नई दिल्ली। गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दिल्ली दंगे से जुड़ी बड़ी आपराधिक साजिश रचने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणियां करते हुए आरोपित सलीम मलिक उर्फ मुन्ना की जमानत याचिका खारिज कर दी।

अदालत ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष रूप देने के लिए विरोध स्थलों को धर्मनिरपेक्ष या हिंदू नाम दिए गए थे और साजिशकर्ताओं का उद्देश्य विरोध प्रदर्शन को चक्का जाम तक बढ़ाना और एकत्र भीड़ को हिंसा में शामिल करना था। अदालत ने स्पष्ट किया कि संविधान के तहत निश्चित तौर पर देश के नागरिकों को विरोध करने का अधिकार है, लेकिन यह शांतिपूर्ण तरीके से और हिंसा का सहारा लिए बिना होना चाहिए।

अदालत ने कहा कि सलीम मलिक बारे में कही ये बात

अदालत ने कहा कि सलीम मलिक उस बैठक का हिस्सा था, जिसमें हिंसा व आगजनी के साथ ही धन जुटाने से लेकर लोगों को मारने के लिए हथियार व पेट्रोल बम की व्यवस्था व संपत्ति व सीसीटीवी को नुकसान पहुंचाने की भी चर्चा हुई थी। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत व न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि अदालत ने कहा कि रिकार्ड पर मौजूद सामग्री से संकेत मिलता है कि सलीम मलिक एक सह-साजिशकर्ता था और उसने अपराध किया था, जिसके लिए उसके खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया था।

मलिक को राहत देने से किया इनकार

पीठ ने मलिक को राहत देने से इन्कार करते हुए कहा कि वह भले ही वॉट्सएप ग्रुप का हिस्सा नहीं है, लेकिन विभिन्न गवाहों के बयान से यह स्पष्ट है कि उसने बैठकों में भाग लेकर दंगों की साजिश रचने के संबंध में सक्रिय भूमिका निभाई थी। अदालत ने कहा कि ऐसे दंगों की तैयारी करने वाले साजिशकर्ताओं ने दिसंबर 2019 में हुए दंगों से सबक सीखा है, जिनमें समान विशेषताएं और कार्यप्रणाली थी।

अदालत ने कहा कि दंगे एक गहरी साजिश का नतीजा थे और इसमें मुख्य सड़क और राजमार्गों को अवरुद्ध करने और टकराव की स्थिति के साथ सांप्रदायिक हिंसा पैदा करने के लिए विरोध स्थल से अलग स्थान पर जाना शामिल था। अदालत ने कहा कि यह आरोप लगाया गया था कि 23 फरवरी 2020 को अपीलकर्ता ने अन्य प्रदर्शनकारियों के साथ उस सड़क को अवरुद्ध कर दिया था जो जाफराबाद में हिंसा का स्थान था। साथ ही संरक्षित गवाह के बयान के अनुसार आरोपित इलाके में सीसीटीवी कैमरों को नष्ट करने या उन्हें ढंकने का भी जिम्मेदार था।

आरोपित ने दी ये दलील

अदालत ने दर्ज किया कि अपीलकर्ता आरोपित की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने दलील दी थी कि सलीम के विरुद्ध यूएपीए के तहत कोई मामला नहीं बनता है। उन्होंने तर्क दिया था कि अपीलकर्ता केवल एक रसोइया था, जिसे मंच के पीछे रसोई की देखरेख करने की जिम्मेदारी दी गई थी और वह प्रदर्शनकारियों को उकसाने में शामिल नहीं था।