डॉ.टी.महादेव राव  (जन्मोत्सव दिनाँक 21-06-2025)
(बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, विविध साहित्यिक विधाओं में हिंदीतर राज्य आन्ध्रप्रदेश, विशाखापट्टणम् शहर के साहित्य सृजन के पुरोधा ।) “मैं विश्वास करता हूँ कि ईमानदार कोशिशों के अलावा, कड़ी मेहनत के सिवा और कोई चीज आपको सफलता नहीं दे सकती और मेरा यह विश्वास मुझे हमेशा आश्वस्त करता है।“ डॉ.टी महादेव राव (चुभते लम्हे की भूमिका से)  भारत देश के दक्षिण पूर्व में बसे आन्ध्रप्रदेश राज्य के विशाखापट्टणम शहर की सृजन संस्था के संस्थापक स्तंभ बहुआयामी व्यक्तित्व के साहित्यकार इनका जन्म 21/06/1958 को विजयनगरम् स्थान पर हुआ था। माता स्वर्गीया श्रीमती जयलक्ष्मी और पिता स्वर्गीय टी.अप्पाराव । पत्नी श्रीमती लक्ष्मी जी , पुत्र-विनीत कुमार ,पुत्री लता दीपिका । उनकी शिक्षा का प्रारंभ विजयनगरम में कक्षा आठवीं तक व पश्चात (मध्यप्रदेश) वर्तमान छतीसगढ के बिलासपुर व रायपुर से स्नातक एवं स्नातकोत्तर (एम.ए.) व पीएचडी हिंदी (विषय-नई कविता के नाट्य-काव्यों में चरित्र सृष्टि विषय पर शोध प्रबंध), एम.ए. दर्शनशास्त्र इस तरह आंध्र विश्वविद्यालय से पी.जी.डिप्लोमा इन “जर्नलिज्म एण्ड मास कम्यूनिकेशन” में पूर्ण करते हुए तेलुगु व हिंदी लेखन को और अधिक समृध्द करते रहे। 
इनके जीवन में छतीसगढ क्षेत्र का प्रसिध्द उर्जानगरी कहलाने वाला स्थान कोरबा से उनका रिश्ता वर्ष 1978 से 1990 तक कोरबा एल्यूमिनियम कंपनी में नौकरी से जुड़ने के कारण से जुड़े रहना संभव रहा। साहित्य सेवा हमेशा वहां पर जारी रहा। कुछ विषम परिस्थियोंवश उनको कोरबा से अलग होना पड़ा उस दौरान वे अखबारनवीसी के रूप में रायपुर में 1990-1991 एक दैनिक समाचार से जुड गए। फिर जीवन में एक सकारात्मक मोड आया वर्ष 1991 में, जब विशाखापट्टणम शहर के हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड़, विशाखा रिफाइनरी में  राजभाषा प्रभारी के पद पर कार्य करते हुए राजभाषा अधिकारी से वरिष्ठ प्रबंधक तक का लंबा सफर  तय करते हुए वर्ष 2018 में (27 वर्ष के सेवा काल) के पश्चात सफल साहित्यक गतिविधियों के विरासत के साथ सेवानिवृत हुए। 
आज उनके जन्मदिन 21/06/2025 पर हमारी ढेरों हार्दिक शुभकामनाएँ । आज हम एक ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ.टी.महादेव राव जी को उनके जन्मदिन पर उनको नमन करते हुए उनके साहित्यिक यात्रा के रूप में उनके विविध लेखन की निरंतरता को और उनके विभिन्न विधाओं के प्रति उनकी गहरी रूचि के साथ साहित्य में उनका स्थान निसंदेह इस क्षेत्र के लिए अव्दितीय है यह कहने में मुझे जरा भी संकोच नहीं। हम सभी साहित्य प्रेमियों के लिए जो सृजन संस्था से जुड़े है, एक मार्गदर्शक के रूप में हमेशा ही सभी के साथ रहकर सृजन संस्था के माध्यम से हो रहे साहित्यिक कार्यक्रमों के विभिन्न सफल आयोजनों के पीछे उनका योगदान हमेशा हम सभी को प्रेरित करता है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव उनके बारे मे विस्तार से जानने का सौभाग्य सृजन संस्था से जुड़ने के पश्चात ही रहा । मिलनसार बहुत ही गंभीर भी व हँसमुख भी, सहज , सरल ,स्पष्टता लिए व्यक्तित्व के धनी हमेशा नवोदित साहित्यकारों को जिस शिद्दत के साथ उनकी प्रतिभा को पहचान कर उनको साहित्य के प्रति और हिंदी की ओर अपने कदम बड़ाने की प्रेरणा देकर प्रोत्साहित करते हुए हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए हमेशा सजग व समर्पित रहते है। साथ ही स्थापित साहित्यकारों का मनोबल बढ़ाते रहते है।..