उत्तराखंड में स्थित योग नगरी ऋषिकेश एक पावन तीर्थ स्थल है. हर साल हजारों की संख्या में लोग यहां मंदिरों के दर्शन करने आते हैं. यहां कई सारे प्राचीन व मान्यता प्राप्त मंदिर स्थापित हैं. हर मंदिर का अपना इतिहास, अपना महत्व व अपनी विशेषता है. इन सभी प्राचीन व मान्यता प्राप्त मंदिरों में से एक है, ऋषिकेश के मेन बाजार में भरत मंदिर के पास स्थापित प्राचीन मां भद्रकाली मंदिर.

धर्मानंद शास्त्री बताते हैं कि यह मंदिर ऋषिकेश के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जिसका निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा करवाया गया था. इस मंदिर की एक कथा काफी प्रचलित है जोकि स्कंद पुराण के केदार खंड में वर्णित है. रैभ्य मुनि की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान नारायण ने उन्हें दर्शन दिए थे, तब भगवान नारायण ने कहा कि वह हृषीकेश नाम से यहां विराजमान होंगे. तब उन्होंने यह भी कहा था कि त्रेता युग में दशरथ पुत्र भरत उनकी पुनः स्थापना करेंगे, इसीलिए त्रेता युग में भगवान भरत ने नारायण का पूजन कर उनकी पुनः स्थापना की.

भरत ने की थी मूर्ति स्थापित

पुजारी धर्मानंद आगे बताते हैं कि त्रेता युग में जब भरत ने भगवान नारायण की पुनः स्थापना और पूजन किया, तब उन्होंने यहां मां माहेश्वरी की मूर्ति की भी स्थापना की. भरत मंदिर के पास में स्थित मां भद्राकाली के मंदिर में वो मूर्ति स्थापित है. जिसके बाद आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया और आज यह मंदिर मां भद्रकाली के नाम से प्रसिद्ध है. मान्यता है कि मूर्ति के दर्शन मात्र से आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है. अगर आप ऋषिकेश घूमने आए हुए हैं या फिर आने की सोच रहे हैं, तो मेन बाजार में स्थित इस मंदिर के दर्शन जरूर करें. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस मंदिर के कपाट प्रातः 6 बजे खुल जाते हैं और रात में 9 बजे तक यह मंदिर भक्तों के लिए खुला रहता है.

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