नई दिल्ली । ‎‎हिमाचल प्रदेश में उपजी भूस्खलन की भीषण आपदा के ‎लिए एनएचएआई को ‎जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। उनका कहना है ‎कि लगातार हो रहे कटाव और मार्ग चौड़ीकरण के कारण पहाड़ों को क्ष‎ति पहुंच रही है, ‎जिसकी बजह से लैंडस्लाइड हो रहे हैं। भूवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस आपदा के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को जिम्मेदार ठहराया है। भूवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने कहा है कि अगर सड़क चौड़ीकरण की अत्यधिक आवश्यकता थी, तो सड़क का अलाइनमेंट बदला जा सकता था या वहां सुरंगों का निर्माण किया जा सकता था। पंजाब विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग में मानद प्रोफेसर और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक ओम भार्गव ने कहा ‎कि पहाड़ों की लगभग ऊर्ध्वाधर कटाई ने ढलानों को अस्थिर कर दिया है। बारिश हो या न हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। देर-सबेर,ये ढलानें तो संतुलन स्थापित करती हीं हैं और इसके लिए वह नीचे की ओर ही खिसकतीं। उन्होंने कहा कि वर्टिकल कटिंग का मतलब है कि पहाड़ का ढलान 90 डिग्री के बेहद करीब हो जाता है, जबकि भूवैज्ञानिकों के मुताबिक ढलान 60 डिग्री से कम होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यही वह वजह है ‎जिससे राजमार्ग के ढलानों पर लगातार पत्थरों की बारिश हो रही है, जिससे नियमित अंतराल पर राजमार्ग की एक लेन पर यातायात बाधित हो रहा है।
गौरतब है ‎कि हिमाचल प्रदेश में इस सप्ताह बारिश के कारण कई जगह भूस्खलन हुए, कई सड़कें अवरुद्ध हो गईं और बड़ी संख्या में मकान ध्वस्त हो गए हैं। इन घटनाओं में लगभग 60 लोगों की मौत हुई है और मलबे में और भी लोगों के दबे होने की आशंका है। एनडीआरएफ के मुताबिक, राज्य में बचाव और राहत के लिए केंद्रीय बल की 29 टीमों को तैनात किया गया है जिनमें से 14 सक्रिय हैं। इस बीच, भारी बारिश से राष्ट्रीय राजमार्ग 5 के साथ-साथ कालका-शिमला सड़क का 40 किलोमीटर लंबा भाग परवाणु-सोलन मार्ग के कई हिस्से भूस्खलन की वजह से बर्बाद हो गए।