उत्तरकाशी। सिल्कयारा सुरंग में बीते एक पखवाड़े से फंसे 41 मजदूरों को निकालने में भारी दिक्कतें आ रहीं हैं। कभी ड्रिल मशीन खराब होती है तो कभी कोई और समस्या आ जाती है। इस तरह की घटनाएं दुबारा न हों इसके लिए जानकार अपने सुझाव देने के लिए सामने आए है। उन्होंने पत्रकारों से यहां तक कह दिया कि यदि सिफारिशों पर पूरी तरह अमल किया होता हो शायद मजदूरों की जान खतरे में नहीं पड़ती।
उत्तराखंड बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में भूगर्भ एवं पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर एसपी सती ने कहा वैधानिक तौर पर किसी भी सुरंग परियोजना के तहत आपात स्थिति में बाहर निकलने के लिए एक विशेष मार्ग के निर्माण को अनिवार्य किया गया है।’ सिल्कयारा सुरंग और चार धाम परियोजना जैसी परियोजनाओं के लिए आम तौर पर पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन (ईआईए) करने की आवश्यकता होती है। मगर इस परियोजना के लिए सरकार ने ऐसा कोई आकलन नहीं किया। पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन करने संबंधी जरूरतों को दरकिनार करते हुए इस परियोजना को 100 किलोमीटर से छोटे कई खंडों में विभाजित किया गया था। इस परियोजना के लिए सरकार द्वारा पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन न कराए जाने के सवाल पर सती ने कहा कि यह आकलन महज एक दिखावा है।
सती ने कहा, ‘हमने देखा है कि सुरंग बनाने के दौरान ठेकेदार विस्फोटकों का इस्तेमाल करते हैं। यह दुर्घटना विस्फोटकों के इस्तेमाल के कारण भी हुई होगी। इसके अलावा, आपातकाल में बाहर निकलने के लिए बचाव मार्ग का न होना चिंताजनक है। उन्होंने पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में मौजूद सभी परियोजनाओं के लिए व्यापक भूगर्भीय एवं भू-तकनीकी सर्वेक्षण कराने की आवश्यकता पर जोर दिया। सती ने कहा, ‘सुरंग के निर्माण संबंधी सुरक्षा नियमों की व्यापक समीक्षा करने की जरूरत है। इसके अलावा सभी सुरंग परियोजनाओं की देखरेख एवं निगरानी करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित करने की जरूरत है जिसमें विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए।’
सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 में एक समिति गठित की थी जिसने इस परियोजना के लिए उपचारात्मक उपायों का सुझाव दिया था। इस समिति के पूर्व अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने कहा कि इस सप्ताह के आरंभ में पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन करना आवश्यक था। उन्होंने कहा कि समिति ने केंद्र से त्वरित आकलन कराए जाने की सिफारिश की थी जिसे अधिकारियों ने नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने कहा कि यह कथित तौर पर एक आपराधिक मामला बनता है। ईआईए अधिसूचना 2006 के अनुसार, परियोजना के दौरान जगहों में भौतिक बदलाव संबंधी किसी भी निर्माण, परिचालन आदि गतिविधियों के लिए सरकार को व्यापक आकलन रिपोर्ट देना अनिवार्य है। इसके अलावा ठेकेदार के लिए खनन एवं सुरंग सहित सभी भूमिगत कार्यों की व्यापक जानकारी उपलब्ध कराना जरूरी है।
एनडीएमए के सदस्य सैयद अता हसनैन ने इस सप्ताह के आरंभ में संवाददाताओं से कहा था, ‘यह एक तरह का युद्ध है जहां दुश्मन हिमालयी भूगर्भ है।’ विशेषज्ञों के अनुसार, हिमालय का भूगर्भ इतना नाजुक है कि बचाव के पयास में भी तमाम बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इससे पता चलता है कि चार धाम परियोजना जैसी परियोजनाओं की मंजूरी और कार्यान्वयन में काफी सावधानी बरती जानी चाहिए थी। बता दें कि उत्तराखंड में निर्माणाधीन सिल्कयारा-बरकोट सुरंग में पिछले दो सप्ताह से 41 मजदूर फंसे हुए हैं। सरकार और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा तमाम रणनीति बनाए जाने और बेहतरीन उपकरणों एवं विशेषज्ञता के साथ प्रयास किए जाने बावजूद उन्हें अब तक बाहर नहीं निकाला जा सका है।