हिंदी साहित्य की विविध विधाओं की रचनाओं पर सृजन ने आज अपने 158 में कार्यक्रम के रूप में साहित्य चर्चा का आयोजन ऑनलाइन किया। सृजन के रचनाकारों ने अपनी अपनी रचनाएं प्रस्तुत की जिस पर सदस्यों द्वारा विस्तृत चर्चा हुई। इस मासिक साहित्य कार्यक्रम में डॉ  टी  महादेव राव सृजन ने संस्था की गतिविधियों और क्रियाशीलता पर अपनी बातें रखी। कार्यक्रम का आरंभ नीरव कुमार वर्मा अध्यक्ष सृजन के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने बताया सृजन न  केवल साहित्य के प्रति प्रतिबद्ध संस्था है बल्कि नए और पुराने रचनाकारों को साहित्य सृजन के लिए निरंतर प्रेरित करता रहता है। हिंदीतर क्षेत्र में हिंदी साहित्य की अलख जगाने को प्रतिबद्ध यह संस्था लंबे समय से इस क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही है। कार्यक्रम का संचालन सृजन के वरिष्ठ सदस्य एल चिरंजीवी राव ने सफलतापूर्वक किया। आरंभ में सरस्वती वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत हुई जिसे गया डॉ के अनीता ने। साहित्य चर्चा में डॉ के अनीता ने कविता सुनाई “मनुष्यता की रात”, जिसमें मानवीय गुणों से भरपूर मनुष्य को  देखना चाहती है कवयित्री। भारती शर्मा की लघुकथा का शीर्षक था “अतीत” जिसमें अतीत के मानवीय संबंधों की स्मृतियों की बात प्रभावी ढंग से पेश की गई। भागवतुला सत्यनारायण मूर्ति की ग्रामीण पार्श्व की कहानी “दादी की दूरदर्शिता” एक बुजुर्ग महिला की दूर की सोच पर बुनी अच्छी कथा थी। रामप्रसाद यादव ने अपनी कविता  “मैं कल्पना कर सकता हूं” में शहरीकरण के कारण प्रकृति के विनाश और अनुपस्थिति को गहनता के साथ गहन  अनुभूतियों  के साथ पाठ किया। एस वी आर नायडू की हास्य कविता “स्वप्न लोक” में पत्नी पीड़ित व्यक्ति के साथ दिवास्वप्न की घटनाओं को हास्य व्यंग्य के पिटारे के रूप में पेश किया गया। जयप्रकाश झा ने संस्मरणात्मक लेख “आम की यादें” पढ़ा जिसमें पुराने दिनों की मीठी यादों और वर्तमान के जीवन संघर्ष की बात को मनमोहक ढंग से प्रस्तुत किया गया। “गीता जयंती” पर व्यंग्य प्रस्तुत किया नीरव कुमार वर्मा ने जिसमें आजकल आडंबर में जीते लोगों की पुराने संस्कारों से कटने के बात को बड़ी शिद्दत के साथ मारक रूप में प्रस्तुत कही गई। पारस नाथ यादव ने शब्दों के साथ खेलती कविता मैं कल्पना कर सकता हूं में व्यंग्यात्मक शैली में कल्पना शब्द को अलग अलग संदर्भों में सुंदर प्रयोग किया। एल चिरंजीव राव की कविता “उम्मीद का सफर” आशावादी दृष्टिकोण को बढ़ाने में सहयोग करने  का आह्वान करती सी प्रभावी कविता रही। डॉ टी महादेव राव ने व्यंग्य “बने बनाए चेहरे” पढ़ा जो वर्तमान के मानवीय प्रवृत्ति पर करारा प्रहार था।इस कार्यक्रम में हिमाश्री और कृष्णवेणी ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया। सारी रचनाओं पर चर्चा हुई और सभी ने इस विविध विधाओं की साहित्य चर्चा को उपयोगी, प्रेरणास्पद बताया। कार्यक्रम का समापन जयप्रकाश झा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। 

डॉ टी महादेव राव, सचिव सृजन , विशाखापटनम

प्रेषक..लिंगम चिरंजीव राव