महिला सशक्तिकरण के संकल्प का सशक्त नेतृत्व मोहन यादव : शशिकांत मिश्र
शशिकांत मिश्र लेखक वरिष्ठ स्तंभकार
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में महिला एवं बाल विकास विभाग की समीक्षा बैठक में जो निर्णय लिए हैं, वे महज योजनात्मक घोषणाएं नहीं, बल्कि महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और मानसिक सशक्तिकरण की दिशा में ठोस नीति-निर्धारण का प्रमाण हैं। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि महिला सशक्तिकरण उनके शासन की प्राथमिकता है — और वह इसे केवल वाणी से नहीं, व्यावहारिक कार्यों से सिद्ध करना चाहते हैं। कामकाजी महिलाओं के लिए प्रदेश के सभी शहरों में हॉस्टल सुविधा उपलब्ध कराने का निर्णय इस तथ्य को बल देता है कि महिलाएं आज केवल घर तक सीमित नहीं हैं — वे शिक्षण, चिकित्सा, व्यवसाय, सेवा, अनुसंधान और रक्षा तक हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं। ऐसे में सुरक्षित, गरिमामय और आत्मनिर्भर जीवन हेतु यह एक अभिनव पहल है। मुख्यमंत्री ने "मिशन शक्ति" के अंतर्गत सखी-निवास जैसी पहलों को औद्योगिक क्षेत्रों तक विस्तारित करने की बात कहकर यह सुनिश्चित किया है कि योजनाओं का लाभ उन्हीं तक नहीं सीमित रहे जो राजधानी या बड़े शहरों में हैं, बल्कि उन तक भी पहुंचे जहां महिलाएं उत्पादन, निर्माण और सेवा के केंद्र में हैं। डॉ. यादव द्वारा आंगनवाड़ियों की संरचना सुधारने, पूरक पोषण आहार में गुणवत्ता बढ़ाने और कुपोषण से लड़ने हेतु बहु-विभागीय समन्वय पर बल देना — यह दर्शाता है कि वे समस्याओं की तह तक जाकर समाधान की सोच रखते हैं। चना, दूध और प्रोटीन युक्त आहार को प्राथमिकता देना और गर्भवती व धात्री महिलाओं के लिए पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करना, महिला स्वास्थ्य और बाल विकास की दिशा में एक सुविचारित प्रयास है। इसी प्रकार, हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए प्रदेश में संचालित 57 वन स्टॉप सेंटरों के माध्यम से वर्ष 2024-25 में 31,726 महिलाओं को सहायता प्रदान किया गया — यह आँकड़ा प्रशासनिक प्रतिबद्धता और मानवीय संवेदना दोनों का परिचायक है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्णयों को व्यापक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस राजनीतिक-सामाजिक दृष्टि की ही अभिव्यक्ति है जिसमें नारी शक्ति को केवल संरक्षण नहीं, बल्कि नेतृत्व देने की बात की जाती रही है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे राष्ट्रीय अभियान चलाकर सामाजिक चेतना को झकझोरा। उज्ज्वला योजना ने करोड़ों महिलाओं को धुएं से मुक्ति दी, तो जनधन योजना के माध्यम से करोड़ों महिलाओं को पहली बार बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ा गया। मातृ वंदना योजना और सुकन्या समृद्धि योजना ने माँ और बेटी दोनों के लिए एक सुरक्षित भविष्य की नींव रखी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि महिला सशक्तिकरण को केवल ‘सहायता’ तक सीमित नहीं रखा गया, बल्कि उसे ‘सह-निर्णय’ और ‘सह-नेतृत्व’ तक विस्तारित किया गया। हाल ही में संपन्न 'ऑपरेशन सिंदूर' में जिस प्रकार महिलाओं को नेतृत्व की कमान सौंपी गई, वह भारतीय सैन्य-रणनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय है। इससे यह संदेश गया कि महिलाएं अब सुरक्षा के मोर्चे पर भी अगली पंक्ति में हैं। केवल केंद्र ही नहीं, बल्कि भाजपा शासित विभिन्न राज्य सरकारें भी महिला सशक्तिकरण के प्रति उसी उत्साह और प्रतिबद्धता से कार्य कर रही हैं। उत्तर प्रदेश में 'महिला शक्ति मिशन' के माध्यम से, गुजरात में महिला उद्यमिता को बल देने वाली नीतियों के ज़रिए, उत्तराखंड में महिला स्वयं सहायता समूहों को वित्तीय सशक्तिकरण का जरिया बनाकर, भाजपा सरकारों ने यह सिद्ध किया है कि महिला विकास का मतलब ही राष्ट्र विकास है। डॉ. मोहन यादव का नेतृत्व भारतीय लोकतंत्र के उस स्वरूप की पुष्टि करता है, जहाँ नीति में संवेदना, नेतृत्व में समर्पण और नीयत में स्पष्टता है। वे प्रधानमंत्री मोदी की उस सोच के प्रतिनिधि बनते दिख रहे हैं जिसमें महिला को ‘संरक्षण’ नहीं, ‘सशक्तिकरण’ की दृष्टि से देखा जाता है।
देश को आज ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो महिला सशक्तिकरण को केवल भाषणों का विषय नहीं, शासन की नीति और समाज की संस्कृति बना सके। मध्यप्रदेश में हो रहे ये प्रयास उसी दिशा में एक सार्थक और अनुकरणीय कदम हैं।