मुस्लिम संगठन बोले- यूसीसी में मुसलमानों को क्यों छूट नहीं दी गयी?
नई दिल्ली। उत्तराखंड विधानसभा में पेश यूसीसी बिल कई मुस्लिम संगठनों ने भेदभावपूर्ण करार देते हुए कहा कि अगर आदिवासियों को इस विधेयक से बाहर रखा जा सकता है तो फिर मुस्लिम समुदाय को छूट क्यों नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय को ऐसा कोई कानून मंजूर नहीं है जो शरीयत के खिलाफ हो। अशरद मदनी ने मंगलवार को जारी एक बयान में कहा कि हमें ऐसा कोई कानून स्वीकार्य नहीं है जो शरीयत के खिलाफ हो। सच तो यह है कि किसी भी धर्म को मानने वाला अपने धार्मिक कार्यों में किसी प्रकार का कानूनी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि आज उत्तराखंड विधानसभा में पेश किये गए समान नागरिक संहिता विधेयक में अनुसूचित जनजातियों को संविधान के प्रावधानों के तहत नए कानून में छूट दी गई है और यह तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है।
मदनी ने कहा कि अगर संविधान के एक अनुच्छेद के तहत अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से अलग रखा जा सकता है तो हमें संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक आज़ादी क्यों नहीं दी जा सकती? मदनी ने दावा किया कि समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों को नकारती है। यदि यह समान नागरिक संहिता है तो फिर यह भेदभाव क्यों? उन्होंने यह भी कहा कि हमारी कानूनी टीम विधेयक के कानूनी पहलुओं की समीक्षा करेगी जिसके बाद कानूनी कदम पर फैसला लिया जाएगा। वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्यकारी समिति के सदस्य खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि इस तरह के समान नागरिक संहिता का कोई मतलब नहीं है जब आप खुद कह रहे हैं कि कुछ समुदायों को अधिनियम से छूट दी जाएगी तो फिर एकरूपता कहां है। उन्होंने कहा कि चूंकि हम सभी लोग जानते हैं कि अभी भी हमारे पास संविधान का अनुच्छेद 25 है। हर नागरिक को अपने जीवन धर्म का पालन करने का पूर्ण संवैधानिक अधिकार है तो आप धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप क्यों कर रहे हैं क्योंकि पर्सनल ला प्रत्येक समुदाय का धार्मिक मामला है। गौरतलब है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य विधानसभा में मंगलवार को यूसीसी विधेयक पेश किया था जिसमें बहुविवाह और हलाला जैसी प्रथाओं को आपराधिक कृत्य बनाने तथा लिव-इन में रह रहे जोड़ों के बच्चों को जैविक बच्चों की तरह उत्तराधिकार दिए जाने का प्रावधान है। विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन पेश समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024 विधेयक में धर्म और समुदाय से परे सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति जैसे विषयों पर एक समान कानून प्रस्तावित है।