70 साल पुराने DARPA मॉडल को अपनाना चाहती है सरकार
एक जून को आखिरी सातवें चरण का चुनाव खत्म हो जाएगा और चार जून को चुनाव परिणाम घोषित हो जाएंगे। वहीं आठ जून को नई सरकार शपथ ले लेगी। अगर भाजपा सरकार की फिर से वापसी होती है, तो डिफेंस सेक्टर में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड बनाने का वादा भाजपा अपने घोषणा पत्र में भी कर चुकी है और सरकार बनने से पहले ही इस पर काम शुरू भी हो गया है। वहीं अगला बड़ा बदलाव डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) में देखने को मिलेगा। सरकार ने इसे अपने 100 दिन के एजेंडा में शामिल किया है। सरकार ने इसके लिए 31 अगस्त की डेडलाइन तय की है। प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लाल किला के प्राचीर से इसका एलान कर सकते हैं। वहीं डीआरडीओ में सुधारों को लेकर सरकार की बनाई राघवन समिति की रिपोर्ट का विरोध शुरू हो गया है। उनका कहना है कि रिफॉर्म्स के लिए 100 दिन बेहद कम हैं।
ये चेहरे हैं रेस में
डीआरडीओ के मौजूदा अध्यक्ष समीर वी. कामत 31 मई को रिटायर हो जाएंगे। हालांकि सरकार ने अभी तक उनका कार्यकाल बढ़ाने को लेकर कोई फैसला नहीं किया है। कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) डीआरडीओ प्रमुख के अपॉइंटमेंट पर फैसला लेगी। वहीं नए डीआरडीओ प्रमख बनने की रेस में कुछ नाम चर्चा में हैं। इनमें उनके सहयोगी और वर्तमान में महानिदेशक (इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार प्रणाली) बीके दास, माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, कम्प्यूटेशनल सिस्टम और साइबर सिस्टम डिवीजन की हेड डॉ. सुमा वरुघीस, और मिसाइल एंड स्ट्रेटेजिक सिस्टम डिवीजन के प्रमुख डॉ. उम्मालनेनी राजा बाबू के नाम शामिल हैं। रक्षा सूत्रों के मुताबिक इन तीनों में से दास सबसे वरिष्ठ हैं। ये तीनों लोग अगस्त, जनवरी और अप्रैल 2026 में रिटायर होने वाले हैं। वहीं सूत्रों का कहना है कि समीर वी. कामत कामत को 31 मई के बाद एक्सटेंशन दिया जा सकता है।
चार इंजीनियरों को बुला कर 'हार्ट ट्रांसप्लांट' कर रही सरकार
डीआरडीओ के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक और डायरेक्टर पब्लिक इंटरफेस रह चुके रवि कुमार गुप्ता ने विशेष बातचीत में बताया कि नए अध्यक्ष का कार्यकाल बेहद चैलेंजिंग रहने वाला है। या यूं कहें कि नए चीफ के लिए यह कांटों भरा ताज साबित होने वाला है। बता दें, पिछले साल अगस्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डीआरडीओ में सुधारों को लेकर पूर्व मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय कमेटी गठित की थी। समिति ने इस साल जनवरी में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस समिति के गठन के पीछे वजह थी कि डीआरडीओ में सुधार करने और दशकों से चली आ रही शिकायतों से निपटने के लिए सुझाव दिया जा सकें। उनका कहना था कि डीआरडीओ को जिस तरह से हर साल फंडिग मिल रही है, उसके मुताबिक वह आउटपुट मिल पा रहा है, जो बड़े पैमाने पर न्यायसंगत हों। वहीं सरकार अब इस समिति की सिफारिशों को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इसके लिए सरकार ने इसे अपने 100 दिन के एजेंडा में शामिल किया है और 31 अगस्त की डेडलाइन तय की है। पूर्व वैज्ञानिक रवि गुप्ता कहते हैं कि सरकार को आखिर इतनी जल्दी क्या है। सरकार मूलभूत कारणों को समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है। सरकार की बनाई समिति को डीआरडीओ के कामकाज के बारे में कुछ नहीं पता। खुद विजय राघवन बॉयोलॉजिस्ट रहे हैं, उन्हें डीआरडीओ के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। वह कहते हैं कि यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे बाहर से चार इंजीनियरों को बुला कर हार्ट ट्रांसप्लांट किया जा रहा है।
