नई दिल्ली । यूसीसी को लेकर देश में इस समय काफी बहस चल रही है। राजनी‎तिक पा‎‎र्टियों में जहां ‎विरोध का स्वर मुख‎रित हो रहा है वहीं कुछ दल सपोर्ट भी कर रहे हैं। गौरतलब है ‎कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यूसीसी की जोरदार वकालत की थी और कहा था कि इस संवेदनशील मुद्दे पर मुसलमानों को भड़काया जा रहा है। हालां‎कि इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों की राय बंटी हुई नजर आ रही है। आम आदमी पार्टी सैद्धांतिक समर्थन की बात करती नजर आ रही है तो वहीं कांग्रेस की मुखालपत स्पष्ट रूप से सामने आ रही है। एनसीपी ने इन सब के बीच न्यूट्रल रहने का रास्ता चुना है। जबकि एनडीए की पुरानी सहयोगी अकाली-जदयू राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी का मुद्दा उठाने की बात करते नजर आ रहे हैं। अकाली दल जरुर ‎विरोध करने पर उतारु है।
इधर आम आदमी पार्टी (आप) ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को अपना सैद्धांतिक समर्थन दिया, किंतु यह भी कहा कि सभी हितधारकों से व्यापक विचार-विमर्श के बाद आम सहमति से ही इसे लाया जाना चाहिए। आप के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) संदीप पाठक ने कहा कि सरकार को इस प्रस्ताव पर सभी हितधारकों से व्यापक विचार-विमर्श करना चाहिए जिसमें राजनीतिक दल और गैर-राजनीतिक संस्थाएं शामिल हों। पाठक ने कहा कि आप सैद्धांतिक रूप से यूसीसी का समर्थन करती है। संविधान का अनुच्छेद 44 भी इसका समर्थन करता है। लॉ कमीशन की ओर से यूसीसी पर धार्मिक संगठनों और जनता से राय मांगी गई थी। लॉ कमीशन के कदम के बाद शिवसेना उद्धव गुट के नेता उद्धव ठाकरे ने भी यूसीसी का समर्थन किया था। 
वहीं मुस्लिम नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुंबई में उद्धव ठाकरे से मुलाकात की और इसके बाद कहा कि अगर केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करती है तो इसका असर केवल मुसलमानों पर नहीं बल्कि सभी समुदायों पर पड़ेगा। प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने दावा किया कि ठाकरे ने उन्हें मामले पर गौर करने का आश्वासन दिया है। यूसीसी पर शरद पवार की पार्टी भी विपक्षी खेमे से अलग खड़ी नजर आ रही है। पार्टी ने कहा है कि वो यूसीसी का न तो समर्थन करेगी और न ही इसका विरोध करेगी। एनसीपी राष्ट्रीय सचिव नसीम सिद्दीकी ने कहा कि यूसीसी का तुरंत विरोध नहीं होना चाहिए बल्कि इस पर व्यापक चर्चा की जरूरत है। 
शिरोमणि अकाली दल ने यूसीसी का ‎विरोध ‎किया है। दल के नेता दलजीत सिंह चीमा ने ट्वीट करते हुए कहा कि शिअद का दृढ़ मत है कि यूसीसी का कार्यान्वयन देश में अल्पसंख्यकों के हित में नहीं है और केंद्र सरकार को इसे लागू करने के विचार को स्थगित कर देना चाहिए। वहीं जनता दल यूनाइटेड (जद यू) ने अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को आगे बढ़ाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास को  राजनीतिक स्टंट करार दिया और दावा किया कि उनके बयान का अल्पसंख्यकों के कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है। जद-यू प्रवक्ता के सी त्यागी ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि राज्य अपने सभी नागरिकों को यूसीसी देने का प्रयास करेगा।
इधर भारत की शीर्ष मुस्लिम संस्था, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने एक आपातकालीन बैठक की ‎जिसमें सदस्यों ने यूसीसी का विरोध करने का निर्णय लिया और इसके कानूनी पहलुओं पर चर्चा की। बोर्ड के सदस्यों ने निर्णय लिया कि मुस्लिम लॉ बोर्ड यूसीसी पर विधि आयोग के सामने अपना पक्ष रखेगा और दस्तावेज भी पेश करेगा। वहीं कांग्रेस की सहयोगी और केरल में विपक्षी यूडीएफ गठबंधन में शामिल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने कहा ‎कि समान नागरिक संहिता लागू करने का मुद्दा केवल अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी एजेंडे के तौर पर आगे बढ़ा रहे हैं।