इस तरह की विचारधारा के लोग अब साहित्य के संधर्ष वाले माहौल में बिरले ही मिलते है। कुछ इस तरह का व्यवहार ही उनके साथ जुड़ते हुए कोई भी साहित्य प्रेमी अपनी रूचिकर विधा को आगे लेकर जाने में सक्षम हो सकता है और बहुत कुछ सीखने का भी प्रयास कर सकता है। जो हमेशा ही उपयोगी होती रहेगी। यहीं पर नवोदित साहित्यकार को अपनी साहित्यिक यात्रा को एक नया आकार देने का सौभाग्य मिलने लगता है।     
उनकी साहित्यिक यात्रा के अनेक पड़ाव जिसमें उन्होने लगभग 500 से ऊपर कविताएँ, 100 के आसपास लधुकथाएँ, 150 से ऊपर विविध लेख, 150 से ऊपर व्यंग्य रचनाएँ जो इनका पसंदीदा लेखन क्षेत्र है , 80 पुस्तक व नाट्य समीक्षाएँ आदि हिंदी मे रचित जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित , यह क्रम अभी भी जारी है। आकाशवाणी रायपुर, अम्बिकापुर एवं विशाखापट्णम से 75 से भी अधिक रेडियों कायर्क्रमों की प्रस्तुति एवं 7 कार्यक्रमों का संयोजन व प्रतिभागिता करने का सौभाग्य इनके नाम है। 120 तेलुगु और अंग्रेजी कविताओं का हिंदी अनुवाद एवं विविध पत्र-पत्रिकों में इनका प्रकाशन। हिंदीतर भाषियों को तेलुगू और अंग्रेजी माध्यमों से हिंदी सिखाने दो पुस्तकें लिखी सीखें “हिंदी सरलता से भाग-1 और भाग-2” और स्थानीय कवियों के 60 से अधिक काव्यगोष्ठियों का आयोजन व संचालन आदि। अक्टूबर 2002 में साहित्य, संस्कृति एवं रंगमंच के प्रति प्रतिबध्द संस्था सृजन का गठन हुआ था इस संस्था के गठन के पश्चात इस संस्था की लंबी यात्रा के ऊतार-चढ़ाव के साक्षी के रूप में उनके साथ जुड़े सभी सदस्यों के अनुभवों के विषय में मैं यह कह सकता हूँ की महादेव राव जी का सहयोग हमेशा प्रशंसनीय रहा। 08 जून 2025 को इसी माह सृजन संस्था का 158वाँ कार्यक्रम समपन्न हुआ सौभाग्य से इस कार्यक्रम के संचालन का भार मुझे मिला यह निश्चित ही संस्था के अध्यक्ष और सचिव महोदय का स्नेह और विश्वास रहा।  डॉ.महादेव राव जी इस संस्था के सचीव है। यह संस्था इस अहिंदी क्षेत्र के लिए हिंदी साहित्य प्रेमियों को सशक्त मंच प्रदान करता है। इनके लेखों की विविधता में सामाजिक सरोकार की, सकारात्मक राजनीतिक स्पष्टता के प्रति सजगता के लेख व व्यंग्य, आर्थिक, पारिवारिक, समसामयिक विषयों का समावेश प्रायः हमें देखने, पढ़ने व समझने के लिए मिलते ही रहते है। देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताओं व व्यंग्य लेखों का लगातर प्रकाशित होना इनकी निरंतर लगनशीलता के साथ साहित्यिक सेवा के प्रति इनका दृष्टिकोण पूरी तरह स्पष्ट दिखाई देता है। मेरे व्दारा 2005 से 2010 तक इस शहर के डॉकयार्ड के लेखा विभाग में कार्यरत रहते हुए इस स्थान में उपस्थिति के दौरान उनके विविध लेखों, कविताओं आदि का रसास्वादन अखबारों के माध्यम से करता रहा। पर संयोग नहीं बन पाया की मैं उनसे व्यक्तिगत मुलाकात कर सकूं। 