समिति में ये लोग हैं शामिल
के विजय राघवन की अध्यक्षता में जो 9 सदस्यीय कमेटी गठित की गई है, वह प्रधानमंत्री के निर्देश पर काम करती है। इस नौ सदस्यीय समिति में राघवन के अलावा पूर्व उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा (सेवानिवृत्त), नौसेना स्टाफ के पूर्व उप प्रमुख वाइस एडमिरल एसएन घोरमडे, इंटीग्रेटेड स्टाफ के पूर्व प्रमुख एयर मार्शल बीआर कृष्णा, मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के महानिदेशक सुजान आर. चिनॉय, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल, सोसाइटी ऑफ इंडियन डिफेंस मैन्युफैक्चरर्स के अध्यक्ष एसपी शुक्ला, लार्सन एंड टुब्रो डिफेंस के जेडी पाटिल, प्रसिद्ध वैज्ञानिक एस. उन्नीकृष्णन नायर और इसरो और रक्षा मंत्रालय (एमओडी) में वित्तीय सलाहकार रसिका चौबे शामिल हैं। इस कमेटी को जो जिम्मेदारी दी गई है, उसमें रक्षा विभाग (आरएंडडी) एवं डीआरडीओ का पुनर्गठन और भूमिका को फिर से परिभाषित करना, शामिल है। इसके अलावा इनका आपसी और शैक्षणिक समुदाय व इंडस्ट्री के साथ संबंध तय किया जाएगा। शैक्षणिक समुदाय, एमएसएमई और कटिंग एज टेक्नालॉजी के क्षेत्र में स्टार्टअप की सहभागिता निर्धारित होगी।
70 साल पुराने DARPA मॉडल को अपनाना चाहती है सरकार
डीआरडीओ पर 'शेप्ड मॉर्डन इंडिया-डीआरडीओ' टाइटल से किताब लिख चुके पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक रवि कुमार गुप्ता बताते हैं कि सरकार की बनाई 9 सदस्यीय टीम में कोई भी डीआरडीओ से नहीं है। इनमें से किसी को भी डीआरडीओ के इको सिस्टम की समझ नहीं है। सरकार डीआरडीओ को अमेरिका के DARPA की तरह बनाना चाहती है। जबकि DARPA मॉडल को 70 साल पहले बनाया गया था। वहां की जरूरतें अलग हैं। वह कहते हैं कि रिफॉर्म करने की बात कह कर सरकार डीआरडीओ के रोल को कम करके आंक रही है। अगर सरकार डीआरडीओ के इको सिस्टम के साथ खिलवाड़ करेगी तो देश की सेनाओं के लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट का काम कौन करेगा। वह कहते हैं कि 100 दिन का एजेंडे वाली बात राजनीति से प्रेरित है। सरकार को इस पर खुल कर डिस्कशन करना चाहिए। डीआरडीओ के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों को इस प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए।
प्रोजेक्ट्स में देरी के पीछे यह है वजह
पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक बताते हैं कि सरकार रिफॉर्म के पीछे यह दलील दे रही है कि डीआरडीओ प्रोजेक्टस में देरी करता है, जिससे लागत बढ़ती है। यह आरोप बिल्कुल गलत है। डीआरडीओ एक रिसर्च आर्गेनाइजेशन है, उसे हर मौसम के लिहाज से प्रोजेक्ट की टेस्टिंग करनी होती है। यहां मौसम बदलने के लिए तीन से चार महीने का इंतजार करना होता है। इसके चलते तो देरी होना तो स्वाभाविक है। वह अग्नि मिसाइल का उदाहरण देते हैं कि इसका पहली बार में सफल परीक्षण हुआ। इसकी वजह थी कि डीआरडीओ ने कई बार सिमुलेशन किया, जिससे सटीक रिजल्ट आए और परीक्षण कामयाब रहा। लेकिन सरकार ने बनाई कमेटी ने क्या सिमुलेशन किया। इस बात की क्या गारंटी है कि डीआरडीओ को कोई डैमेज नहीं पहुंचेगा। वह आगे कहते हैं कि सरकार के इस फैसले से जो भी डीआरडीओ के मौजूदा प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, उनमें और देरी होगी। जिसका सीधा फायदा इंपोर्ट लॉबी को होगा। वह आगे कहते हैं कि इससे पहले भी कई समितिया बनी हैं, इनमें एपीजे अब्दुल कलाम समिति (1992), पी. रामाराव समिति (2008) और वी. रामगोपाल राव समिति (2020) शामिल हैं। वह सवाल उठाते हैं कि इन समितियों की सिफारिशों में क्या गड़बड़ी थी। इनकी रिकमेंडेशन और इंप्लीमेंटेशन में क्या कमी रह गई?
