राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार)  

‘‘राष्ट्रपति’’ का नरेन्द्र मोदी को सरकार बनाने के लिए निमंत्रण क्या ‘‘तकनीकि त्रुटि’’ है?

एनडीए को स्पष्ट बहुमत।

    4 जून 2024 को लोकसभा के आम चुनाव के परिणाम आने के बाद स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट हो चुकी थी कि, चुनाव पूर्व बने दो महत्वपूर्ण गठबंधनों में से एक ‘‘एनडीए’’ को 293 सांसदों का स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ। वहीं दूसरे गठबंधन ‘‘इंडिया’’ को 233 सीटें मिली एवं बहुमत से वह कुछ दूर रहा। कहते हैं न कि ‘‘कर्ता से करतार हारे’’, परन्तु देश को एक मजबूत विपक्ष जरूर मिला। एक-दो दिन की राजनैतिक कयासों व अटकलों के बीच यह स्पष्ट हो गया था कि चुनाव पूर्व बने गठबंधन मजबूत है और गठबंधन दलों से कोई भी पार्टी बाहर आकर दूसरे गठबंधन के पक्ष में नहीं जा रही है। इसलिए जहां तक एनडीए को बहुमत का सवाल है, इस पर कोई प्रश्नवाचक चिन्ह न तो तथ्यात्मक रूप से था और न ही मजबूत विपक्ष ने ऐसा कोई आरोप लगाया। जो इस तथ्य से भी सिद्ध होता है कि ‘इंडिया’ ने सरकार बनाने का दावा पेश ही नहीं किया था। यद्यपि ‘‘कस्तूरी की गंध सौगंध की मोहताज नहीं होती है’’, इसलिए एनडीए के चुने गये नेता के रूप में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाना प्रथम दृष्ट्यिा पूर्णतः संवैधानिक, वैधानिक व तथ्यात्मक दिखता है। परंतु पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रपति के नरेन्द्र मोदी को सरकार बनाने को लेकर कुछ प्रश्नवाचक चिन्ह सोशल मीडिया में एस.एन. साहू पूर्व विशेष सचिव पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायण का वायरल होता लेख द्वारा उठाये जा रहे हैं। उनमें से एक बहुत बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भारतीय जनता पार्टी के 240 सदस्यीय संसदीय दल का नेता न चुना जाना और राष्ट्रपति द्वारा सरकार गठन का निमंत्रण देते समय उन्हें समय सीमा में बहुमत सिद्ध करने के लिए न कहना। आइये! आगे इसकी संवैधानिक व्याख्या करते हैं। 

त्रुटि कितनी! तकनीकी अथवा संवैधानिक?

निश्चित रूप से हमारी संसदीय परम्पराएं, नियम व जो संवैधानिक व्यवस्थाएं है, उनके अंतर्गत चुनाव परिणाम आने के बाद समस्त राजनीतिक पार्टियां अपने नवनिर्वाचित सांसदों की संसदीय दल की बैठक बुलाकर नेता का चुनाव करती हैं। तत्पश्चात ही सबसे बडी पार्टी जिसका चुना हुआ नेता गठबंधन के अन्य दलों के समर्थन से समर्थन पत्र के माध्यम से या गठबंधन दल की बैठक में नेता चुना जाकर सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत करता है। परन्तु वर्तमान में भाजपा की नव निर्वाचित सांसदों की संसदीय दल की बैठक ही नहीं हुई। इस प्रकार नरेन्द्र मोदी अधिकृत रूप से चुने गये? ऐसा प्रश्न सोशल मीडिया में उठाया जा रहा है, जो निश्चित रूप से एक त्रुटि प्रथम दृष्टया दिखती है, कि ‘‘कथा बिना कैसा व्रत’’, परन्तु प्रश्न यह है कि यह त्रुटि कितनी गंभीर है? संवैधानिक है? या वर्तमान राजनीति परिणाम, परिवेश को देखते हुए जानबूझकर की गई है? अथवा अनजाने में हुई है? इस पर गहनता से विचार करना होगा।

