नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में ड्रग्स का जहर युवा पीढ़ी की नसों में घुलता जा रहा है और पुलिस व अन्य एजेंसियां बेबस नजर आ रही हैं।

पुलिस छोटे-मोटे ड्रग्स पैडलरों को पकड़कर अपनी पीठ थपथपाती रहती है और माफिया पैडलर बदलकर अपना नेटवर्क चलाते रहते हैं। ड्रग्स कार्टेल चलाने वालों ने ऐसा चक्रव्यूह तैयार किया है जिसे भेदना दिल्ली पुलिस या अन्य एजेंसियों के लिए असंभव सा दिखाई देता है।

गत 14 मई की रात पहली बार दिल्ली में ड्रग्स के 64 हाट स्पाट में आने वाले 100 स्थानों पर छापेमारी की गई और 43 तस्करों को गिरफ्तार कर 957 ग्राम हेरोइन, 57.88 किलोग्राम गांजा बरामद गया। हालांकि, इसके बावजूद कोई बड़ा ड्रग्स कार्टेल पकड़ने में पुलिस नाकाम ही रही।

ड्रग्स माफिया के तंत्र के सामने बौना है पुलिस तंत्र

क्राइम ब्रांच के अधिकारी ने ही स्वीकार किया कि छह माह की तैयारी के बाद की गई इस कार्रवाई में बरामदगी और गिरफ्तारी की जितनी अपेक्षा की गई थी उतनी नहीं हुई। पुलिस भले ही इंटेलिजेंस और मुखबिर तंत्र के दम पर बड़े से बड़े रैकेट के पर्दाफाश का दावा करती हो, लेकिन ड्रग्स माफिया के सूचना तंत्र के सामने बौनी ही नजर आती है।

ड्रग्स माफिया ने अपनी तस्करी के अड्डों के आसपास गलियों, घरों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के साथ ही आसपास युवकों को निगरानी करने के लिए भी रखा हुआ है। जब भी कोई अनजान व्यक्ति इनके ठिकानों और गलियों के पास पहुंचता है तो वह माफिया तक सूचना पहुंच जाती है।

मौके पर नहीं मिलता ड्रग्स

पुलिस के पहुंचते ही सूचना माफिया तक पहुंचती है तो या तो ड्रग्स नष्ट कर दिए जाते हैं या वहां से गायब कर दिए जाते हैं। कार्रवाई में जब ड्रग्स बरामद नहीं होती तो उसपर आगे की कानूनी कार्रवाई करने का कोई आधार नहीं मिलता।

अधिकतर पुलिस ड्रग्स सप्लाई करने वाले छोटे-मोटे पैडलर्स और उसने ड्रग्स प्राप्त करने वालों को ही पकड़ती है, क्योंकि उनके पास से ड्रग्स बरामद होती है। लेकिन इन पैडलरों को यह पता ही नहीं होता है कि ड्रग्स का मुख्य सूत्रधार कौन है। ऐसे में माफियाओं तक पहुंचने में कठिनाइयों को सामना करना पड़ता है।

खादी और खाकी के साथ माफिया का रहता है गठजोड़

पुलिस सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में ड्रग्स की खपत अधिक है। इसका प्रमुख कारण है कि यहां के संकरी गलियों, झुग्गी झोपड़ियों आदि में तस्कर ड्रग्स का धंधा करते हैं। यहां से ड्रग्स वीवीआइपी इलाके, होटलों आदि में सप्लाई की जाती है।

इन इलाकों के ड्रग्स तस्करों का वहां के स्थानीय जनप्रतिनिधियों और स्थानीय पुलिस से सांठगांठ होती है। ऐसे में उनका काला कारोबार चलता रहता है। इस पर लगाम लगाने के लिए दिल्ली पुलिस की तरफ से प्रत्येक हाट स्पाट में दो-दो पुलिसकर्मियों को निगरानी के लिए तैनात किया गया है। हर 15 दिन में समीक्षा बैठक की जानी है लेकिन।

माफिया भूमिगत, फिर भी धड़ल्ले से बिक रही ड्रग्स

पिछले दिनों दिल्ली पुलिस की ड्रग्स कार्टेल पर बड़ी छापेमारी के बावजूद ड्रग्स माफियाओं का नेटवर्क ध्वस्त नहीं हो स है। कार्रवाई के बाद कई बड़े माफिया तो भूमिगत हो गए हैं लेकिन ड्रग्स की तस्करी नहीं रुकी है।

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के अधिकारी ने बताया कि वर्तमान में एनसीआर में पहले की तुलना में कई गुना अधिक दाम में ड्रग्स मिल रही है।

दिल्ली में इससे पहले पुलिस द्वारा इतनी बड़ी कार्रवाई नहीं गई थी, ऐसे में अब ड्रग्स माफिया सतर्क हो गए हैं। छापेमारी के बार दिल्ली के हाट स्पाट क्षेत्रों में पुलिस की निगरानी भी बढ़ाई गई है।

ऐसे में ड्रग्स पहले की तरह नहीं मिल रही है। जहां मिल रही है वहां पर कई गुना अधिक दाम में मिल रही है। हेरोईन की एक पुड़िया पहले 250 से 300 रुपये में मिलती थी, जो अब एक हजार रुपये में बेची जा रही है। इसी तरह गांजे की पुड़िया पहले 150 रुपये में बेची जाती थी। वह अब 500 से 700 रुपये प्रति पुड़िया बेची जा रही है।

  . 300 से 400 में मिलने वाली हेरोइन की पुड़िया अब 1000 रुपये में मिल रही है
  . 100 स्थानों पर छापेमारी कर पिछले दिनों 43 तस्करों को दबोचा गया था
  . 700 रुपये तक हो गए हैं अब 100-150 रुपये की गांजे की पुड़िया के दाम