राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार)  

-ग्यारहवॉं आकलन- द सूत्र के लिए (सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म)
2023 के अंत में हो रहे मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में जनता की सरकार! किस झंडे तले?
                                                     

  ‘‘चाणक्य" की "शाही चाणक्य नीति’’! कितनी असरदार?
 

   वर्ष 2023 में होने वाले मध्य-प्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम का आकलन आरंभ किए हुए साढे पाच महीने व्यतीत हो चुके हैं। पिछले कुछ समय से राजनैतिक क्षेत्रों चर्चाओं व मीडिया में कांग्रेस को एक प्रारंभिक बढ़त दिख रही या दिखाई जा रही थी। अब ऐसा लगता है कि पिछले पखवाड़े में भाजपा हाईकमान ने खासकर ‘‘चाणक्य अमित शाह’’ ने जो व्यूह रचना रची है, तदनुसार धरातल पर जिस तेजी से कार्य हो रहा है, उससे भाजपा की स्थिति में काफी सुधार दृष्टिगोचर हो रहा है। विपरीत इसके कांग्रेस के पास अनेकों महत्वपूर्ण मुद्दे होने के बावजूद प्रदेश स्तर पर कांग्रेस उस मुस्तैदी के साथ खड़े नहीं दिख रही है, जैसा कि भाजपा जमीन पर खड़ी है अथवा कांग्रेस का हाईकमान मध्यप्रदेश में सक्रिय दिख रहा है। 

 शिवराज सिंह चौहान आगामी चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं? 
  

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का डेढ़ महीने में में तीसरा दौरा हुआ है और देश के गृहमंत्री का फिर भोपाल दौरा हुआ है। अमित शाह ने शिवराज सिंह के चेहरे के एंटी इनकंबेंसी फैक्टर से निपटने के लिए सबसे महत्वपूर्ण नीति अभी जो तय की है, सूत्रों के अनुसार तदनुसार आगामी चुनाव में ‘‘मुख्यमंत्री का चेहरा’’ कोई नहीं होगा। अर्थात विद्यमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री के चेहरे नहीं होंगे। मतलब इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि शिवराज सिंह के नाम से वोट नहीं मांगे जाएंगे। चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा। इसके लिए शिवराज सिंह शायद विधानसभा का चुनाव ही न लड़े। अर्थात गुजरात स्टाइल में मुख्यमंत्री से लेकर कुछ वरिष्ठ मंत्रीगण स्वयं चुनाव लड़ने से मना कर दे या यह कहा जाय कि ‘‘निर्देश’’ पर मना कर दें। अमित शाह ने नरेन्द्र सिंह तोमर को आगे रख कर और सुश्री उमाश्री भारती, प्रहलाद पटेल व कैलाश विजयवर्गीय की ‘‘चौकडी’’ को यदि प्रभावी बना दिया तो, निश्चित रूप से यह चौकड़ी, की धमाचौकड़ी से विद्यमान  परिस्थितियों में परिवर्तन की संभावनाएं हो जाएगी और जैसा कि चुनाव विश्लेषक प्रदीप गुप्ता के अनुसार बीजेपी को बढ़त के आसार है। मोदी को वैसे भी भाजपा प्रदेशों में हुए चुनावों में नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे रखकर ही अभी तक चुनाव लड़ती चली आ रही है। जहां सफलताएं और असफलताएं दोनों मिली हैं। अब मध्यप्रदेश में यह नीति कितनी कारगर सिद्ध होगी, यह आने वाला समय ही बताएगा?

प्रियंका गांधी की महाराज के गढ़, घर में हुंकार?

