चमरा लिंडा को हल्के में लेने वाले BJP-कांग्रेस को बड़ी सबक
लोहरदगा। लोहरदगा लोकसभा सीट में मतदान होने से पहले और मतदान होने के बाद एक नाम की चर्चा हो रही है, वह हैं निर्दलीय प्रत्याशी चमरा लिंडा। लोहरदगा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले निर्दलीय प्रत्याशी चमरा लिंडा की भूमिका की चर्चा न सिर्फ मतदाता और उनके समर्थन कर रहे हैं, बल्कि राजनीतिक गलियारे में भी इसकी खूब चर्चा है।
चमरा लिंडा का वोट बैंक एक खास वर्ग
इसके पीछे की वजह यह है कि लोहरदगा लोकसभा सीट में चमरा लिंडा ने वर्ष 2004 से लेकर वर्ष 2024 तक में अपना वोट बैंक जबरदस्त तरीके से बढ़ाया। हालांकि चर्चा इस बात की भी है कि लोहरदगा लोकसभा सीट में चमरा लिंडा का वोट बैंक एक खास वर्ग है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी ने शुरुआत में चमरा लिंडा को हल्के में लिया था। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो चमरा लिंडा ने इस बार जो अपनी पहली चुनावी सभा आयोजित कर शक्ति प्रदर्शन किया, उससे भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी को एक सबक मिल गया। दोनों दलों को समय रहते संभलने का मौका मिल गया।
चमरा लिंडा के वोट बैंक से कांग्रेस को अधिक नुकसान
लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के भैया गांव चौरा में विगत दो मई को चमरा लिंडा की चुनावी सभा हुई थी। जिसमें हजारों की भीड़ पहुंची थी। जिसमें लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र के सभी पांच विधानसभा से कार्यकर्ता पहुंचे हुए थे। इस भीड़ को देखकर कांग्रेस और भाजपा अलर्ट हो गए। दोनों दलों ने अपने-अपने वोट बैंक को बचाने को लेकर तेजी से काम करना शुरू कर दिया था। कहा यह भी जा रहा है कि चमरा लिंडा यदि सिर्फ अपने वोट बैंक को मजबूत करते तो भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती थी, परंतु चमरा लिंडा ने कांग्रेस पार्टी को सबसे अधिक नुकसान दिया है। चमरा लिंडा ने अपने वोट बैंक के बजाय कांग्रेस पार्टी के वोट बैंक में सेंधमारी करने की कोशिश की। इस बात की भनक भारतीय जनता पार्टी को भी लग चुकी थी, यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी अपने वोट बैंक को बचाने में कामयाब हुई।
लोहरदगा लोकसभा में त्रिकोणीय मुकाबला
पिछले चुनाव की तस्वीर को देखें तो वर्ष 2014 के चुनाव में और वर्ष 2009 के चुनाव में चमरा लिंडा ने खामोशी से चुनाव लड़ा था, ना तो कोई बड़ी सभा की थी और ना ही अपना शक्ति प्रदर्शन किया था। परिणाम यह हुआ था कि साल 2004 के लोकसभा चुनाव में महज 58947 वोट लाने वाले चमरा लिंडा को साल 2009 में 136345 वोट मिले थे। जबकि साल 2014 के चुनाव में चमरा लिंडा को 118355 वोट मिले थे। साल 2024 का चुनाव परिणाम चाहे जो भी हो, इस बात को लेकर चर्चा जरूर हो रही है कि चमरा लिंडा ने अपनी ही गलती से भाजपा और कांग्रेस को संभलने का मौका दे दिया। यदि चमरा लिंडा खामोशी से चुनाव लड़ते तो स्थिति कुछ और भी हो सकती थी। भंडरा प्रखंड के भैया गांव चौरा में हुई जनसभा के बाद उमड़ी भीड़ को देखकर ही यह कहा जा रहा था कि लोहरदगा लोकसभा में त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है, परंतु जैसे-जैसे मतदान का दिन नजदीक आता चला गया। वैसे-वैसे मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच आमने-सामने का होकर रह गया। गुमला जिले के विशनपुर विधानसभा सीट से साल 2005 में विधायक का चुनाव लड़ने वाले चमरा लिंडा को भारतीय जनता पार्टी के चंद्रेश उरांव से महज 569 वोट से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद चमरा लिंडा का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ता चला गया। इसी विधानसभा सीट से साल 2009 में चमरा लिंडा ने कांग्रेस प्रत्याशी शिवकुमार भगत को 16710 वोट, साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी के समीर उरांव को 10843 वोट और साल 2019 में भाजपा के अशोक उरांव को 17382 वोट से हराकर विशुनपुर विधानसभा सीट में अपनी दमदार स्थिति का एहसास कर दिया था। साल 2019 में बिशनपुर विधानसभा सीट से चमरा लिंडा के बड़े अंतर से जीत ने भाजपा और कांग्रेस को आगाह कर दिया था। आने वाले चार जून को चुनाव परिणाम से यह तस्वीर साफ हो जाएगी की लोहरदगा लोकसभा सीट में चमरा लिंडा बिशनपुर विधानसभा सीट से आगे दूसरे विधानसभा सीट में अपनी पकड़ बना पाए हैं या नहीं, परंतु इतना तय है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए चमरा लिंडा ने इस चुनाव में परेशानी खड़ी कर दी थी।