‘‘स्वच्छता’’ ‘स्वस्थ जीवन’ का अनिवार्य अंग है!

(‘‘स्वच्छता का पर्याय’’बबलू हेमंत चंद दुबे!)
    विगत दिवस पर्यावरण दिवस (5 जून) हमने मनाया है। उक्त अवसर पर लेख लिख रहा था। परंतु तत्समय अचानक कार्य की व्यस्तता के बढ़ जाने से लेख पूरा नहीं कर पाया।
      ‘‘स्वच्छता’’ हमारे स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य शर्त है। सृष्टि के निर्माण के समय से ही इसका महत्व उतना ही है, जितना आज भी है। तथापि हमारी एक मानवीय कमजोरी है, हम अच्छा-बुरा, स्वच्छ-गंदा को जानने, पहचानने, समझने के बावजूद उनका पालन करने में वह ‘‘अनुशासन’’ नहीं दिखाते हैं, करते हैं, जिसकी आवश्यकता होती है। शायद इसीलिए ‘‘अनु‘‘-‘‘शासन’’ विहीन ‘‘शासन’’ हमारी भावनाओं व ‘उक्त सकारात्मक, गुणात्मक तत्वों’ पर अपनी मनमर्जी व इच्छा के चलते हावी हो जाती है। उदाहरणार्थ झूठ बोलना, शराब पीना, नशा करना, अपराध करना आदि-आदि अनेक आदतों को हम सिद्धांतः गलत मानने के बावजूद उसका पूर्ण पालन नहीं करते हैं, न कर पाते हैं। इसलिए सेलिब्रिटी, प्रभावशाली, आध्यात्मिक गुरु, सम्मानीय नेता, खिलाड़ी, कलाकार व अन्य कोई व्यक्ति जब इस ‘अच्छी’ बात को कहते हैं, करते हैं और झंडा उठाकर ‘‘अग्रसर’’ होते हैं, तब हम भी इन पर गंभीर रूप से मनन कर पालन करने की ओर चल पड़ते हैं। यह हमारी एक सामान्य मानसिक अवस्था होती है, बल्कि यह भी कह सकते हैं कि यह हमारी एक मानवीय स्वभावगत कमजोरी भी है। मतलब प्रायः ‘स्वप्रेरणा’ से नहीं बल्कि ‘‘उत्प्रेरक तत्व’’ ही हमें कार्य करने के लिए अधिकतर उत्प्रेरित करते हैं।
    ‘‘स्वच्छ भारत मिशन’’ को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर 02 अक्टूबर 2014 को एक ‘‘मिशन’’ बनाया है। तबसे हमने देखा है कि पूरे देश में जिस ‘‘स्वच्छता’’ को हम जानते तो थे, परन्तु न तो उसे मानते थे, और न ही उसे व्यापक रूप से कार्य रूप में लागू करते थे। प्रधानमंत्री द्वारा उसे राष्ट्रव्यापी आंदोलन का स्वरूप दिये जाने के बाद व्यापक रूप से उस स्वच्छता को अपनाने व आत्मसात करने में काफी बड़ी संख्या में आम जनता भी आगे बढ़ी है। स्पष्ट है देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘‘स्वच्छता की मशाल जलकर गंदगी को अंधकार में रहने वाले लोगों को स्वच्छता रूपी प्रकाश में आने के लिए प्रेरित करने लगी’’। 
    इसी कड़ी में बैतूल में हेमंत चंद दुबे जिन्हें उन्हें प्यार से सब ‘‘बबलू’’ कहते हैं, ने केंद्र सरकार के स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने के अवसर पर ‘‘75 कदम 75 दिन’’ नाम से लगातार मुहिम चलाकर शहर की सफाई के लिये एक वृहद अभियान शुरू किया है। ‘‘स्वच्छ बैतूल-सुरक्षित बैतूल’’ का उन्होंने बीड़ा उठाया है। बैतूल के नागरिकों को स्वच्छता की ओर ले जाने की राह दिखाई और प्रेरित किया। मुझे याद आता है, मेरे पिताजी स्व. श्री जी.डी. खंडेलवाल हमेशा कहा करते थे कि जब तक नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागेंगे नहीं, और ‘‘कर्तव्य’’ के प्रति सचेत व ‘‘जिम्मेदार’’ नहीं होंगे और उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित नहीं किया जायेगा, तब तक देश, समाज व व्यक्ति का जरूरी विकास नहीं हो पायेगा है। 