संसदीय परम्पराएं एवं पूर्व नजीरे।

इस संबंध में पूर्व राष्ट्रपति के. आर. नारायण व रामास्वामी वेंकटरमन का उदाहरण दिया जा रहा है, जिसका उल्लेख ‘‘कयामत की नजर रखने वाले’’ पूर्व राष्ट्रपति के आर. नारायण के पूर्व विशेष सचिव एस. एन. साहू ने अपने एक लेख में किया है, जो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। आइये! हम देखते है उस समय उन दोनों महामहिमों ने क्या किया। इस संबंध में हमारी पूर्व नजीरें, मिसालें, रिवाज क्या रहे? क्योंकि ‘‘हाथ की नस को हाथ से ही टटोला जाता है’’। पूर्व राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमन ने वर्ष 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी पार्टी 194 सदस्य होने के बावजूद सरकार बनाने के लिए निमत्रंण इसलिए नहीं दिया था कि उन्होंने सरकार बनाने का दावा ही पेश नहीं किया था। तब राष्ट्रपति द्वारा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी/ग्रुप के नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह को सरकार बनाने का निमत्रंण देते हुए 30 दिवस में बहुमत साबित करने के निर्देश दिये थे।
    वर्ष 1996 के चुनाव में भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी 161 सदस्यों के कारण व 146 सदस्यीय कांग्रेस के द्वारा दावा न करने से तत्कालीन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने भाजपा संसदीय दल के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का निमत्रंण दिया था, जो सरकार 13 दिन में बहुमत सिद्ध न कर पाने के कारण गिर गई। 
     वर्ष 1998 में के. आर. नारायणन पूर्व राष्ट्रपति ने सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए निमत्रिंत किया था, बावजूद इस तथ्य के कि चुनाव पूर्व ग्रुप या गठबंधन (एनडीए) को बहुमत नहीं मिला था (मात्र 182 सीट मिली थी)। तथापि निश्चित समय सीमा में बहुमत सिद्ध करने का निर्देश जरूर दिया गया था। अर्थात् उपरोक्त उल्लेखित दोनों परिस्थितियों में सरकार बनाने का निमत्रंण देने के साथ ही तय समय सीमा में बहुमत सिद्ध करने के निर्देश जरूर दिये गये थे, जिनका पालन भी हुआ था। परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में बहुमत सिद्ध करने का निर्देश न देने का सबसे बड़ा आधार यह कि चुनाव पूर्व गठबंधन एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला है, जहां राष्ट्रपति उस बहुमत के प्रति संतुष्ट है जिसे किसी पक्ष-विपक्ष सहित चुनौती नहीं दी है। अतः उक्त निर्देश देने की स्थिति किसी भी रूप में उत्पन्न नहीं होती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि अटल बिहारी वाजपेयी को बहुमत सिद्ध करने का निर्देश तब दिया गया था, जब चुनाव में उन्हें स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। इसलिए सबसे बड़ी पार्टी के रूप में निमत्रिंत करते हुए बहुमत सिद्ध करने के निर्देश दिये थे, जो संवैधानिक व उचित थी। 
    यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि दोनों ही स्थिति में पूर्व राष्ट्रपति ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपने निर्णय के कारणों से देश के नागरिकों को अवगत कराया था। परन्तु वर्तमान में महामहिम ने ऐसा नहीं किया, क्यों? क्या इसलिए तो नहीं कि ‘‘तकल्लुफ में है तकलीफ सरासर’’?

राज्यसभा सदस्य या किसी भी सदन का सदस्य होने पर संवैधानिक स्थिति। 

एक स्थिति ऐसी भी हो सकती है बल्कि पूर्व में हुई भी है, जब राज्यसभा के सदस्य डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई थी। तब निर्वाचित लोकसभा के संसदीय दल का नेता राज्यसभा का सदस्य कदापि नहीं हो सकता है। तथापि नव निर्वाचित सांसदों की बैठक बुलाकर नेता का चुनाव इसलिए किया जाता है ताकि वह नेता लोकसभा होगा। अतः राज्यसभा सदस्य को प्रधानमंत्री के रूप में दावा पेश करने के लिए सिर्फ बहुमत का लिखित में समर्थन का दावा प्रस्तुत करना ही काफी है। एक स्थिति और भी हो सकती है, जब वह किसी भी सदन का सदस्य नहीं हो, तब भी वह प्रधानमंत्री पद का दावा पेश कर सकता है, यदि उसके पास बहुमत का दावा है। तथापि उसे छः महीने के अंदर उसे किसी भी सदन का सदस्य चुना जाना आवश्यक होगा। अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति की सलाह के लिए एक मंत्रिपरिषद का मुखिया प्रधानमंत्री होता है की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। मतलब प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं नियुक्ति होती है। दूसरे शब्दों में ‘‘मोल कमर का होता है, तलवार का नहीं’’। परन्तु अनुच्छेद 75 के अनुसार मंत्रिमंडल जिसका मुखिया प्रधानमंत्री होता हैं, लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगा। अर्थात प्रधानमंत्री को संसद में बहुमत सिद्ध करना होता है। चूंकि वर्तमान में ऐसा निर्देश नहीं दिया गया है, इसलिए यह चूक कहीं महत्वपूर्ण तो नहीं है?