प्रोबायोटिक डाइट याददाश्त को कमजोर होने से बचाएगी,प्रोबायोटिक्स उम्र बढ़ने से साथ याददाश्त और सोचने की क्षमता को कमजोर होने से रोक सकते हैं। नई रिसर्च में इसका खुलासा हुआ है। रिसर्च में ये भी कहा गया है कि प्रोबायोटिक डाइट लेने से अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसे बीमारियों के असर को कम किया जा सकता है। अच्छे बैक्टीरिया को प्रोबायोटिक्स कहते हैं। बैक्टीरिया या वायरस सुनते ही लगता है कि बीमारी की बात हो रही है लेकिन हर बैक्टीरिया हमें नुकसान नहीं पहुंचाता। कुछ बैक्टीरिया हमारे दोस्त होते हैं तो कुछ हमें नुकसान पहुंचाते हैं। दोनों तरह के बैक्टीरिया हमारे रेस्पिरेट्री (श्वास नली) और डाइजेस्टिव सिस्टम (पेट/गट) में ‘चेक एंड बैलेंस’ का काम करते हैं। अगर आपने किसी बीमारी की वजह से एंटीबायोटिक गोलियां ज्यादा खाई हैं तो इसके नुकसान को कम करने के लिए प्रोबायोटिक्स काम आते हैं। इन प्रोबायोटिक्स को फूड और न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट्स के जरिए लिया जा सकता है। रिसर्चर्स ने नतीजों पर पहुंचने के लिए 52-75 साल के 169 पार्टिसिपेंट्स को तीन महीने प्रोबायोटिक लैक्टोबैसिलस रमनोसस जीजी (LGG) ट्रीटमेंट दिया। इससे पार्टिसिपेंट्स में कॉग्नेटिव इम्पेयरमेंट के लक्षण कम नजर आए। कॉग्नेटिव इम्पेयरमेंट में लोग चीजें याद नहीं रख पाते, उनकी एकाग्रता कम होती है।

प्रोबायोटिक्स इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं

रिसर्च में पाया गया कि कॉग्नेटिव इम्पेयरमेंट के लक्षण कम होने का असर माइक्रोबायोम यानी पेट के बैक्टीरिया पर भी हुआ है। गट माइक्रोबायोम का काम हमारे शरीर में ब्लड शुगर को कंट्रोल करना, विटामिन और दूसरे हॉर्मोन को प्रोड्यूस करना, कोलेस्ट्रॉल को बैलेंस करना, कैलोरी को कंट्रोल करना होता है। इसके अलावा इनका काम बीमार करने वाले बाहरी सूक्ष्मजीवों से लड़ने और हमारे नर्वस सिस्टम और ब्रेन के साथ कम्युनिकेट करना भी होता है।

प्रोबायोटिक्स फर्मेंटेड फूड में मिलता है

प्रोबायोटिक फूड वे होते हैं जिनमें जिंदा बैक्टीरिया होते हैं। ये बैक्टीरिया खमीर युक्त खाद्य पदार्थों जैसे दही, ढोकला, अचार, किमची, कोम्बुचा आदि में पाए जाते हैं। इनके सप्लीमेंट्स भी आते हैं।

प्रोबायोटिक्स शब्द पहली बार चलन में कब आया?

प्रोबायोटिक्स शब्द का पहली बार जिक्र 1953 में हुआ। इस शब्द को इंट्रोड्यूस करने वाले जर्मन साइंटिस्ट वर्नर कोलाथ थे। इसमें ‘प्रो’ लैटिन और ‘बायो’ ग्रीक भाषा से लिया गया है। इसका मतलब होता है 'फॉर लाइफ'। लेकिन इस शब्द को 12 साल बाद 1965 में चलन में लेकर आए डेनियल एम लिली और रोज़ली एच स्टिलवेल। इन दोनों ने प्रोबायोटिक्स शब्द का इस्तेमाल ‘साइंस’ नाम की मैगजीन में किया था। साल 1992 में साइंटिस्ट फुलर ने इसे नई परिभाषा दी और इसके बारे में खुलकर बताया कि ये एक लाइव बैक्टीरिया होता है, जो ह्यूमन बॉडी के लिए काफी जरूरी है।

प्रोबायोटिक फूड के फायदे

बेहतर पाचन

प्रोबायोटिक फूडसप्लीमेंट्स पेट (गट) में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाते हैं। ये गट-फ्रैंडली बैक्टीरिया भोजन के प्रतिरोधी फाइबर को तोड़ कर डाइजेशन को इंप्रुव करते हैं।

वजन प्रबंधन

रेसिस्टैंट स्टार्ट के टूटने से ब्यूटायरेट नामक कंपाउंड बनता है, यह मेटाबॉलिज्म को बेहतर करने में मदद करता है। जिस वजह से वजन प्रबंधन होता है। ब्यूटायरेट मोटापे को भी दूर रखता है।

इम्युनिटी

70 फीसद इम्युन सिस्टम पाचन तंत्र में होता है, जो गट-फ्रैंडली बैक्टीरिया से युक्त होता है। इसलिए प्रोबायोटिक फूड इम्युन सिस्टम को बूस्ट करने में और मदद करते हैं। अगर शरीर में हेल्दी गट-बैक्टीरिया की कमी है तो ऑटोइम्युन बीमारियां जैसे क्रोहन या अल्सरेटिव कोलिटिस हो सकता है। प्रोबायोटिक शरीर में नेचुरल एंटीबॉडीज को बनाते हैं।

हार्मोनल बैलेंस

अनहेल्दी और अच्छे बैक्टीरिया की कमी से महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन प्रभावित होता है। एस्ट्रोजन के असंतुलन से पीसीओएस और इंफर्टिलिटी जैसी बीमारियां होती हैं। एस्ट्रोजन हार्मोन के इंबैलेंस से मेंस्ट्रुअल साइकिल में भी परेशानियां पैदा होती हैं। प्रोबायोटिक फूड्स महिलाओं के हार्मोन को बैलेंस करते हैं।

ब्लड शुगर कंट्रोल

प्रोबायोटिक फूड ब्लड शुगर लेवल नियंत्रित करते हैं। ये इंफ्लामेशन को कम करने वाले गुड बैक्टीरिया पर भी काम करते हैं।

बेहतर नींद में मददगार

लैक्टोबैसिलस हेल्वेटिकस और बिफीडोबैक्टीरियम लोंगम नामक प्रोबायोटिक बैक्टीरिया एंग्जाइटी के लक्षमों को कम करते हैं जिससे नींद बेहतर होती है।