लखनऊ । नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे अगले साल होने वाले लोक सभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा के लिए अपने सांसदों का रिपोर्ट कार्ड तय करने का पैमाना भी होंगे। वर्ष 2014 व 2019 में हुए लोक सभा चुनावों में केंद्र में भाजपा की सरकारें बनाने में उप्र ने बड़ी भूमिका निभाई थी। केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की कोशिश में लगी भाजपा का सर्वाधिक 80 लोक सभा सीटों वाले उप्र पर खास फोकस है।

प्रदेश में भाजपा की 64 लोक सभा सीटें हैं जबकि उसके सहयोगी अपना दल (एस) की दो सीटें हैं। पार्टी की अपने सांसदों पर पैनी अपने सांसदों पर पैनी निगाह है। अपने सांसदों की कार्यशैली, लोकप्रियता और जनता के बीच उनकी छवि के आकलन के लिए भाजपा गोपनीय तरीके से उनका रिपोर्ट कार्ड तैयार करा रही है। निकाय चुनाव को लोक सभा चुनाव के लिए पूर्वाभ्यास माना जा रहा था। ट्रिपल इंजन की सरकार बनाने के लिए भाजपा ने अपने सांसदों से भी निकाय चुनाव में पूरे मनोयोग से जुटने का आह्वान किया था।

निकाय चुनाव में पार्टी को कई सांसदों के क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा है। निकाय चुनाव के नतीजे आने के बाद पार्टी भले ही इसे अपनी ऐतिहासिक जीत बता रही है लेकिन वह हार के कारणों पर भी मंथन कर रही है। पार्टी को विभिन्न स्रोतों से मिल रहे फीडबैक के अनुसार कई स्थानों पर सांसदों के करीबी पार्टी से बगावत कर मैदान में उतरे तो कई जगहों पर उन्होंने भितरघात कर पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी को चुनाव में हराने में भूमिका निभाई।