वॉशिंगटन । आज दुनिया में सात महाद्वीप हैं लेकिन भविष्य में यह संख्या बदल भी सकती है। भूभौतिकीविद् रॉस मिशेल ने हाल ही में अपनी नई बुक लॉन्च की है। द नेक्स्ट सुपरकॉन्टिनेंट नामक यह किताब न सिर्फ अतीत बल्कि भविष्य के बारे में भी बात करती है। यह बताती है कि जब सभी महाद्वीप एक विशाल भूभाग में मिल जाएंगे तो पृथ्वी कैसे दिखेगी। मिशेल ने इतिहास पर भी प्रकाश डाला कि कैसे महाद्वीपों ने अतीत में एकजुट होकर सुपरकॉन्टिनेंट्स का निर्माण किया था। मिशेल ने बताया कि करीब 300 से 200 मिलियन साल पहले पैंजिया सुपरकॉन्टिनेंट था, डायनासोरों से भरी एक हरी-भरी दुनिया जिसका केंद्र वर्तमान का अफ्रीका था। इससे और पीछे जाने पर हमारा सामना एक अरब साल पहले रोडिनिया से होता है, एक बंजर भूभाग जिसमें आज के उत्तरी अमेरिका और ग्रीनलैंड का अधिकांश भाग शामिल था। इसके आगे, दो अरब साल पहले साइबेरिया-केंद्रित पहला सुपरकॉन्टिनेंट कोलंबिया था, जैसा कि कुछ वैज्ञानिक मानते हैं।
महाद्वीपों की गतिविधियों को समझने के लिए सूक्ष्म जांच की जरूरत होती है। वैज्ञानिक फील्डवर्क के माध्यम से सैंपल्स इकट्ठा करते हैं और चट्टानों की उम्र का निर्धारण करते हैं। सुपरकॉन्टिनेंट्स का निर्माण और विघटन ठोस लेकिन लचीले मेंटल से जुड़ा हुआ है। मेंटल पृथ्वी की क्रस्ट और कोर के बीच की परत होती है जो गर्मी को स्टोर करती है। किताब में बताया गया है कि महाद्वीपों में हलचल तब होती है जब मेंटल में गर्मी बढ़ती है। महाद्वीप मेंटल में उस स्थान की ओर बढ़ते हैं जो अन्य भागों की तुलना में अपेक्षाकृत ठंडा होता है।इस तरह महाद्वीप एक-दूसरे से टकराते हैं, जिससे एक नए सुपरकॉन्टिनेंट का जन्म होता है।