अल नीनो के प्रभाव ने देशभर में मानसून को बेवफा कर दिया है। प्रदेश के अन्य राज्यों के साथ ही हरियाणा में मानसून सक्रिय नहीं होने से किसान मायूस हैं। इसके चलते उन्हें सिंचाई के लिए ट्यूबवेल पर निर्भरता बढ़ी है। इससे बिजली की खपत भी बढ़ी है। अलबत्ता सितंबर माह के शुरूआत से ही लोगों पर गर्मी आफत बनकर बरस रही है।

मौसम विभाग ने आगामी सात दिन तक अधिकतम तापमान में ज्यादा बदलाव नहीं होने की संभावना जताई है तो इस अवधि में हरियाणा का अधिकतर क्षेत्र शुष्क रहेगा। जबकि कुछ जगहों पर हल्की बारिश की संभावना है।

अल नीनो के प्रभाव के चलते अगस्त माह में भी वर्षा रूठी रही। जबकि इस समय मौसमी सिस्टम पर नजर डाली जाए तो दक्षिण उड़ीसा और उत्तरी आंध्र प्रदेश तट के पास पश्चिम मध्य बंगाल की खाड़ी के उत्तर-पश्चिम और आसपास के हिस्सों पर एक कम दबाव का क्षेत्र बन गया है।

मानसून ट्रफ का पश्चिमी छोर हिमालय की तलहटी और पूर्वी के करीब चला गया है। निम्न दबाव क्षेत्र से जुड़े चक्रवाती परिसंचरण से उत्तर-तटीय आंध्रप्रदेश होते हुए तेलंगाना तक एक टर्फ रेखा फैली हुई है। आगामी 24 घंटों के दौरान केरल, ओडिशा, गंगीय पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, पूर्वी मध्यप्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम वर्षा की संभावना है।

निम्न दबाव का आगे का भाग पूर्वी हिस्सा राजस्थान के कुछ हिस्सों में प्रवेश करेगा। लेकिन यह मौसम प्रणाली गुजरात, पश्चिमी राजस्थान, हरियाणा और पंजाब तक प्रभावी ढंग से पहुंचने में सफल नहीं रहेगी। लिहाजा हरियाणा में आगामी सात दिन तक अधिकतम तापमान में ज्यादा बदलाव नहीं होने की संभावना है।

मानसून की इस बेरूखी के साथ ही यह भी संकेत है कि 17 सितंबर के आसपास मानसून की वापसी हो सकती है। हालांकि मौसम विभाग के अनुसार आने वाले सात दिन में हरियाणा के अधिकतर जिलों में बरसात की संभावना नहीं है। जबकि उत्तर हरियाणा के कुछ जिलों में हलकी बूंदाबांदी हो सकती है।

प्रशांत महासागर में पेरू के पास समुद्री तल के गर्म होने को अल-नीनो कहकर पुकारा जाता है। इस बदलाव के चलते समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से चार से पांच डिग्री ज्यादा हो जाता है। इस मौसमी सिस्टम से बरसात, गर्मी व ठंड में अंतर आता है।

इस बार अल नीनो के प्रभाव से अगस्त माह में मानसून कमजोर हो गया। जब अल नीनो सक्रिय हो जाता है तो धरती के कुछ हिस्सों में सूखे के हालात पैदा हो जाते हैं। क्योंकि यह दक्षिण-पश्चिम मानसून को कमजोर करता है। इसके प्रभाव से कुछ जगहों पर भारी बरसात भी हो जाती है।