हिमाचल-पंजाब का चुनावी रण, कांग्रेस के लिए दोहरी अहमियत
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें और आखिरी चरण के चुनाव में पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश का चुनाव विपक्षी आईएनडीआईए गठबंधन की अगुवाई कर रही कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय राजनीति ही नहीं इन दोनों सूबों की सियासत के लिए भी बेहद अहम है।
हिमाचल प्रदेश में बीते दो लोकसभा चुनाव के सूखे को खत्म करने की चुनौती के साथ सूबे में कांग्रेस की सरकार के स्थायित्व को बरकरार रखने के लिहाज से यह चुनाव निर्णायक है, क्योंकि छह विधानसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजे उसकी सत्ता की दशा-दिशा तय करेंगे, जबकि पंजाब में पिछले चुनाव में सत्ता गंवाने के साथ बड़े-बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने की पृष्ठभूमि में कांग्रेस के सामने सूबे की सियासत में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की चुनौती है।
आईएनडीआईए के घटक दलों के साथ मिलकर केंद्र की सत्ता की दावेदारी कर रही कांग्रेस के लिए विपक्षी गठबंधन की मजबूत धुरी बनने रहने के लिहाज से भी पंजाब-हिमाचल में पार्टी का चुनावी प्रदर्शन बेहद अहम है। हिमाचल प्रदेश में वैसे तो लोकसभा की केवल चार सीटें ही हैं, मगर संसद में संख्या बल की ताकत की अहमियत को देखते हुए एक-एक सीट के नतीजे पार्टी के लिए मायने रखते हैं। विशेषकर पिछले दो आम चुनाव में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल पायी और 2021 में मंडी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की प्रतिभा सिंह विजयी रहीं।
मंडी में इस बार उनके बेटे हिमाचल सरकार के मंत्री विक्रमादित्य सिंह मैदान में हैं। हिमाचल की राजनीति में वर्चस्व बनाए रखना सीटों के लिहाज से पार्टी के लिए जितना अहम है, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि कांग्रेस को इसके जरिए भाजपा के हिन्दुत्व का प्रखर जवाब देने का मौका मिलेगा।
देव भूमि कहे जाने वाले हिमाचल की 98 प्रतिशत आबादी हिन्दू है और पिछले विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद से कांग्रेस यह कहती भी रही है कि देवभूमि ने भाजपा के हिन्दुत्व के नैरेटिव को नकार दिया। लेकिन हाल के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस का बहुमत होते हुए भी अभिषेक सिंघवी की हार ने हिमाचल की सुखू सरकार के स्थायित्व को डगमगा दिया है।
इतना ही नहीं, सिंघवी की हार ने लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी की चुनौती बढ़ा दी है। हालांकि, छह बागी विधायकों की सदस्यता खत्म कर पार्टी ने अपनी राज्य सरकार का तात्कालिक संकट दूर कर लिया तो लोकसभा चुनाव में विक्रमादित्य को मंडी से तो आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ नेता को कांगड़ा में उम्मीदवार बना सूबे की सियासत में पूरे दमखम से डटे रहने का संदेश दिया है। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी पंजाब के साथ हिमाचल के चुनाव प्रचार में उतर गया है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे शनिवार को शिमला में थे, तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के भी दौरे प्रस्तावित हैं। कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल के बाद सबसे अधिक सीटें पंजाब से हासिल की थी जहां की 13 में से 9 सीटें पार्टी के खाते में आयी थी। लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद कांग्रेस में हुए भारी विवाद के बीच 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की बड़ी हार हुई और आम आदमी पार्टी को पहली बार सूबे की सत्ता मिल गई।
कैप्टन के बाद सुनील जाखड़, मनप्रीत बादल, परणीत कौर, रवनीत बिटटू से लेकर सूबे के कई बड़े नेताओं और सांसदों ने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया है। बेशक कांग्रेस राज्य में अब भी मुख्य विपक्षी दल है मगर पंजाब में इस बार तमाम पार्टियां अकेले मैदान में हैं जिसकी वजह से पिछले लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। आम आदमी पार्टी सूबे में अपनी सत्ता की साख बनाए रखने के लिए पूरा जोर लगा रही तो इस बार अकेले मैदान में उतरी भाजपा ने कई पुराने कांग्रेसियों को अपना उम्मीदवार बनाया है।
अकाली दल बादल सिख पंथ की अपनी राजनीति का अस्तित्व बचाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रहा है तो बसपा भी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का अपना दर्जा बनाए रखने की अहमियत को देखते हुए पंजाब में अकेले मैदान में है। इसके अलावा सिमरनजीत सिंह मान जैसे लोगों की कुछ स्थानीय पार्टियां भी चुनावी अखाड़े में हैं।
इस चुनावी परिदृश्य से साफ है कि राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सीटों की संख्या के ग्राफ में उछाल के साथ सूबे की सियासत की मुख्य धुरी बने रहने के लिहाज से पंजाब चुनाव की कांग्रेस के लिए कितनी अहम है और पार्टी के सुपर स्टार प्रचारक राहुल गांधी का दिल्ली में वोट डालने के बाद शनिवार को प्रचार के लिए अमृतसर पहुंचना पंजाब के चुनावी रण की अहमियत का अहसास कराता है।