झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अदालत ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि रजिस्टर्ड सेल डीड रद्द करने का अधिकार उपायुक्तों से छीन ली है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि सेल डीड के निबंधित हो जाने के बाद उसे सिविल कोर्ट ही रद्द कर सकता है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार की ओर से वर्ष 2016 में जारी किए गए उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसके तहत सेल डीड रद करने और प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार उपायुक्तों को दिया गया था।

सांसद निशिकांत दुबे की पत्नी को मिली जीत

इसी मामले में आनलाइन इंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड की निदेशक और सांसद निशिकांत दुबे की पत्नी अनामिका गौतम की भी देवघर में स्थित जमीन की सेल डीड रद्द हुई, जिसे गौतम ने अदालत में चुनौती दी थी। याचिका में अनामिका गौतम ने कहा था कि देवघर उपायुक्त ने श्यामगंज मौजा, देवघर की उनकी जमीन की सेल डीड रद्द कर दी है।

अदालत ने क्या कहा?

अदालत ने कहा कि यह आदेश कानून सम्मत नहीं है। पूर्व में इस मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुरुवार को अदालत ने फैसला सुनाया। उपायुक्तों के सेल डीड रद्द करने के खिलाफ भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की पत्नी समेत 33 लोगों ने याचिका दाखिल की थी।

अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि सेल डीड रद्द करने के मामले में उपायुक्त के निर्देश पर दर्ज सभी प्राथमिकी भी रद हो जाएगी। अदालत कहा है कि यदि फर्जीवाड़ा कर जमीन की खरीद- बिक्री और उसके दस्तावेजों का निबंधन कराया जाता है तो उसे रद करने का अधिकार उपायुक्तों को दिया जाना कानूनसम्मत नहीं है।

सेल डीड रद्द करवाने के लिए सिविल कोर्ट में दाखिल करनी होगी याचिका

यदि किसी को लगता है कि उसके साथ गलत हुआ है और सेल डीड रद्द होनी चाहिए, तो उसे सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल करनी होगी। बता दें कि झारखंड सरकार ने वर्ष 2016 में एक अधिसूचना जारी की थी। इसमें फर्जीवाड़ा कर जमीन का स्थानांतरण की शिकायत के बाद उपायुक्त को सेल डीड रद्द करने का अधिकार दिया गया था।

उपायुक्तों को प्राथमिकी दर्ज करने का भी अधिकार मिला था। इसके बाद कई जिलों के उपायुक्त ने सेल डीड रद्द कर दी थी और प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था। 

जमीन के रजिस्टर्ड सेल डीड को रद करने का अधिकार उपायुक्त के पास नहीं है। राजनीति से प्रेरित होकर उनके मामले में कार्यवाही की गई है। डीड रद का अधिकार सिविल कोर्ट के पास है। इसी तरह के आरोप अन्य याचिकाओं में भी लगाए गए थे।