2016 को सेवानिवृति के पश्चात मैं आन्ध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के इच्छापुरम शहर में आकर बसने के बाद वर्ष 2020-2021 के दौरान सृजन के सदस्य श्री एस वी आर नायडू जी को मुझे सृजन संस्था के साथ जोड़ने का श्रेय देता हूँ।  फिर मेरा सृजन से जुड़ने के बाद मेरी उपस्थिति आभासी आयोजनों मे होती रही पर वर्ष 2024 को आकाशवाणी में मेरी कविताओं की रिकार्डिंग के दौरान पहली बार उनसे  व्यक्तिगत मुलाकात का अवसर आकाशवाणी भवन में मिला। परंतु मेरी संज्ञान में एक कार्यक्रम के दौरान वर्ष2018-2019 में केन्द्रीय पुस्तकालय विशाखापट्टणम के एक सभागार में आदरणीय महादेव राव और मैं उस कार्यक्रम में उपस्थित थे। ऐसा मुझे याद आता है। इनके व्दारा लिखे गए अनेकों आलेख विभिन्न विषयों पर हम सभी को अनेकों माध्यमों से पढ़ने का सौभाग्य मिलता रहता है। प्रायः लगभग हर विधा उनकी लेखनी में उपलब्ध रहती हैः आलेख, संस्मरण, लधु-कहनी, कविता, कहनी और व्यंग्य आदि।

कुछ मुख्य पुस्तकों का विवरण इस प्रकार हैः- 

जज्बात के अक्षर(गजल संग्रह), कविता के नाट्य काव्यों मे चरित्र-सृष्टि(शोध-प्रबंध), विकल्प की तलाश में ( कविता संकलन), चुभते लम्हें(लधुकथा संग्रह), एक शाम की मौत, शिकार (दो नाटक), बिन सेलफोन सब सून( व्यग्य ), प्रतिक्रिया (कविता संग्रह), वर्तमान में हाल ही में उनका एकतारा(व्यग्य संग्रह) भी प्रकाशित हुआ है इस कृती की समीक्षा करते हुए सृजन के अध्यक्ष नीरव वर्मा जी ने उनके एकतारा व्यंग्य-संग्रह के विषय मे  मे लिखते है कि व्यंग्य को अस्त्र मानते लेखक है। हमारे टी.महादेव राव जी बहुत ही प्रभावपूर्ण समीक्षा। तेलुगु के विचारोत्तेजक लेखों का हिंदी में अनुदित एवं कश्मीर गाथा के रूप मे प्रकाशित, हिंदी पुस्तक द्वादश ज्योतिर्लिंगों का तेलुगु में अनुवाद तथा मुफ्त वितरण। इसके अलावा लोकसदन कोरबा से प्रकाशित गाँधीश्वर पत्रिका मे उनके जीवन पर एक पूरे विशेषांक के रूप में इनको स्थान देना इनके विस्तृत लेखन पटल का विस्तार ही है जो इस तरह हम सभी को इनके जीवन के विभिन्न पहलुओं से जोड़ता है। लायंस क्लब सांकेतिका व्दारा गुरू सम्मान। इसी क्रम मे बालकोनगर(कोरबा) की वार्षिक पत्रिका “प्रतिभा” और ,हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, विशाखा की त्रैमासिक पत्रिका “अभिव्यक्ति” का संपादन का कार्य भी बहुत दिनों तक करते रहे। मंच पर एक मात्र नाटक “ दि डेंजरस गेम” में बतौर नायक और संवाद निर्देशक की संयुक्त भूमिका निभाते हुए अपनी लिए बहुत अधिक प्रशंसा भी अर्जित करने में सफल हुए। परंतु अपने मूल लक्ष्य लेखन से कहीं भटक न जाए आगे नाटक के मंच से अपने को अलग कर लिय़ा। इनको मिलने वाले पुरस्कारों में केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, मानव संसाधन, भारत सरकार का पुरस्कार  “अहिंदी भाषी हिंदी कवि” (विकल्प की तलाश मे-2009 कविता संकलन के लिए)। 

