छिंदवाड़ा ।   प्रशासन की सख्ती, पुलिस की मुस्तैदी और यहां तक कि मूसलाधार वर्षा भी सालों से चली आ रही गोटमार मेले की परंपरा को रोक नहीं सकी।हर साल की तरह इस साल भी जिला मुख्यालय से सौ किमी दूर पांढुर्णा में गोटमार मेले का आयोजन हुआ, जिसमें जाम नदी के किनारे पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों ने एक, दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाए, इस पत्थरबाजी में सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए। सुबह 4.30 बजे चंडी मां की पूजन-अर्चना के बाद जाम नदी के बीचों बीच पलाश का पेड़ लगाकर पूजा-अर्चना की गई। पलाश के पेड़ पर झंडा लगाया गया। जिसके बाद दोपहर करीब 12.45 बजे गोटमार खेल शुरू हुआ। पांढुर्णा और सावरगांव के ग्रामीणों ने एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए। जाम नदी के संगम पर वर्षों पुरानी परंपरा चली आ रही है। इस बार निश्चित दायरे में रहकर ही गोटमार खेला गया वर्षा के कारण इस बार मेले में शामिल होने वाले लोगों की कमी रही।

वर्षा के चलते जाम नदी का जलस्तर बढ़ गया है। कलेक्टर मनोज पुष्प और एसपी विनायक वर्मा के अलावा अन्य अफसर भी मेले में मौजूद रहे। मेला स्थल और शहर भर में पुलिस बल तैनात रहां। पांढुर्णा में धारा 144 लागू की गई थी। हथियारों के प्रदर्शन पर भी प्रतिबंध लगाया था। मेला स्थल पर दो एएसपी, 7 एसडीओपी, 10 थाना प्रभारी, 30 एसआई, 50 एएसआई और करीब 500 एसएएफ, होमगार्ड, वन विभाग, जिला पुलिस बल के जवान तैनात रहे। मौके पर 10 एंबुलेंस के साथ डाक्टरों की टीम मौजूद रही। आबकारी विभाग ने अवैध शराब बिक्री रोकने के लिए कार्रवाई की। नदी में पानी होने के कारण इस बार 8 तैराक भी मौजूद रहे। मेले को लेकर प्रशासन ने चाक चौबंद व्यवस्था की, ड्रोन कैमरे से मेले की निगरानी की जाती रही।

प्रेमी जोड़ों की कहानी से शुरू हुआ मेला

किवदंती है कि वर्षों पहले पांढुर्णा का युवक सावरगांव की युवती को भगा ले गया था। दोनों जैसे ही जाम नदी पर पहुंचे, तो युवती के परिवार सावरगांव वालों ने युवक पर पत्थरों की बौछार कर दी। जैसे ही, युवक पक्ष को खबर लगी, तो उन्होंने भी बचाव के लिए पत्थर बरसाए। इस पत्थरबाजी में जाम नदी के बीच दोनों की मौत हो गई थी। गांववालों ने उनके शव को मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा। पूजा-अर्चन के बाद अंतिम संस्कार किया गया। इसी घटना की याद में मां चंडिका की पूजा-अर्चना कर प्रायश्चित स्वरूप एक-दूसरे को पत्थर मारकर गोटमार मेला मनाते हैं। इस परंपरा में अब तक 14 से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं।

कुछ परिवार गोटमार मेले को काला दिन मानते हैं

कुछ घरों के परिवार के लोगों में अपनों के खोने का दर्द भी है।मेले में सुबह पांढुर्ना-सावरगांव स्थित जाम नदी के तट पर दो पक्षों के बीच एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए जाते हैं।गोटमार मेले के प्रति एक धार्मिक आस्था के सामने पत्थरों की बौछार और खून खराबा कोई मायने नहीं रखता। शहर में कुछ परिवार गोटमार मेले को काला दिन मानते हैं।