इंसास और अर्जुन टैंक इसलिए हुए फेल
रवि कुमार गुप्ता कहते हैं कि लोग सोचते हैं कि डीआरडीओ के पास इसरो और एटोमिक एनर्जी की तरह आजादी है। लेकिन यह सच नहीं है। इसरो और एटोमिक एनर्जी ऑटोनॉमस बॉडी हैं, जबकि डीआरडीओ रक्षा मंत्रालय के अधीन आती है। डीआरडीओ को भी आजादी मिलनी चाहिए। वह कहते हैं कि सेना ने डीआरडीओ से इंसास राइफल बनाने के लिए कहा। हमने उसे हर मौसम में टेस्ट किया और वह खरी उतरी। हमने उसे प्रोडक्शन के लिए सरकार के पास भेज दिया। ओएफबी ने उसे बनाया और कुछ राइफल्स में सेना को दिक्कतें पेश हुईं। सेना ने डीआरडीओ के ऊपर ठीकरा फोड़ दिया है कि इंसास के डिजाइन में कमी है।
वह कहते हैं कि इसमें कमी निर्माता कंपनी के प्रोडक्ट क्वॉलिटी कंट्रोल की थी। हमारे अधिकार में प्रोडक्शन नहीं है। तो इसमें हमारी क्या गलती है। सेना ने हमसे कम वजनी मेन बैटल टैंक बनाने के लिए कहा। हमने अर्जुन टैंक बनाया। बीच में सेना ने अपनी जरूरत बदल दी कि उन्हें ऐसा टैंक चाहिए कि जिसके अंदर तीन की जगह चार आदमी बैठ सकें और कुछ ऩए इक्विमेंट लगाने के लिए बोला। अब चार लोगों को बैठाने के लिए तो टैंक में जगह बनानी होगी। इससे टैंक का वजन बढ़ा। सेना ने रिजेक्ट कर दिया। बाद में सेना ने रूस से टी-90 टैंक खरीद लिए। खास बात यह थी कि उसमें केवल तीन लोग ही बैठ सकते थे। इसमें डीआरडीओ की क्या गलती रही है।
आईएएस अफसरों को बैठाना चाहती है सरकार
राघवन समिति की जिन सिफारिशों का विरोध हो रहा है, उनमें डायरेक्टर जनरल और डायरेक्टर के पदों को खत्म करने की बात कही गई है। इनकी जगह "मेंबर" और "लैब-इन चार्ज" होंगे। रवि गुप्ता कहते हैं कि सरकार वैज्ञानिकों की जगह आईएएस अफसरों को बैठाना चाहती है। जिन्हें डीआरडीओ की कार्यप्रणाली के बारे कुछ पता नहीं होगा, जो वहां पर सिर्फ ब्यूरोक्रेसी चलाएंगे। इसका असर न केवल डीआरडीओ पर होगा, बल्कि डीआरडीओ से जुड़ी सस्थाओं पर भी इसका असर पड़ेगा। बता दें कि सरकार डीआरडीओ में फिलहाल 22000 हजार के आसपास कर्मचारी हैं, जो डीआरडीओ की लगभग 50 लैब्स में काम कर रहे हैं। इनमें लगभग 30 फीसदी वैज्ञानिक हैं, जबकि बाकी का स्टॉफ कॉन्ट्रैक्ट पर है। नए सुधारों में सरकार इन लैब्स की संख्या भी कम करने की बात कह रही है। इसके अलावा रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर कामत ने राघवन समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए डीआरडीओ महानिदेशकों की अध्यक्षता में 13 अलग-अलग समितियों का गठन किया है। राघवन समिति ने रक्षा मंत्रालय में सेक्रेटरी, आर एंड डी की पोस्ट में भी बदलाव करने का प्रस्ताव दिया है, जो वर्तमान में डीआरडीओ चेयरमैन के पास है। वहीं डीआरडीओ का बजट 2023-24 के बजट अनुमान में 23,264 करोड़ रुपये का है, जिसे 2025 तक 35,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाने का लक्ष्य है।