पहले मध्यप्रदेश वर्तमान छतीसगढ़ के क्षेत्रों से उनका लगाव बहुत ही अधिक था उनको पत्रकारिता के प्रति भी बहुत रूझान रहा। उन्होंने अनेको साक्षात्कार कई प्रसिध्द लोगों व नवोदित साहित्यकारों का लेकर विविध दैनिक समाचार पत्रों के माध्यम से प्रकाशित करवा कर उनको प्रेरित करते हुए प्रोत्साहित भी किया।  मेरे पास इनके व्दारा लिया एक  साक्षात्कार सम्मानित आदरणीय ‘संतोष अलेक्स’ को अनुवाद के लिए मिले वर्ष 2008-2009 के लिए भारतीय अनुवाद परिषद की ओर से “गार्गी गुप्ता व्दिवागींश पुरस्कार” से सम्मानित होने के पश्चात लिया गया साक्षात्कार। उस समय आदरणीय अलेक्स महोदय सृजन संस्था के साथ भी जुड़े थे। इनका साक्षात्कार आदरणीय डॉ.टी माहादेव राव जी के व्दारा पूछे गये सवालों के जवाब बहुत ही सटीक व समय की माँग का परिचय भी दे रही है । इस साक्षात्कार का अखबार में जो शीर्षक था “ अनुवाद कार्य में कविता का अनुवाद सर्वाधिक कठिनः संतोष अलेक्स” जो एक मलयालम भाषी कवि है उन्होंने सच्चिदानंदन और केदारनाथ सिंह की कविताओं का हिंदी से मलयालम में अनुवाद किया था,  इस पर सवाल करते हुए महादेव जी के प्रश्न के जवाब में अलेक्स जी का जवाब कुछ ऐसा थाः” मैं अपने को मलयालम कवि कहने में सकुचाता हूँ। ‘दूरम’ (दूरियां) नामक एक कविता संग्रह प्रकाशित हुई. कवि के रूप में मुझे और समर्थ बनना है।के. सच्चिदानंदन और केदार जी भारतीय कविता के सुपरिचित हस्ताक्षर है। दोनों कवि भिन्न भाषाओं में रचनारत है, फिर भी इनकी कविताओं में समानताएं है। काव्यनुवाद बहुत ही कठिन होता है। अनुवाद चाहे वह कविता, कहानी या उपन्यास का क्यों न हो, वह कठिन कार्य है। कविता का अनुवाद कठिनतम है।“इसी क्रम में संतोष अलेक्स के विचार में उन्होंने कहाः“   के.सच्चिदानंदन की एक कविता  जो दिल्ली से प्रकाशित “युग स्पंदन” पत्रिका का ‘माँ’ शीर्षक कविता विशेषांक के लिए मैनें इनकी एक कविता का अनुवाद कर उन्हें भेजा शीर्षक था (माँ) । उन्होंने अनुवाद की प्राप्ति की सूचना दी और साथ में इस प्रकार लिखा ‘ इट इज एन एक्सेलेंट ट्रन्सलेशन ’जाहिर है ’ कि कविता का अनुवाद सफल रहा, जिसके चलते उन्होंने यह टिप्पणी दी। काव्यानुवाद के संबंध में यह कहा जा सकता है कि यह बहुत ही कठिन कार्य है, लेकिन असंभव नहीं।“ आगे इस साक्षात्कार के अंत में यह भी माना गया की 21वीं सदी को अनुवाद की सदी कहने में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि जो हम वर्तमान मे देख रहे है और अनुवाद के माध्यम से जो संवाद की स्थिति विभिन्न भाषा भाषियों के बीच प्रभावी ढंग से बन रहे है, उसमें अनुवाद के महत्व को नकारा नहीं जा सकता । (स्वतंत्रवार्ता- रविवार 10जनवरी 2010 के साभार )। इस तरह आदरणीय डॉ.