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता के संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2016 से स्वच्छ सर्वेक्षण अभियान प्रारंभ किया है। वर्ष 2017 से लगातार 6 वर्षो से हमारा ‘‘इंदौर’’ शहर देश का सबसे स्वच्छ शहर होकर मध्य-प्रदेश का गौरव बढ़ा रहा है। क्या बैतूल भी मध्य-प्रदेश का सबसे स्वच्छ शहर होकर मध्य-प्रदेश का गौरव नहीं बढ़ा सकता है? ‘‘क्या यह उद्देश्य प्रत्येक नागरिक का नहीं होना चाहिए’’? क्या यह दायित्व सिर्फ हेमंत चंद दुबे का ही है। शहर हमारा है और नगरपालिका का भी स्वच्छ रखने का दायित्व है। परन्तु यदि हम सक्रिय रूप से उस दायित्व के सहभागी बनेंगे, निश्चित रूप से तभी हम शहर को स्वच्छता के अंकों में उच्चतम स्तर पर ले जा पायेगें। यदि यहां पर नागरिकों और स्थानीय स्व -शासन की साझेदारी होगी, सहभागिता होगी, तब हम तेजी से ज्यादा सफल होंगे और शहर को स्वच्छता की ओर ले जाने में ज्यादा तेजी से बढ़ पाएंगे। स्वच्छता का एक लाभ यह भी होगा कि हम अपने घरों को भी शहर से ज्यादा स्वच्छ रख सकेंगे। क्योंकि तब कोई व्यक्ति यह नहीं चाहेगा कि शहर तो अच्छा दिखे परन्तु उसके घर में कचरा हो। जब स्वच्छता होगी, गंदगी नहीं होगी, तब आपको शुद्ध स्वच्छ हवा मिलेगी, बीमारी से दूर रहेंगे। मतलब प्रकृति के निकट होकर निरोगी बनने में सहायक होंगे। स्वच्छता का मूल संदेश व परिणाम भी यही है।
      हेमंत चंद दुबे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के कार्य कार्यों का दर्शन, प्रदर्शन, परिणाम जनता के सामने है। ‘‘स्वच्छता अभियान’’ शुरू करने के पूर्व उन्होंने हॉकी के राष्ट्रीय खिलाड़ियों को लेकर बैतूल में राष्ट्रीय टूर्नामेंट कराकर राष्ट्रीय स्तर पर बैतूल को महत्वपूर्ण पहचान दिलाई। इसके लिए उन्होंने बड़े ही अथक प्रयास किये।  इसके साथ ही उन्होंने कैंसर के क्षेत्र में बड़ा अध्ययन किया है। समय-समय पर तकनीकी जानकारी देकर कैंसर इलाज के विभिन्न हॉस्पिटलस व सुविधा केन्द्रों  में कैंसर रोगियों को भेजकर उन्हें सहायता प्रदान की है। शायद वह इसलिए भी कि वे खुद कैंसर की इस जानलेवा बीमारी से जूझ कर उस पर अंततः विजय प्राप्त की है। वह जज्बा उन्होंने दिखाया कि कैसे इस जानलेवा दहशत पैदा कर देने वाली बीमारी से पार किया जा सकता है। ऐसा जज्बा जिस किसी व्यक्ति में होगा, वह अपनी जिंदगी की आयु दो गुना बढ़ा सकता है, यह संदेश भी बबलू ने शहर के कैंसर पीड़ित मरीजों को दिया है।