    राहुल गांधी के बाद प्रियंका गांधी ने महाराज ज्योतिराज सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में बड़ी सभा कर कांग्रेस में प्राण फूंकने का प्रयास किया है। लेकिन आशा अनुसार संचार, सक्रियता कांग्रेसियों की जमीन पर होते नहीं दिख रही है। परिणाम स्वरूप भाजपा न केवल उक्त आकलन की प्रारंभिक बढ़त को समाप्त करते हुए दिखाई दे रही है, बल्कि चुनाव में यदि कांग्रेस की गति, नीति इसी तरह से चली, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा, भाजपा सरकार बना ले।   

आदिवासी के बाद दलित वोटों की चिंताः-

    भाजपा ने आदिवासियों के वोट को एकजुट करने के लिए बिरसा मुंडा, टंट्या मामा, शंकरदास शाह, रानी दुर्गावती, रानी कमलापति के नामों पर भवन विश्वविद्यालय, चौहराये, रेलवे स्टेशन के नामों के साथ साथ ‘‘पेशा एक्ट’’ के नियम को लागू किया है। अब एक कदम आगे बढ़ाते हुए दलित वोटों के लिए संत रविदास जयंती पर उनका स्मारक बनने का भी भूमि पूजन प्रधानमंत्री द्वारा कराया गया। संत रविदास के उद्देश्यों को लेकर पांच हिस्से में यात्रा निकाली जा रही है। अमित शाह ने भोपाल प्रवास के दौरान अभी यह तय किया है कि प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों से पांच विकास यात्रा निकाली जाएंगी, जिनका नेतृत्व पांच प्रमुख नेता करेंगे। विपरीत इसके सीधी का जो पेशाब कांड हुआ है अथवा अभी छतरपुर मानव मल कांड घटित हुआ है, कांग्रेस पार्टी की धरातल पर उन मुद्दों को लेकर सक्रियता का नितांत अभाव दिखता है। पार्टी का अनुसूचित जाति एवं जनजाति प्रकोष्ट धरातल पर नहीं, सिर्फ ट्वीटस् पर ही दिखते है। तथापि आदिवासी स्वाभिमान यात्रा 19 जुलाई से चल रही है, परन्तु उसकी कोई चर्चा या शोर सुनाई नहीं आ रहा है। इन सब मुद्दों पर सक्रिय न दिखने का दुष्परिणाम पार्टी को आगामी चुनाव में भुगतने पड़ सकते हैं।

रेवडी कल्चर
  

 वैसे शिवराज सिंह सरकार द्वारा सवा लाख करोड़ से अधिक कर्जा लेने का कारण खजाना खाली होने के बावजूद दोनों पार्टियों; की सरकार बनाये रखने के लिए एवं दूसरी सरकार में आने के लिए घोषणाएं पर घोषणाएं किये जा रही हैं। प्रदेश सरकार पिछले 6 महीनों में 11 बार कर्ज ले चुकी है। अभी 10 हजार करोड़ कर्ज सरकार पुनः लेने जा रही है, जो शायद लाडली लक्ष्मी योजना में खर्च की जायेगी। वैसे शिवराज सिंह सरकार की पिछले 18 वर्षो की रेवडी देने वाली पैदा होने से लेकर अंतिम संस्कार तक विभिन्न योजनाएं के नाम यदि गिनाये जाए तो, एक किताब लिखी जा सकती है। क्योंकि यदि समझ घोषणाओं को असली जामा पहनाकर धरातल पर उतारा जाए तो एक अनुमान के अनुसार दो खराब आठ अरब रुपए खर्च होंगे। रेवडी कल्चर की यह उच्चतम  स्थिति है।
  

 घोषणावीर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की देखा देखी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ‘‘पूर्व’’ शब्द को हटाने के लिए ‘‘कृषक न्याय योजना’’ के नाम से पांच घोषणाएं की है, जो निम्न है। 1. 5 हॉर्स पावर का बिल माफ। 2. बिजली का बकाया माफ। 3. किसानों का कर्जा माफ। 4. आंदोलनों के मुकदमे माफ। 5. 12 घंटे बिजली का रास्ता साफ। इन घोषणाओं के संबंध में भाजपा प्रवक्ता नरेन्द्र सलुजा का यह स्पष्ट कथन है कि ये समस्त घोषणाएं शिवराज सिंह की सरकार ने पहले ही लगभग पूरी कर दी हैं। ऐसी स्थिति में ‘‘ हाथ में एक पक्षी, झाड़ी में दो के बराबर हैं’’।  अतः स्पष्ट है, गुजरते समय के साथ काटे की टक्कर होकर फिलहाल मुकाबला पुनः बराबरी में आकर भाजपा बढ़त लेने की स्थिति की ओर अग्रसर हो रही है।