राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार)  

-: दशम आकलन:- "द सूत्र " सोशल मीडिया के लिए!

2023 के अंत में हो रहे मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में जनता की सरकार! किस झंडे तले?

           वर्ष 2023 में होने वाले मध्य-प्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम का आकलन आरंभ किए हुए पांच महीने व्यतीत हो चुके हैं। राजनीतिक स्थिति दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही है। सत्ता के दावेदार मुख्य राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस सक्रिय हो गए हैं। तथापि हमेशा की तरह भाजपा कांग्रेस की तुलना में पूरी तरह से  24×7 समान सक्रिय हो गई है। मेहनत का फल मिलता है, ऐसा कहा जाता है, परंतु राजनीति में ऐसा होना हमेशा जरूरी नहीं होता है। आइए, पिछले 15 दिनों में प्रदेश में हुई राजनीतिक गतिविधियों व घटनाक्रम का आगामी चुनाव की परिणाम की संभावना की दृष्टि से विचार कर ले।
 जन लुभावी घोषणाएं। 
                  मध्य प्रदेश के आगामी होने वाले विधानसभा चुनाव के संबंध में जितने भी सर्वे अभी तक आए हैं उस में भाजपा की सत्ता में निश्चित वापसी कोई सर्वे नहीं बता रहा है जबकि अधिकांश मीडिया पर आजकल बहुत आसानी से "गोदी मीडिया का स्लोगन" चिपका लगा दिया जाता है। इसका प्रमुख कारण सत्ता विरोधी कारक बताया जा रहा है। शायद इसीलिए शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता विरोधी कारक से निपटने के लिए एक तरह से "खजाने का पिटारा" ही खोल दिया है। हाल में ही मुख्यमंत्री ने संविदा कर्मियों के लिए भत्ता 50 प्रतिशत, आरक्षण, पेंशन, ग्रेच्युटी, बीमा व अवकाश का लाभ देने की जो घोषणा की है वह जनता या कुछ वर्गों में फैले असंतोष को दूर करने का ही प्रयास है प्रयास है। एन चुनावी समय पर घोषणा करने के प्रयास कितने सफल होंगे, इनका आकलन करना होगा। रीवा के पूर्व महाराज पूर्व मंत्री पुष्पराज सिंह भाजपा में शामिल हो गये है, जो पिछले कुछ समय से भर्ती होने की प्रक्रिया के विपरीत है। अर्थात भाजपा से कांग्रेस में जाने की प्रक्रिया को रोक कर कांग्रेस से भाजपा में जाने की रुकी हुई प्रक्रिया फिर से प्रारंभ हुई है। 
संगठन में कसावट। 
                  भाजपा हाईकमान ने मध्य-प्रदेश के लिए चुनाव की दृष्टि से नये चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव के साथ सह प्रभारी अश्विनी वैष्णव को बनाकर संगठन में कसावट लाने का प्रयास किया जा रहा है। " शिवराज भाजपा", " महाराज भाजपा", " नाराज भाजपा" " राज भाजपा" (सत्ता का सुख भोगते गिने-चुने लोग) व शेष भाजपा के बीच स्थित दूरियां कितनी मिटेगी, यह भी देखने की बात होगी। अभी-अभी केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मध्य प्रदेश की चुनाव प्रबंध समिति के संयोजक की कमान भाजपा हाईकमान द्वारा सौंपी गई है। वास्तव में यदि नरेंद्र सिंह तोमर को वास्तविक फ्री हैंड दिया जाएगा तो, निश्चित रूप से  प्रदेश के बहुत ही अनुभवी नेता होने के कारण साथ ही उनके पूर्व में प्रदेश अध्यक्ष  रहने के कारण पूरे प्रदेश के कार्यकर्ताओं से उनका जीवंत संपर्क रहने से वे वर्तमान में जनता व कार्यकर्ताओं के बीच विद्यमान असंतोष व विरोधी मूड को बदलने में सक्षम व सफल सिद्ध हो सकते हैं। ऐसा भी संभव है कि भाजपा हाईकमान का यह कदम कहीं "तुरुप का इक्का" सिद्ध न हो जाए।

 नेतृत्व परिवर्तन नहीं? 
      

    अमित शाह के अचानक भोपाल दौरे में उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि आगामी विधानसभा के चुनाव वर्तमान नेतृत्व में ही लड़े जायेगें। हमने देखा है, पूर्व में भी राजनीति में इस तरह की बयानबाजी होती रही है, जिसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता है। तब अमित शाह एक तरफ "वर्तमान नेतृत्व न बदलने" की बात के साथ ही दूसरी ओर यह प्रश्न भी खड़ा कर देते है कि "कार्यकर्ताओं में असंतोष क्यों है? तब इसका उत्तर अथवा निदान क्या हो सकता है? इसे समझने की आवश्यकता है। आगामी कुछ समय गुजरने के बाद शायद स्थिति स्पष्ट हो सकती है। परंतु मेरा अभी भी दृढ़ मत है कि शिवराज सिंह का ‘‘ रहना ब्रेकिंग न्यूज है, जाना नहीं’’ं? इसलिए इस "ब्रेकिंग न्यूज़" का कुछ समय बाद ‘ब्रेक’ होना लाजमी है। यद्यपि शिवराज सिंह इसे ब्रेक (रोके) किये हुए हैं। अन्यथा आगामी सरकार भाजपा से कोसो कदम कोसों दूर है। 