    ‘‘प्लास्टिक कचरे’’ से शहर को मुक्त रखने के चल रहे बबलू दुबे के स्वच्छता अभियान का वर्तमान परिणाम यह रहा कि बबलू दुबे ने अब ‘‘माचना नदी’’ को कचरा मुक्त और स्वच्छ बनाने की मुहिम छेड़ी हुई है। वैसे मैं याद दिलाता हूं कि सर्वप्रथम माचना जयंती मनाने का श्रेय मेरे साथी समाजसेवी भीमराव खंडागरे निवासी, भग्गुढाना ने वर्ष नवम्बर 2009 में प्रारंभ की थी, जिसका उद्देश्य माचना नदी को साफ रखना था। उसमें मेरी भी अन्य गणमान्यों के साथ भागीदारी थी। उसी प्रकार सूर्यपुत्री मां ताप्ती नदी पर पारसडोह जलाशय का निर्माण वरिष्ठ नागरिक संगठन के वरिष्ठतम के के पांडे व उनकी टीम के सहयोगियों के साथ जिले के तत्कालीन मंत्री प्रताप सिंह उइके के साथ बैठक मेरे आफिस में मेरे द्वारा कराई गई थी। चूंकि आज ब्रांडिंग का जमाना है। इसलिए शायद ‘‘माचना जयंती’’ के जनक भीमराव खंडागरे को याद नहीं किया जा रहा है कि उन्होंने ‘ब्रांडिंग’ नहीं की थी। ‘‘माचना’’ की स्वच्छता के लिए ‘‘याचना’’ की स्थिति से निकलने के लिये किए जा रहे प्रयासों के लिए भीमराव खंडागरे और बबलू दुबे को शहर के गणमान्य नागरिकों की ओर से हार्दिक साधुवाद। 
     प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता का मूल मंत्र दिया है कि ‘‘न गंदगी करेंगे, न करने देंगे’’। तब प्रधानमंत्री ने न केवल देश के नौ प्रतिष्ठित लोगों को स्वच्छता अभियान में शामिल होने के लिए भी आमंत्रित किया था, बल्कि उनमें से हर एक से यह भी अनुरोध किया था कि वे अन्य नौ लोगों को इस पहल में शामिल होने के लिए प्रेरित करें। इस प्रकार एक चैन बनकर लाखों लोग जुड़ जाए। प्रधानमंत्री की इसी भावना का आदर व सम्मान करते हुए जिले में एक बबलू दुबे नहीं, बल्कि प्रत्येक तहसील में बबलू दुबे होने पर ही जिले की समस्त नदियां स्वच्छ हो पाएगी व रह पाएगी। यद्यपि प्रधानमंत्री की भावनाओं के अनुरूप बबलू दुबे के साथ कम से कम 9 लोग तो जुड़े हुए हैं। आवश्यकता इस चैन को बढ़ाने की है। याद कीजिए प्रधानमंत्री के ‘‘मन की बात’’ के 100 वे संस्करण पर देश के नाम किए गए संबोधन में ‘‘हीलिंग हिमालय’’ के कर्ताधर्ता प्रदीप सांगवान से बातचीत करते हुए यह बतलाया कि वे प्रतिदिन पांच टन कचरा इकट्ठा करते हैं। तब प्रधानमंत्री ने ‘‘कचरा भी धन है’’ धारण बनने का स्वागत किया था। यदि प्रधानमंत्री को हेमंत चंद दुबे के संबंध में उनके द्वारा बैतूल में स्वच्छता को लेकर किए गए कार्यों की जानकारी दी जाती तो, निश्चित रूप से मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री सांगवान के साथ बबलू दुबे के नाम भी उल्लेख अवश्य करते और बैतूल देश में गौरवान्वित हुआ होता। अंततः जनता ‘स्वच्छता ईश्वरत्व के निकट हैं’, संदेश देकर लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने में मदद करें।