भोपाल । प्रदेश में बिजली की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर आ गया है। बिजली की कमी की पूर्ति करने राज्य सरकार को  महंगी दर पर तत्काल बिजली की खरीदी करनी पड़ रही है। गर्मी में मप्र में बिजली की मांग 12 हजार मेगावाट के आसपास है, ऐसे समय में भी प्रदेश में बिजली की कमी बन रही है। पिछले दो दिन से हालात ऐसे ही दिख रहे हैं जहां पर आठ से दस रुपये प्रति यूनिट की दर से 500 मेगावाट के आसपास बिजली खरीदी हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी के ताप विद्युत ग्रहों से बिजली का उत्पादन कम हो रहा है। इस वजह से निजी इकाइयों से महंगी दर पर बिजली लेना मजबूरी बन गया है। बता दे कि ऊर्जा विभाग प्रदेश में 22 हजार मेगावाट से अधिक की बिजली उपलब्धता का दावा करता है। मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी की श्री सिंगाजी पावर प्लांट की दो नंबर इकाई 600 मेगावाट और चार नंबर इकाई 660 मेगावाट तथा बिरसिंहपुर की पांच नंबर इकाई 500 मेगावाट क्षमता से बिजली का उत्पादन बंद हो गया है। कंपनी की थर्मल इकाई से 5400 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है जिनसे फिलहाल 2671 मेगावाट ही बिजली मिल पा रही है। वहीं हाइड्रल पावर प्लांट जिसकी क्षमता 2435 मेगावाट है जिससे फिलहाल 1134 मेगावाट बिजली मिल पा रही है। ऐसे में मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी को अन्य निजी इकाई और एनटीपीसी से ग्रिड के माध्यम से बिजली लेनी पड़ रही है। शेड्यूल बिजली के अलावा मांग पूरी करने के लिए बिजली कंपनी अतिरिक्त बिजली ग्रिड से ड्रा करने के लिए मजबूर हो रहा है। शेड्यूल के अलावा बिजली लेने पर यह तत्काल बिजली की दर मार्केट के अनुरूप महंगी होती है जहां शेड्यूल बिजली लेने पर औसत दो-तीन रुपये के बीच प्रति यूनिट बिजली मिलती है वहीं तत्काल बिजली खरीदने पर यह दाम आठ से दस रुपये के आसपास होता है इससे कंपनी को महंगी कीमत देनी पड़ती है। जिसका सीधा असर आम उपभोक्ता की जेब पर पड़ता है।शनिवार की रात करीब 10.52 मिनट पर मप्र में बिजली की मांग प्रदेश में 11664 मेगावाट बनी हुई थी। उस वक्त थर्मल से 2650 मेगवाट बिजली का उत्पादन हो रहा था। करीब सात सौ मेगावाट बिजली को दस रुपये की दर से मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी खरीद रही थी। बिजली कंपनी हर माह फ्यूल सरचार्ज लागू करती है जो बिजली के उत्पादन के हिसाब से तय होता है। यदि महंगी बिजली खरीदी की गई तो उसका असर उपभोक्ता पर होगा।