 158 कांडों की सूची में एक और नया भ्रष्टाचार का कांड 
            

 " पटवारी भर्ती कांड" के सामने आने पर कांडों को लेकर प्रदेश की राजनीति में पुनः भूचाल सा आ गया है। पुराने अनेकानेक कांडो (स्कैंडल्स), भ्रष्टाचार के मामलों को खखोलकर यादें ताजा की जा रही हैं, या याद दिलाये जाने की चेष्टा हो रही है। ग्वालियर के प्रमुख वरिष्ठ पत्रकार राकेश अंचल के अनुसार शिवराज सिंह के कार्यकाल में रिकॉर्ड पर कम से कम लगभग 156  भ्रष्टाचार के स्कैंडल्स हो चुके है। चूंकि पटवारी भर्ती कांड का मामला बेरोजगारी से जुड़ा है, जो गंभीर इसलिए है कि वर्ष 2020-2022 के बीच मात्र २१ बेरोजगारों को सरकारी नौकरी दी गई, जबकि 34 लाख से ज्यादा बेरोजगार अभी भी रजिस्टर्ड है। यह जानकारी विधानसभा में मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने दी थी। विश्व कुख्यात व्यापमं का नाम बदलने से घोटाले रुक नहीं सकते हैं, बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति व कार्य करने की पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन लाने पर ही कांड रूक पायेगें। तब ऐसी स्थिति में राजनीति मे सिर फुटव्वल होना स्वाभाविक ही है। 

 मामा पर "भाई" भारी पड़ेंगे क्या? 
     

      बड़ा प्रश्न यह है कि लगभग 156 घोटालों, कांडों की सरकार के मुखिया मामा शिवराज सिंह, लाडली बहना योजना के द्वारा भाई बनकर, वाशिंग मशीन होकर क्या मामा के उन कांडों के दागों को धो पाएंगे? यह इस योजना से लाभ प्राप्त करने वाली लाभार्थियों पर होने वाले प्रभाव जिसका आकलन कुछ समय बाद ही किया जा सकेगा, पर निर्भर करेगा। वैसे कर्नाटक में भी केंद्रीय व राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों का बहुत बड़ा वर्ग बनने के बावजूद भाजपा वहां हार गई थी।

 चरमराती कानून व्यवस्था। 
     

    पिछले कुछ समय से प्रदेश की कानून की व्यवस्था चरमरा सी गई है, जिसका सत्ता दल की चुनावी संभावनाओं पर चुनाव पर विपरीत प्रभाव कहीं न कहीं पड़ सकता है। सीधी में आदिवासी युवक पर भाजपा विधायक के तथाकथित प्रतिनिधि द्वारा पेशाब करने का मामला तूल पकड़ते जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा पेशाब कांड पर जिस तरह की व्यक्तिगत क्रिया, प्रतिक्रिया कर मामले को शांत करने का प्रयास किया था। परंतु उक्त पीड़ित आदिवासी व्यक्ति के घटना में शामिल न होने के बयान ने शिवराज सिंह की काफी किरकिरी व छीछालेदर की है।सीधी की इस अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण पेशाब घटना से लेकर तत्पश्चात इंदौर, ग्वालियर, सागर, उज्जैन और शिवपुरी में आदिवासियों व दलितों के साथ हुई बर्बरता पूर्ण घटनाओं ने भाजपा के माथे पर गहरी चिंता बढ़ाई है। नवीनतम घटना विदिशा मे  बेटी (छेड़छाड़ के कारण) और तत्पश्चात उचित जांच न होने के कारण उसके पिता द्वारा भी आत्महत्या कर लेने की घटना के बाद के अभी-अभी मध्य प्रदेश के पवित्र स्थल व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के गृह जिला दतिया के उन्नाव थाना क्षेत्र में दो बहनों के साथ किया गया बलात्कार, जहां उक्त दोनों घटनाओं में अपराधियों का भाजपा से संबंध होना बताया जाता है, कानून व्यवस्था पर पुनः गंभीर प्रश्न उत्पन्न करती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है। पिछले वर्ष की तुलना में 42000 अपराध अधिक हुए है। आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में प्रदेश नंबर 1 पर है। अश्लीलता से जुड़े मामलों में भी मध्यप्रदेश पहले नंबर पर पहुंच गया है। शिवराज सिंह इन सब स्थितियों से कैसे निपटते हैं, इसके लिए कुछ इंतजार अवश्य करना होगा। परंतु निश्चित रूप से शिवराज सिंह के लिए सत्ता के रास्ते काटो भरे रास्ते में कांटे दूर होना कम, बढ़ते ज्यादा दिखाई दे रहे हैं, जो उन को सत्ता में आने से रोकने में कहीं न कहीं बड़ा कारक सिद्ध हो रहा है।