का नाम रोशन किया है। पूर्व राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी, जार्ज डब्ल्यू बुश ,बराक ओबामा , हेलन केलर,थियोडोर रूजवेल्ट,मार्क जुकरबर्ग, बिल गेट्स , रतन टाटा जैसी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हस्तियां ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ कर ही सफलता की आकाशीय ऊंचाईयों को स्पर्श किया। अतीत में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली अनेक महान विभूतियों ने  भी  हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में शिक्षा ग्रहण की थी यह फेहरिस्त भले ही बहुत लंबी हो लेकिन अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प मानते हैं कि अमेरिका के इस विश्व विख्यात शिक्षा संस्थान ने अब  दुनिया में टाप यूनिवर्सिटी की किसी भी सूची में शामिल होने का अधिकार खो दिया है क्योंकि यह संस्थान अब अपने रास्ते से भटक गया है। डोनाल्ड ट्रम्प ने विगत दिनों यहां तक कह दिया कि यह कट्टरपंथी, वामपंथी, मूर्ख और पक्षपाती लोगों को काम पर रख रहा है जो छात्रों और तथाकथित विपक्ष के नेताओं को केवल विफल होना सिखा सकता है। ट्रम्प ने यूनिवर्सिटी पर छात्रों को मूर्खता और नफ़रत सिखाने का आरोप लगाते हुए कहा कि अब इस संस्थान को और फंडिंग नहीं की जानी चाहिए। जाहिर सी बात है कि डोनाल्ड ट्रम्प 
 के राष्ट्रपति रहते हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की संघीय फंडिंग तभी जारी रह सकती है जबकि यूनिवर्सिटी प्रबंधन ट्रम्प से न केवल क्षमा याचना करने बल्कि उनकी उन शर्तों को मानने के लिए भी तैयार हो जाए जिन्हें यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट एलन गार्बर गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दे चुके हैं। बताया जाता है कि अमेरिका के कई दूसरे विश्वविद्यालय भी अब हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के समर्थन में आ खड़े हुए हैं। जाहिर सी बात है कि डोनाल्ड ट्रम्प और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच प्रारंभ हुए इस विवाद का कोई संतोषजनक समाधान तभी निकल सकता है जबकि डोनाल्ड ट्रम्प यूनिवर्सिटी की फंडिंग के बारे में और कठोर फैसले के बिंदु तक पहुंचने के पहले उसके गौरवशाली इतिहास पर भी  विचार करें। ट्रम्प को यह तो मानना ही चाहिए कि उनके देश के इस उच्च शिक्षा  संस्थान ने सारी दुनिया में अपनी धाक और साख में कभी कमी नहीं आने दी। क्या यह अमेरिका के लिए गौरव का विषय नहीं है।