टी महादेव राव को हमनें ऐसे साक्षात्कार में उनके जिस कौशल का परिचय मिला वो भी आज से लगभग 15 वर्ष पहले से उनकी सक्रियता व साहित्य की जागरूकता के प्रति सजगता हमें मिलती है। उनके लेखन का इतिहास तो 45 वर्षो से भी अधिक का है विदित हो कि उनकी पहली रचना का प्रकाशन वर्ष1977 का है, इनके विविध विषयों पर लेखों की निरंतरता का जो क्रम मैं इस शहर मे कार्यरत रहते हुए पाया 2005 से 2010 के दौरान और आज भी उनकी कलम बोलती है विशेष कर व्यंग्य विधा उनको सबसे प्रिय है। उनके विचार “ समीक्षा किसी किताब की अत्यंत ही कठिन व शत्रू वर्ग को काफी विकसित करने वाला माना। मैं गर्व के सात कह सकता हूँ कि अब तक समझौता मैंने नहीं किया, सामंजस्य जरूर सामूहिक कार्य मे रहा। मैं वही लिखता या करता हूँ जो मुझे, मेरे मन को अच्छा लगता है।” प्यार से मिलने वालो के लिए उनकी एक बात’ जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए ‘ यह उनका पसंदीदा वाक्य है।  वालों के लिए उनके साहित्य के अनेको पत्र-पत्रिकों में प्रकाशित होने व उनकी रूचि पत्रकारिता के कारण उनके संपर्क अनेक अखबारों आदि से उनका परिचय बनाता गया जिसका लाभ उन्होंने सृजन संस्था के हर कायर्क्रम की रिपोर्ट को अनेक अखबारों में प्रकाशन के माध्यम से इस संस्था जे जुड़े सभी सदस्यों के साहित्य का प्रचार प्रसार व साहित्यकारों के परिचय क्षेत्र के विस्तार में सहयोग करते आ रहे है। अनेक साहित्यक गतिविधियों में उनकी उपस्थिति उनकी लगातार सक्रियता रहने से हम सभी को उनके अनुभवों का लाभ भी मिलता रहता है। सृजन संस्था को छतीसगढ, कोरबा का अखबार‘’लोक सदन,मध्यप्रदेश-इंदौर समाचार, अमेरिका-हम हिन्दुस्तानी’’ इस संस्था के सदस्यों के लेखों, कविताओं आदि के साथ। उनके हर कार्यक्रमों की रिपोर्ट हमेशा प्रकाशित करते हुए जो पुनीत कार्य करते आ रहे है उसके लिए सृजन संस्था हमेशा हृदयतल से आभारी है यह सब निसंदेह आदरणीय महादेव राव जी के सफल प्रयास का ही प्रतिफल है।। इन्होंने स्थापना के समय से जुड़े श्री नीरव वर्मा( सृजन के अध्यक्ष, कवि, कथाकार और व्यंग्यकार) और श्रीमती सीमा वर्मा( संवेदनशील लेखिका और कवियत्री) के प्रशंनसीय सहयोग के प्रति अपनी कृतज्ञता भी ज्ञापित करते है उनके कविता संग्रह “प्रतिक्रिया” के मेरी बात में। सृजन के अन्य सदस्यों के प्रति उनका सम्मान हमेशा सराहनीय है। उनके विषय में लिखने को और भी बहुत सी बातें है पर आज बस इतना ही ।आज में उनके जन्मोत्सव के दिन मैं उनके एक और सौभाग्य को उनकी पोती (बेबी जोशनिका) का जन्मदिन भी अपने दादा जी के जन्मदिन के साथ रहता है अत्यंत ही आनंद की अनुभूति होती है (दोनों बालको) का जन्मदिन जिसमें 67 साल के एक दादा जी और आठ साल की पोती जी।  इस लेख के माध्यम से सृजन संस्था के सभी सम्मानित सदस्यों की तरफ से और व्यक्तिगत तौर पर जन्मदिन की ढ़ेरो शुभकामनाओं के साथ उनके व्दारा सभी सामाजिक, पारिवारिक दायित्वों के साथ साहित्यिक लेखन के विगत अनेकों वर्षो से चले आ रहे, शोधपरक श्रमसाध्य कार्य को अपने दैनिक जीवन का अंग बना नवोदित व वर्तमान साहित्य प्रेमियों के लिए एक मिसाल कायम करते रहेगें। हमेशा अपने सिध्दांतो और आदर्शों पर जीने वाले डॉक्टर टी. महादेव राव जी को जन्मोत्सव की बधाई। अंत में अभिनंदन के साथ सतत साहित्य की सेवा की अपेक्षा रखते हुए उनके सुखद और स्वस्थ्य जीवन की कामना करता हूँ ।

चिरंजीव (स्वतंत्र लेखन)
लिंगम चिरंजीव राव 
सृजन संस्था (सदस्य)
म.न.11-1-21/1,कार्जी मार्ग 
इच्छापुरम, श्रीकाकुलम (आन्ध्रप्रदेश)
पिन 532 312 मो.न.8639945892